विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 5 अक्टूबर को एक चेतावनी जारी कर हरियाणा के सोनीपत की एक कम्पनी में बनी दवाओं को गाम्बिया में हुई 60 से अधिक बच्चों की मृत्यु के कारणों में से एक बताया है। हालाँकि, WHO ने अभी तक पूरी तरह से इस बात की पुष्टि नहीं की है कि सोनीपत की दवा कंपनी में बना यह सिरप ही बच्चों की मृत्यु का कारण है।

गाम्बिया की स्थानीय मीडिया के अनुसार बच्चों की मृत्यु की घटनाएं कई महीनों से जारी हैं और अब तक कुल 66 बच्चों की मृत्यु की सूचना है।
स्थानीय समाचार माध्यमों के अनुसार एक्यूट किडनी इंजरी को मृत्यु का कारण बताया गया है। स्थानीय मीडिया और मेडिकल एजेंसियों के अनुसार इन मौतों के पीछे सिरप के अलावा एक और बड़ी वजह एक बैक्टीरिया ई कोलाई का संक्रमण है। WHO के द्वारा इस दवा पर चेतावनी जारी करने के बाद भारतीय फार्मा उद्योग के विरुद्ध लगातार प्रश्न उठ रहे हैं।
गाम्बिया के राजदूत ने कहा- हम अभी कुछ नहीं कह सकते
द पैम्फलेट ने जब नई दिल्ली स्थित गाम्बिया के दूतावास से सम्पर्क साधा तो उनके राजदूत ने हमारे साथ अपनी बातचीत में बताया कि मामले की जांच अभी भी चल रही है और वह अभी तक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे हैं। ऐसे में दूतावास इस समय कोई स्पष्ट बयान नहीं दे सकता। उन्होंने आगे कहा कि उनकी सरकार की ओर से कोई आधिकारिक बयान आने पर ही वे इस विषय पर कुछ कह पाएंगे।
“क्या यह साबित हो चुका है कि बच्चों की मौत का असल कारण ये दवाएं ही हैं?” यह प्रश्न पूछे जाने पर गाम्बिया के राजदूत ने बताया कि; चूंकि जांच अभी अपने अंतिम निष्कर्ष पर नहीं पहुंची है इसलिए उनके लिए कुछ भी कहना मुश्किल होगा। वहीं गाम्बिया के स्थानीय अखबारों में छपी खबरों के अनुसार, बच्चों की मौत की एक बड़ी वजह ई कोलाई बैक्टीरिया का संक्रमण है जिसके कारण डायरिया जैसे रोग होते हैं।
चीन नकली दवाएं बना कर भारत को करता रहा है बदनाम
गत कई वर्षों में ऐसे कई उदाहरण देखे गए हैं जब चीन में बनी नकली दवाओं को भारत में बनी दवाएं बताकर अफ्रीकी देशों में भेजा गया। अमेरिका के स्वास्थ्य विभाग से जुड़े नेशनल मेडिकल लाइब्रेरी पर छपी एक रिपोर्ट के अनुसार चीन ने नाइजीरिया में नकली दवाएं बेचीं है।

वैश्विक दवा बाजार में चीन की कोई ख़ास विश्वसनीयता ना होने के कारण चीन ने अपने यहाँ बनी दवाओं को भारत में निर्मित का लेबल लगाकर मलेरिया की दवाई के 6 लाख से अधिक टेबलेट जून 2009 में नाइजीरिया को बेचीं थी। इसके अलावा चीन पर अमेरिका के अंदर भी दूषित दवाएं बेचने के आरोप हैं।
ऐसी ही एक घटना में अमेरिका में 81 लोगों की मौत और सैकड़ों की संख्या में एलर्जी के शिकार हुए थे। यह एक दवा के सेवन के बाद हुई जिसकी आपूर्ति चीन ने की थी। चीन में नकली दवाई बनाने वालों पर बहुत छोटे से जुर्माने लगाकर उन्हें छोड़ दिया जाता है।
दिसम्बर 2012 में द गार्जियन में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, अफ़्रीकी देशों में मलेरिया को ठीक करने वाली एक तिहाई दवाएं नकली बेचीं जा रहीं थी। इनमें से अधिकतर चीन और भारत से आई हुईं थी। भारत का नाम भी चीन इस मामले में गलत तरीके से उपयोग करता रहा है।

द अटलांटिक में छपी एक रिपोर्ट में भी यह जिक्र है कि चीन में बनी एक दवा की करीब 12 लाख डोज फ्रांस में पकड़ी गईं थी। यह सर दर्द और बुखार की दवा एस्प्रिन के नाम से थी, इसमें से कुछ दवा आगे अफ्रीका जानी थी।
भारत में निर्मित दवाओं की अमेरिका, यूरोप में अच्छी साख
दुनिया भर की फार्मा उद्योग के आंकड़े देखें तो अमेरिका की दवा नियामक एजेंसी FDA के नियमनों के अनुसार दवा बनाने वाली सबसे ज्यादा निर्माणियां भारत में हैं। भारत की दवानियामक एजेंसी CDSCO के एक आँकड़े के अनुसार वर्तमान में भारत में 865 दवा निर्माणियाँ ऐसी हैं जिनके पास अमेरिका की दवा नियामक एजेंसी FDA का अप्रूवल है। भारत की जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा खरीददार अमेरिका ही है।

वर्ष 2019-20 के दौरान भारत द्वारा निर्यात दवाओं का 34% उत्तरी अमेरिका महाद्वीप में निर्यातित किया गया। अगर यह आँकड़ा संख्या में देखें तो करीब 7 बिलियन डॉलर होता है। वहीं यूरोपियन यूनियन के देशों को भारत ने करीब 3 बिलियन डॉलर की दवाएं निर्यात की। यूरोपियन देश भारत में बनी दवाओं के तीसरे सबसे बड़े खरीददार हैं।
भारत की दवा निर्माता कम्पनियों का विश्व स्वास्थ्य में बड़ा योगदान
भारत एक विकासशील देश होने के नाते कम आमदनी वाले देशों की समस्याओं को समझता है। यही कारण है कि वर्तमान में भारत अपनी आवश्यकता की अधिकतम दवाएं स्वयं बना रहा है और इन दवाओं को पूरे विश्व में 200 से अधिक देशों में निर्यात भी करता है।
इंडियन ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत का दवा बाजार वर्ष 2021 में 42 बिलियन डॉलर का था, जो कि इस दशक के अंत तक 130 बिलियन डॉलर का हो जाएगा। दवाएं बनाने के मामले में भारत विश्व में तीसरे नम्बर पर है।

वर्तमान में भारत में 3000 से अधिक दवा कम्पनियां हैं और 10,000 से अधिक दवा निर्माणियां दवाएं बनाने में लगी हुई हैं। इसके अतिरिक्त भारत दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीन निर्माता देश है और पूरे विश्व की करीब दो तिहाई वैक्सीन भारत में ही बनती हैं।
भारत पूरी दुनिया की 20% जेनेरिक दवाइयों का निर्यातक है। अमेरिका, अफ्रीका, यूरोपियन यूनियन, लैटिन अमेरिका और मध्य पूर्व के देश भारत की दवाइयों के सबसे बड़े खरीददार हैं। भारतीय दवाइयों की पूरे विश्व में काफी मांग है।
इसी रिपोर्ट के अनुसार, भारत वर्ष 2016 में 17 बिलियन डॉलर की दवाएं निर्यात करता था, वर्ष 2021 में यह आंकड़ा करीब 25 बिलियन पहुँच चुका है। सरकार लगातार इस क्षेत्र में अपनी योजनाओं के द्वारा और निवेश लाने के प्रयास में जुटी हुई है।
WHO की चेतावनियों में ही अंतर
WHO द्वारा 5 अक्टूबर को भारत में बनी दवा पर जारी चेतावनी और इससे पहले जारी ऐसी ही चेतावनियों में अंतर हैं। 5 अक्टूबर को जारी चेतावनी में निर्माता के नाम के साथ साथ ही जिस राज्य और देश में यह दवा बनी है उसका जिक्र है।

इससे पहले की चेतावनियों में जिनमें दवा के नकली या गुणवत्तापरक ना होने की बात कही गई है उसमें केवल दवा का नाम बताया गया है। इसका एक उदाहरण इसी साल अगस्त माह में दक्षिण अमेरिका में पकड़ी गई डिप्रीवैन नाम की दवा है जिसे असल रूप से इंग्लैण्ड की एस्ट्राजेनेका बनती है। इस चेतावनी में इंगलैंड का कहीं पर नाम नहीं दिया गया है।
भारत की वैक्सीन मैत्री
भारत कोरोना महामारी के बाद से पूरे विश्व में बड़े तौर पर वैक्सीन आपूर्ति करता आया है, कई गरीब देशों को भारत ने मुफ्त वैक्सीन एक मित्र के तौर पर दिए हैं। विदेश मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत अभी तक 20 करोड़ से ज्यादा वैक्सीन अभी तक पूरे विश्व में सप्लाई कर चुका है।