Author: स्वामी व्यालोक

हमारे पहले प्रधानमंत्री चूँकि मन से यूरोपियन ही थे, इसलिए उन्होंने कोई ऐसा फैसला नहीं लिया जो भारत को एक संप्रभु राष्ट्र की तरह अन-औपनिवेशिक कर सके, हमारी समृद्ध विरासत को सामने ला सके।

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भीष्म ‘मत्स्य-न्याय’ का उदाहरण देते हुए बताते हैं कि बड़ी मछली ही छोटी को खा रही थी, इसलिए राजा आया, फिर राज्य आए, उसके साथ नियम (आज के कानून) आए और फिर उन नियमों को भंग करनेवालों के लिए दंड की व्यवस्था आई।

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ये गजब का तर्क है कि चोल तो शैव थे और शिव हिंदू देवता नहीं हैं। हिंदू देवता नहीं हैं तो यजुर्वेद का महामृत्युंजय मंत्र कमल हासन ने लिख दिया था?

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फिल्म हमेशा की तरह वामपंथी बेंड (अंग्रेजी वाला बेंड, और ध्यान रहे मैं रुझान नहीं कह रहा हूं) वाली है, जहां दक्षिणपंथ एक विलेन, एक खलनायक की तरह पेश किया गया है।

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मणिशंकर हों या जयराम, सिब्बल हों या पित्रोदा- इन सभी की एक बीमारी है। सभी भारत की जड़ों से कटे, औपनिवेशिक सोच से ग्रस्त हैं। 

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सनातनियों का हरेक पर्व-त्योहार निशाने पर है। कभी होली में पानी, कभी वीर्य के गुब्बारों, कभी जलीकट्टू, कभी शबरीमाला, कभी शनि-शिंगणापुर, तो कभी हांडी की ऊंचाई को लेकर!

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इससे पहले कि हम अपनी बात आगे कहें, उससे पहले आपको बीते दिनों की बता दें। पिछले दिनों मध्य प्रदेश के एक स्कूल से शिक्षक-दिवस पर कथित सांस्कृतिक-कार्यक्रम की तस्वीरें और वीडियो वायरल हुईं। वह स्कूल था, लेकिन किसी पब और हुक्का-बार की झलक दे रहा था। वहां ऐसे अश्लील गाने बज रहे थे, जिनको हमें यहां लिखते हुए भी संकोच हो रहा है। दूसरी बात, ब्रिटेन में भारतवंशी ऋषि सुनक के पीएम पद पर हारने के बाद भारत के लिबरल-वामपंथी वर्ग की प्रतिक्रिया की है। ऋषि की हार के बाद उनकी गौ-पूजा करती तस्वीरें डालते हुए ट्विटर पर ऐसा…

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