Author: साकेत सूर्येश

साकेत धर्म, राजनीति एवं इतिहास पर लिखते हैं। वर्तमान में साकेत भारत के स्वातंत्र्य इतिहास के अनसुने पक्षों पर आधारित पुस्तक पर कार्य कर रहे हैं।

यह तथ्य है कि बिस्मिल को भारतीय इतिहास में वह स्नेह और सम्मान नहीं मिला जो उन्हें मिलना चाहिए था। अपने छोटे से कोई तीस वर्ष के जीवन काल ने बिस्मिल ने उस संघर्ष की भूमिका रखी जिसकी परिणति भारत
की स्वतंत्रता में हुई।

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नेहरू के हाथों में सत्ता के नैतिक हस्तांतरण और स्थिर एवं न्यायसंगत शासन के सूचक के रूप में मद्रास से लाया गया, शिव के आशीर्वाद रूप में पवित्र धर्म-दंड अर्थात् तमिल भाषा में चोल काल से चला आ रहा परम्परागत संगोल दिया गया।

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पंडित जी और कुन्दनलाल के अलावा काकोरी के सब क्रन्तिकारी पकड़े गए। आज़ाद बनारस छोड़ के प्रयाग चले गए और वहाँ से झाँसी जा कर मास्टर रूद्र नारायण के यहां रहने लगे।

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संविधान की स्मृति पर अपनी राजनीति की धार तेज करने वाले जो ‘बाबा साहेब के संविधान’ पर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने वाले रहे हैं, उन्हें संविधान समिति के अध्यक्ष राजेंद्र बाबू आज स्मरण नहीं रहे।

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