Author: Jayesh Matiyal
जयेश मटियाल पहाड़ से हैं, युवा हैं। व्यंग्य और खोजी पत्रकारिता में रूचि रखते हैं।
तो अर्ज है, जनता से लेकर समता, समता से लेकर भारतीय जनता तक, ऐसा कोई दल नहीं, जिससे पलटी-पुत्र ने किया हो छल नहीं।
कबीर एनजीओ का ऑफिस किराए की जिस बिल्डिंग पर था, वह बिल्डिंग सीमा सिसोदिया के नाम पर है। अब ये सीमा कौन हैं? सीमा जी माननीय उप-मुख्यमंत्री मनीष जी की पत्नी हैं। मनीष सिसोदिया ने जो पैसा किराए के लिए खर्च किया है, उसका भी उन्होंने कोई दस्तावेज पेश नहीं किया।
प्रधानमंत्री मोदी को यह अवसर मिला तो उन्होंने इसका भरपूर लाभ लेकर देश की एक नई दिशा और दशा, दोनों ही तय कर दी। उनके भाषण में कई बार सदियों से अनवरत चली आई सनातन संस्कृति से साक्षात्कार साफ़-साफ़ देखने को मिला।
भारत-विभाजन की जब भी चर्चा होती है, तो बंटवारे के दर्द के साथ ही भाषा का सवाल भी मुंह बाए खड़ा हो जाता है। भाषा मात्र लिखने-पढ़ने तक सीमित नहीं है। भाषा का प्रश्न पहचान का प्रश्न है। भाषा व्यक्ति के अस्तित्व का परिचायक है। भाषा का दमन, देश-समाज के विभाजन का कारक है। भाषाई आधार पर उत्पीड़न का परिणाम बांग्लादेश है। पूर्वी पाकिस्तान कहे जाने वाले बांग्ला भाषी क्षेत्र पर जब जबरन उर्दू थोपी गयी, तो भाषा के आधार पर एक आन्दोलन खड़ा हुआ। यही भाषाई आन्दोलन विकराल हो गया, जिसने वर्ष 1971 में एक नए देश को जन्म…
सम्पूर्ण जगत मां की चेतना से व्याप्त है। यही चेतना बंगाल की काली पूजा में दिखती है। यही चेतना बंगाल और पूरे भारत की आस्था में दिखती है।”
हे ‘सेक्युलर’ साथियों, उठो, जागो और देखो सेकुलरिज्म अपनी अन्तिम यात्रा पर निकल रहा है। ओ कॉमरेड़ चश्मा उतार, और आंखें खोल के देख ‘सेक्युलरिज्म’ द्रौपदी मुर्मु जी के कन्धों पर राजघाट की ओर बढ़ रहा है।
भारत और जापान सम्बन्ध कितने घनिष्ठ हैं, इसका अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत में अबे शिंजो की मृत्यु पर एक दिवसीय राष्ट्रीय शोक की घोषणा हुई है।