पिछले कुछ वर्षों में देश के बैंकों की हालत में लगातार सुधार आया है। अपने परिचालन के लिए सरकार से पूँजी की मांग करने वाले सरकारी बैंक आज मुनाफे में हैं और रिकॉर्ड कमाई कर रहे हैं। बैंकों के लिए परेशानी बने NPA (नॉन परफार्मिंग एसेट) लोन भी कम हो गए हैं और UPA राज के दौरान बेतरतीब ढंग से बांटे गए कर्जों की वसूली भी तेज हो गई है।
संसद के मानसून सत्र के प्रश्नकाल के दौरान लोकसभा में वित्त मंत्रालय ने बताया है कि बीते 9 वर्षों में देश के बैंकों ने 10 लाख करोड़ से अधिक के NPA की वसूली की है। इससे पहले भी लगातार भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार यह प्रयास करते रहे हैं कि देश में बैंकों की हालत में सुधार लाया जाए और उन्हें किसी भी तरह के खतरे से बचाया जाए।
सरकार ने क्या बताया?
लोकसभा में 24 जुलाई को दिए गए उत्तर में वित्त राज्य मंत्री भागवत किशन राव कराड ने बताया है कि देश के अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (SCB) ने बीते 9 वर्षों के दौरान ₹10,16,617 करोड़ की वसूली की है। यह धनराशि ऐसे कर्जों से वसूल की गई है जो कि NPA हो चुके थे।
NPA आमतौर पर ऐसे कर्जों को कहा जाता है जो कि नियत भुगतान तिथि के 90 दिनों के भीतर नहीं लौटाए जाते। इनके ना लौटाए जाने की स्थिति में बैंकों को अपने हिसाब-किताब में सरलता बनाए रखने के लिए इनकी भरपाई अपने पास से करनी पड़ती है जिसे प्रोविजनिंग कहा जाता है। जिसके कारण बैकों के मुनाफे पर असर पड़ता है।
वित्त राज्य मंत्री ने लोकसभा को बताया है कि बीते कुछ वर्षों में कर्ज देने के तरीके को पूरी तरीके से बदल दिया गया है। कानूनों में और सख्ती लाई गई है और ऐसी कम्पनियों अथवा व्यक्तियों को कर्ज लेने से प्रतिबंधित किया जा रहा है जो अदायगी में लगातार चूकते रहे हैं।
रिजर्व बैंक के माध्यम से भी सभी बैंकों के आंतरिक प्रबन्धन को सुदृढ़ किया गया है और कर्जों की मॉनिटरिंग लगातार की जा रही है। सरकार ने विशेष कर सरकारी बैकों की स्थिति सुधारने के लिए 4R की रणनीति अपनाई है। इसके अंतर्गत समस्याओं को पहचानना, बैंकों को पूँजी देना, उनकी समस्याओं को हल करना और सुधार करना शामिल हैं।
सरकार के सुधारों का परिणाम
बीते 9 वर्षों में किए गए सुधारों के परिणाम भी सामने आने लगे हैं। वर्तमान में कोई भी सार्वजनिक बैंक घाटे में नहीं है। वर्ष 2021-22 के दौरान 12 सरकारी बैंकों का लाभ 66,543 करोड़ रुपए था जो कि वर्ष 2022-23 के दौरान बढ़कर 1.04 लाख करोड़ रुपए हो गया है।
मात्र बैंकों के लाभ में ही बढ़ोतरी नहीं हुई है बल्कि उनका आकार भी बढ़ा है। लोकसभा में दी गई एक जानकारी के अनुसार, वर्ष 2018 में जहाँ सभी सरकारी बैंकों का बाजार पूंजीकरण (मार्केट कैप) 4.52 लाख करोड़ रुपए था वहीं अब यह बढ़कर 10.63 लाख करोड़ से भी अधिक हो चुका है।
बैंकों के GNPA अनुपात (कुल दिए गए कर्जे और NPA का अनुपात) में भी कमी हुई है। वर्ष 2018 में यह 14.6% था जो कि अब घटकर 5.53% हो चुका है। ऐसे में जहाँ पहले प्रति 100 रुपए के कर्ज पर 14.6 रुपए NPA हो रहे थे वह अब घटकर 5.5 रुपए पर आ चुके हैं।
वित्त वर्ष 2023-24 के बजट में सरकार ने बैंकों को किसी भी प्रकार की नई पूँजी अपने पास से नहीं दी है। इससे पहले लगातार प्रति वर्ष सरकार को बड़ी धनराशि बैंकों को देनी पड़ती थी। अच्छे मुनाफे के कारण बैंक अब सक्षम हो चुके हैं।
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