Author: आशीष नौटियाल
साल 1989 में एक फिल्म आई थी जिसका नाम था मैं आजाद हूँ। फिल्म में मुख्य भूमिका में अमिताभ बच्चन थे, शबाना आजमी थी और अनुपम खेर भी थे और फिल्म का निर्देशन टीनू आनंद ने किया था। इस फिल्म की कहानी कुछ ऐसी थी कि एक अखबार के संपादक को जब उसके सेठ जी कहते हैं कि उनका अखबार बिक नहीं रहा है तो संपादक लोग मिलजुलकर एक ऐसा कैरेक्टर तैयार करते हैं जो क्रन्तिकारी किस्म के पत्र अखबार में छपवाता है। इस कैरेक्टर को नाम दिया जाता है ‘आजाद’… सेठ जी का अखबार चल पड़ता है, TRP ताबड़तोड़…
उत्तराखंड में पिछले एक साल में करीब पांच सौ से अधिक अवैध मजारें तोड़कर सरकारी कब्जे को मुक्त करने का काम किया गया है, इसके बाद अभी भी बड़ी संख्या में अवैध मजारें देवभूमि के चप्पे चप्पे पर मौजूद हैं। आशीष नौटियाल इस वीडियो में विस्तार से बता रहे हैं ‘मज़ार इकॉनमी’ की कहानी और उससे पैदा होने वाले अपराध की क्रोनॉलॉजी।
ये वही अमेरिका है जो दुनिया भर का बोझ अपने सर पर लिए घूमने का दावा करता है, हर किस्म की रैंकिंग और और संस्था इन्होने बनाई हैं ताकि दुनिया को सर्टिफिकेट बाँट सकें। इसमें डायवर्सिटी के सर्टिफिकेट हैं, पितृसत्ता यानी पैट्रिआर्कि के सर्टिफिकेट हैं और भी जाने क्या क्या।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक कॉलम प्रकाशित किया जिसमें उन्होंने ख़ालिस्तानी आतंक और इसके इतिहास को दफन करते हुए भारत से ही कई सवाल पूछे हैं। इस लेख का शीर्षक है “Sikh Activists See It as Freedom. India Calls It Terrorism.”
जिस दिन #Hindu आस्था का पर्व Diwali मना रहे हैं, उस दिन ख़ुद को सुपरपावर कहने वाला अमेरिका अंधविश्वास का जश्न मना रहा है। इस जश्न को उन्होंने नाम दिया हैलोवीन (Halloween)!
अमेरिका की ये परंपरा रही है कि जब भी उसने कहीं कुछ कांड किए , तब उसने पहले उन्हें ईविल साबित करने की कोशिश की, फिर उन पर नस्लीय हमले किए, फिर उनके विद्रोहियों के ज़रिए अपना काम निकालने का प्रयास और फिर अंत में वहाँ पर नरसंहार।
द न्यूयॉर्कर का, 24 जनवरी 2024 को इस अमेरिकी समाचार पत्र ने एक लेख लिखा है जिसका शीर्षक है ‘हाउ द हिंदू राइट ट्राइंफ्ड इन इंडिया’ How the Hindu Right Triumphed in India इसका हिन्दी अर्थ है कि भारत में दक्षिणपंथ कैसे जीत रहा है।
उस संन्यासी के समक्ष जब अल्प वय में रोज़गार और रोज़ाना का जीवन चुनने की बारी आई तब उनके मन में यही विचार था कि इस एक जीवन का जो उपहार उन्हें मिला है क्या उन्हें यह क्लर्क या स्कूल के मास्टर की नौकरी कर यूँ ही गँवा देनी चाहिए?
उन्हें बताएँ कि कैसे रहे होंगे वे राम जिन्होंने धर्म के लिए पिता की बात तक नहीं मानी, जिन्होंने जंगल का कठिन तप चुना, विरह-वेदना को चुना, रीछ-वानरों की मित्रता की, परम बलशाली होने के बावजूद ऐन मौक़े पर नल-नील की मादद को सर्वश्रेष्ठ माना।
फराह बेकर जो काम कर रही थी, वही काम हजारों और लोग भी उस वक्त कर रहे थे। ऐसे में सोचने की बात ये है कि इनमें से सिर्फ फराह बेकर ही क्यों पॉपुलर हुई?