बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद मोहम्मद युनूस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार संवैधानिक स्तर पर बदलाव करने की कवायद में जुटी हुई है।
इसी कड़ी में शेख हसीना सरकार द्वारा लाए गए 15वें संविधान संशोधन की वैधता को लेकर इन दिनों बांग्लादेश के उच्च न्यायालय में बहस चल रही है।
इस बहस के दौरान अंतरिम सरकार के अटॉर्नी जनरल मोहम्मद असदुज्जमां ने मांग की है कि संविधान से धर्मनिरपेक्ष शब्द को हटाया जाना चाहिए क्योंकि बांग्लादेश मुस्लिम बहुल देश है जहां 90 प्रतिशत आबाद मुस्लिमों की है।
अटॉर्नी जनरल असदुज्जमां ने न्यायाधीश फराह महबूब और देबाशीष रॉय चौधरी के कहा कि “अल्लाह के प्रति पहले (15वें संविधान संशोधन से पहले) हमारी आस्था और भरोसा था। मैं चाहता हूं कि यह पहले जैसा ही रहे।”
मोहम्मद असदुज्जमां ने बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान को ‘राष्ट्रपिता’ कहलाए जाने को लेकर भी आपत्ति दर्ज की है। दरअसल, साल 2011 में लाए गए 15वें संविधान संशोधन में शेख मुजीबुर रहमान को आधिकारिक तौर पर राष्ट्रपिता का दर्जा मिला है।
अटॉर्नी जनरल का कहना है कि शेख मुजीबुर रहमान को ‘राष्ट्रपिता’ के रूप में लेबल करना राष्ट्र को विभाजित और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करता है। उन्होंने आगे कहा, “शेख मुजीब के योगदान का सम्मान करना आवश्यक है, हमारे मुक्ति संग्राम में उनके योगदान को नकारा नहीं जा सकता है लेकिन 15वें संशोधन में इस उपाधि को शामिल करने से विभाजन की भावना पैदा होती है।”
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के अटॉर्नी जनरल शेख मुजीब के सम्मान की बात कर तो रहे हैं लेकिन जमीनी हकीकत इससे विपरीत दिखती है। तख्तापलट के बाद यह देखा गया है कि शेख मुजीबुर रहमान की मूर्तियों को तोड़ा गया, उन पर पेशाब किया गया, उनकी स्मृति में मनाए जाने वाले दिवस को रद्द कर दिए गए और फिर राष्ट्रपति भवन से उनकी तस्वीरें हटा दी गई।
बहरहाल, मोहम्मद असदुज्जमां ने तर्क दिया है कि “बांग्लादेशी संविधान का अनुच्छेद 2ए जो सभी धर्मों (हिंदू, बौद्ध, ईसाई और अन्य पंथ) के पालन में समान स्थिति और समान अधिकार की बात करता है जबकि अनुच्छेद 9 बंगाली राष्ट्रवाद की बात करता है, यह विरोधाभाषी है।”
अटॉर्नी जनरल ने अनुच्छेद 7 (ए) और 7 (बी) पर भी आपत्ति जताई है।
अनुच्छेद 7 (ए) कहता है कि यदि कोई व्यक्ति बलपूर्वक, हिंसक प्रदर्शन या किसी असंवैधानिक साधन के द्वारा इस संविधान या इसके किसी अनुच्छेद को निरस्त या निलंबित करने का प्रयास करता है, षड्यंत्र रचता है तो यह कृत्य राजद्रोह माना जाएगा और ऐसा व्यक्ति राजद्रोह का दोषी होगा।
अनुच्छेद 7 (बी) भी यही बात कहता है कि इस संविधान या इसके किसी अनुच्छेद के प्रति नागरिकों के विश्वास को नष्ट करने का प्रयास या षड्यंत्र करना राजद्रोह माना जाएगा।
मोहम्मद असदुज्जमां ने इन दोनों अनुच्छेदों को लोकतंत्र को खत्म करने और राजनीतिक शक्ति को बढ़ाने वाला बताया है।
मामले की सुनवाई के बाद अटॉर्नी जनरल ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि 15वें संशोधन को बनाए रखना मुक्ति संग्राम, 1990 के जन-विद्रोह और 2024 की जुलाई क्रांति की भावना को कमजोर करता है।
क्या है 15वां संविधान संशोधन?
15वां संशोधन 25 जून, 2011 को पारित किया गया था, जिसमें संविधान में संशोधन करके धर्मनिरपेक्षता और धर्म की स्वतंत्रता को बहाल किया गया है।
इस संशोधन में राष्ट्रवाद, समाजवाद, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता को राज्य की नीति के मूल सिद्धांतों के रूप में शामिल किया गया है। संविधान अब देश के मुक्ति संग्राम के नायक शेख मुजीबुर रहमान को राष्ट्रपिता के रूप में भी स्वीकार करता है।
इस संशोधन ने कार्यवाहक सरकार की प्रणाली को खत्म कर दिया और महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों की संख्या मौजूदा 45 से बढ़ाकर 50 कर दी और संविधान से बाहर के तरीकों से सत्ता पर कब्ज़ा करने की प्रथा को खत्म करने के लिए अनुच्छेद 7 के बाद अनुच्छेद 7 (ए) और 7 (बी) को संविधान में शामिल किया गया।