पिछले कुछ वर्षों से एक आम चलन देखा गया है। जब भी भारत में किसी बड़े कार्यक्रम का आयोजन होता है, खालिस्तानी और उनके क़िस्से सतह पर आ जाते हैं। गणतंत्र दिवस को मात्र एक दिन शेष रह गया है और इस अवसर पर मुख्य अथिति के रूप में आमंत्रित मिस्र/इजिप्ट के राष्ट्रपति अब्देल फ़त्ताह अल-सीसी भारत के तीन दिवसीय दौरे पर हैं। इसी वर्ष भारत को जी-20 की अध्यक्षता और मेज़बानी भी मिली है। ऐसे में इन बड़े आयोजनों के दौरान खालिस्तानी घटनाओं में किसी प्रकार की बढ़ोतरी देखी जाए तो समझा जा सकता है कि इनका उद्देश्य क्या है?
ऑस्ट्रेलिया में पिछले एक सप्ताह में दूसरी और पिछले पंद्रह दिनों में तीसरी घटना सामने आयी है जब खालिस्तानियों द्वारा हिन्दू मंदिरों को निशाना बनाया गया हो। मंदिरों को क्षतिग्रस्त किया गया और उनके दीवारों पर खालिस्तान समर्थित व भारत विरोधी नारे लिखे गए। सबसे ताज़ा घटना मेलबर्न में स्थित श्री श्री राधा बल्लभ इस्कॉन अल्बर्ट पार्क मंदिर की है जिसे रात के अँधेरे में निशाना बनाया गया है। ऑस्ट्रेलिया में हिन्दूफोबिक घटनाओं के पीछे खालिस्तानियों की साज़िश है।
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इससे पूर्व ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया स्थित ऐतिहासिक श्री शिव विष्णु मंदिर, कैरम डाउन्स पर भी इसी प्रकार हमले किये गए। यह मंदिर ऑस्ट्रेलिया की सुप्रसिद्ध हिन्दू मंदिरों में से एक है। भारत मूल के हिन्दुओं के अतिरिक्त श्रीलंकाई तमिल हिन्दू, मलेशिया, थाईलैंड, इंडोनेशिया आदि कई दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के हज़ारों-लाखों हिन्दू श्रद्धालुओं नियमित रूप से यहाँ पूजा-पाठ और दर्शन के लिए आते हैं।
वर्तमान में हिन्दू श्रद्धालुओं द्वारा मनाये जा रहे ‘थाई पोंगल’ पर्व के दौरान इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर खालिस्तान और आतंकी भिंडरावाले समर्थित जबकि भारत-विरोधी नारे ग्राफटी के माध्यम से उकेरे गए हैं। जबकि तीसरी घटना है 12 जनवरी, 2023 की, जब मेलबर्न के बाप्स स्वामी नारायण मंदिर को भी क्षतिग्रस्त किया गया और मंदिर के दीवारों पर ग्राफटी/भीत्तिचित्र बनाकर भारत विरोधी और खालिस्तान समर्थित नारे लिखे गए।
हिन्दू मंदिरों पर हो रहे लगातार हमलों को लेकर विश्वभर के हिन्दुओं में आक्रोश है। इस्कॉन कोलकाता के वाइस प्रेजिडेंट राधारमण दास जी द्वारा इन हमलों के लिए वहां के प्रशासन के रवैये पर प्रश्न उठाया गया है। उन्होंने कहा, यदि पहली घटना के बाद भी पुलिस द्वारा उचित कार्रवाई की जाती तो परिस्थिति थोड़ी अलग होती।
हिन्दूफ़ोबिया का लम्बा इतिहास
कुछेक वर्षों से दुनियाभर के हिन्दू मंदिरों पर हमले के बहुतेरे घटनाएं देखने को मिली हैं। जहाँ पूरी दुनिया में इस्लामॉफोबिया, जिनोफोबिया, क्रिस्टोफोबिया जैसे शब्दों की ‘धूम’ मची हुई है। वहीं, बावजूद लगातार हो रहे हिन्दू मंदिरों पर हमले और हिन्दुओं को धार्मिक आधार पर प्रताड़ित किये जाने पर भी सरकारें व संस्थाएं यह स्वीकार नहीं कर पा रही हैं कि हिन्दूफ़ोबिया अस्तित्व में है और इस हिंदुओं के प्रति नफ़रत का सैकड़ों वर्षों का लम्बा इतिहास है।
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बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान में हिन्दुओं की स्थिति हमारे सामने है। लेकिन अब धार्मिक स्वतंत्रता के कथित ध्वजवाहक देशों में भी हिन्दू सुरक्षित नहीं हैं तो किस आधार पर यह भारत में धार्मिक असहिष्णुता की बात करते हैं?
क्यों हो रही हैं ये घटनाएं?
वैश्विक मीडिया का भारत के प्रति रवैया जगजाहिर है, हालाँकि भारत को किसी से एंटाइटलमेंट की अपेक्षा नहीं है। लेकिन इनके द्वारा भारत विरोधी विचारधारा को धार्मिक और सांस्कृतिक अमली जामा पहनाकर इन कुकृत्यों को जस्टिफाई किया जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।
वहीं, दूसरी तरफ इन घटनाओं के प्रभाव में आकर भारतीय मीडिया गाहे-बगाहे ‘खालिस्तान’ और उसके कथित ‘रेफेरेंडम’ पर चर्चा करे, खालिस्तानियों के लिए इससे ज्यादा आदर्श स्थिति क्या हो सकती है? भारतीय मीडिया आदतन टीआरपी की लोभ में खालिस्तान की गिरती हुई साख को रिवाइव कर देती है।
सरकार द्वारा जब खालिस्तान और उसके विचारधारा को कुचलने के लगातार प्रयास किये जा रहे हैं, ऐसे में रेफेरेंडम जैसे चोंचले इनकी बौखलाहट लगती है। खालिस्तान का भारत में क्या आधार है हम सभी इससे परिचित हैं।
भारत में फ़ॉल्टलाइन्स को निशाना बनाना कोई नयी तरकीब नहीं है। इस क्षद्म युद्ध में खालिस्तान बेहद ही अहम मोहरा है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खालिस्तान के मुद्दे को साजिशन जीवित रखना किसके स्वार्थ में है यह बताना ज्यादा कठिन कार्य नहीं है।
वर्ष 2021 में गणतंत्र दिवस के दिन लाल क़िले पर खालिस्तान का झंडा फहराने की घटना ने यकीनन व्यवस्था की साख को क्षति पहुंचाई, लेकिन यह घटना किसान आंदोलन को ढाल बनाकर की गयी थी, यह भी इसका एक अभिन्न पक्ष है। भारत से बाहर खालिस्तान का सबसे बड़बोला चेहरा है गुरपतवंत सिंह पन्नू। इसके संगठन सिख फॉर जस्टिस द्वारा नकद इनाम जैसे हथकंडों से युवाओं को बरगलाया जाता है।
प्रवासी भारतीय क्यों हैं अहम?
प्रवासी भारतीय दुनिया भर में एक बड़ी ताक़त के तौर पर भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं। रेमिटेंस एवं निवेश से लेकर, धर्म और सभ्यता के दूत के समान इन्होंने भारत की सेवा भारत से दूर रहकर भी की है। भारत के लिए यह समुदाय किसी एसेट/संपत्ति से कम नहीं है। ऐसे में खालिस्तानियों द्वारा इन्हें टारगेट किया जाना सीधे-सीधे भारत की साख पर चोट पहुँचाने जैसा है।
पहला तो यह कि प्रवासी भारतीयों पर इस प्रकार के हमले कर ये अपनी उपस्थिति और अस्तित्व साबित करते हैं। दूसरा, ये अपनी संख्या बल को भी प्रदर्शित करते हैं। हमने देखा है, पहले की अपेक्षा वर्तमान में भारत ने उन देशों को स्पष्ट शब्दों में कहा है कि उनके यहाँ पल रहे खालिस्तानियों अथवा कोई भी व्यक्ति या संगठन जो भारत विरोधी कार्यों में लिप्त है, उस पर लगाम लगाई जाए। इन मामलों पर विदेश मंत्रालय द्वारा सक्रियता से कड़ी निगरानी रखी जा रही है। देखने वाली बात है, भारत सरकार द्वारा इस पर क्या स्टैंड लिया जाता है?