Author: अभिषेक प्रिय

लोग कहते हैं कि अमुक शायर,कवि ने बहुत मुफलिसी की ज़िंदगी जी। उसके जीवन में बड़ा संघर्ष था। अब ये क्या बात हुई भला? मैं पूछता हूँ उस व्यक्ति ने क्या त्याग किया? शेर-शायरी कविता लिखना तो कवि का काम है। और मुफ़लिसी में जीना उसका धर्म। इसमें क्या बड़ी बात है ? 

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इस बार प्रतियोगी परीक्षाओं में एक नया अजूबा हुआ। उस साल संघ और राज्य लोक सेवा आयोगों की परीक्षा में कोई प्रतियोगी सम्मलित नहीं हुआ। सब जी-जान से पटवारी परीक्षा की तैयारी में लग गये।

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रैंकने वाले शेर ने बताया, “दिल्ली चला गया साला, अपनी कुल्हड़-सकोरे की फैक्ट्री बंद कर गया। हम सब ने कहा- मालिक हमारे परिवारों का क्या होगा? तो साला अपनी गलतियों की बजाय, तालाबंदी के लिये हम मजदूरों को ज़िम्मेदार ठहराने लगा कि तुम लोगों के कारण यह हुआ है।”

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