दिवाली की पूर्व संध्या पर रविवार की शाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या जाएँगे। इस दौरान प्रधानमंत्री श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र स्थल का निरीक्षण कर भगवान श्री रामलला विराजमान के दर्शन और पूजा करेंगे। इसके बाद प्रतीकात्मक भगवान श्री राम का राज्याभिषेक करेंगे। अयोध्या में आज राम की पौड़ी में करीब 18 लाख दिए जलाए जाएँगे एवं लेजर शो का भी आयोजन होगा।
हजारों वर्षों से यह कथा एक पीढ़ी से दूसरी तक पहुँची, कि लंका विजय के पश्चात भगवान श्री राम, माँ सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ जिस दिन अयोध्या पहुँचे, तो पूरी अयोध्या नगरी को नगरवासियों ने दीपों से सजा दिया था। इसी उत्सव को दीपावली कहते हैं। यह उत्सव हर वर्ष मनाया जाता है।
पर ऐसा भी हुआ कि भगवान राम की जिस जन्मभूमि अयोध्या से दीपों का यह उत्सव आरंभ हुआ। उसी अयोध्या में सैकड़ों वर्षों तक इस उत्सव पर ग्रहण लगा रहा। कहते हैं दीप पहले घर में जलाया जाता है। ऐसे में जब भगवान राम का घर ही न रहा तो दीप कहाँ जलता?
आज अयोध्या में आयोजित होने वाला दीपोत्सव भले ही आसान लगे, पर इतिहास देखा जाए तो यह पता लगता है, कि आज की भाँति ऐसा भव्य दीपोत्सव तो दूर, सदियों तक हिंदू समाज को दीपावली पर अपने भगवान का स्वागत करने के लिए नगर द्वार तक सजाने की अनुमति नहीं थी।
सैकड़ों वर्ष तक हर वर्ष भगवान राम के स्वागत द्वार का तोरण श्रीराम की प्रतीक्षा करता रहा और भगवान राम अपने घर की।
फिर भी लगभग 500 वर्षों तक अपने भगवान के घर के लिए निरंतर संघर्ष ने भी हिंदू समाज को विचलित नहीं होने दिया। यह सभ्यता के ठोस आधार का प्रमाण था कि हिंदू समाज ने न तो मंदिर के लिए संघर्ष करना छोड़ा और न ही ऐसा मार्ग चुना जो उसे अहिंसा से दूर ले जाता। यही बात हिंदुओं को नैतिक बल प्रदान करने वाले सनातन धर्म को सनातन बनाती है और विद्वानों के लिए यह आज भी आश्चर्य की बात है कि सनातन धर्म हजारों वर्ष पुराना है या हजारों वर्ष नया।
लगभग पाँच सौ वर्षों में शासन और प्रशासन को नियंत्रित करने वालों से हिंदू समाज को किसी तरह की सहानुभूति न मिलना अस्वाभाविक नहीं था। शासन और प्रशासन जिनके नियंत्रण में था, उनसे सहानुभूति की आशा करना व्यर्थ था। पर शायद यह समय चक्र में हिंदू समाज की आस्था ही है कि 2017 में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी और उनके आने के बाद से अयोध्या में दीपोत्सव का युग वापस आ गया। अब दीपावली पर दीपोत्सव फिर से अयोध्या की पहचान बन गया है। हर वर्ष दीयों की संख्या के साथ-साथ सनातन के पुनर्जागरण की सीमा बढ़ती जा रही है।
आज दीपोत्सव मात्र दीपोत्सव नहीं है। यह संस्कृति में वृहद हिन्दू समाज की आस्था का परिचायक हो गया है। अब जबकि अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण हो रहा है तो धार्मिक पुनर्जागरण का फल सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था के पुनरुत्थान के रूप में भी सामने आ रहा है। सरयू का तट आज जब दीपोत्सव का गवाह बनता है तब शायद निज से कहता होगा; धर्म के प्रति आस्था व्यक्ति और समाज ही नहीं बल्कि संस्कृति, संस्कार, नदी, नगर …. और सत्य की रक्षा करता है।