दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को आखिरकार सीबीआई ने गिरफ्तार करके केजरीवाल और सिसोदिया की एक और भविष्यवाणी को गलत होने से बचा लिया। ये दोनों नेता पिछले कुछ महीने से सीबीआई द्वारा सिसोदिया की गिरफ्तारी को लेकर भविष्यवाणी करने से लेकर चुनौती देने का काम और अनुरोध भी कर चुके थे। कई महीने से भगत सिंह बने सिसोदिया गिरफ्तारी के दिन राजघाट महात्मा गांधी की शरण में जा बैठे। उनके और बापू के बीच क्या बातचीत हुई, इसका खुलासा तो न हो सका पर बापू से मिलने के बाद उन्होंने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि; आज जब सीबीआई मुझे जेल भेज रही है तब मेरी पत्नी घर पर अकेली हैं।
अरविन्द केजरीवाल ने ट्वीट करके कहा कि; चिंता न करो मनीष, हम उनका ध्यान रखेंगे। मित्र से एक्टिविस्ट और एक्टिविस्ट से मंत्री बने दो लोगों के बीच संबंध इतने प्रगाढ़ तो होने की चाहिए कि एक जेल चला जाए तो दूसरा अकेली पत्नी का ध्यान रखने का वादा करे। इससे राजनीतिक संबंध भी बने रहते हैं।
केजरीवाल और सिसोदिया का भगत सिंह प्रेम
आम आदमी पार्टी और उनके नेता पिछले कई महीने से सिसोदिया को शिक्षा मंत्री की तरह प्रस्तुत करने की कोशिश किये जा रहे हैं। सिसोदिया दिल्ली के शिक्षा मंत्री हैं, यह बात तो सभी जानते हैं। ऐसे में सार्वजनिक तौर पर उन्हें बार-बार शिक्षा मंत्री के तौर पर प्रस्तुत करने से क्या लोग भूल जाएंगे कि वे दिल्ली के आबकारी मंत्री भी हैं? एक्टिविस्ट की समस्या यह है कि वह एक्टिविजम उद्योग से किसी और उद्योग में चला जाए पर वह रेटरिक त्याग नहीं सकता। यही कारण है कि राघव चड्ढा ने ट्वीट करके बताया कि; दिल्ली के स्कूल कल भी खुलेंगे। कल भी पढ़ाई होगी पर बच्चों के प्यारे सिसोदिया अंकल नहीं होंगे। इसके अलावा ट्वीट करके नरेंद्र मोदी से कहा गया कि; आपको दिल्ली के अट्ठारह लाख स्कूली बच्चों और उनके माता-पिता का श्राप लगेगा।
प्रोपगैंडा करने वालों की समस्या यह है कि उनकी अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद प्रोपगैंडा उन्हें नहीं छोड़ पाता। इसे ही कहते हैं; चोर चोरी से जाए पर हेरा-फेरी से न जाए। केजरीवाल ने आज ट्वीट करके बताया कि; सीबीआई के अधिकतर अफसर सिसोदिया को गिरफ्तार नहीं करना चाहते थे क्योंकि वे सिसोदिया की बहुत इज़्ज़त करते हैं लेकिन राजनीतिक कारणों से उन्हें ऐसा करना पड़ा। यह सीबीआई से एक वक्तव्य लेने का प्रयास है। उद्देश्य यह है कि; सीबीआई एक आधिकारिक वक्तव्य दे कि उसके ऊपर कोई दबाव नहीं है। ऐसा होने से केजरीवाल फिर कह सकेंगे कि; हमारे सूत्रों ने हमें बताया कि यह वक्तव्य सीबीआई पर दबाव डाल कर दिलावाया गया है।
कुछ नेता प्रशासनिक प्रश्नों का राजनीतिक उत्तर देते हैं और राजनीतिक प्रश्नों का प्रशासनिक उत्तर देते हैं पर एक्टिविस्ट से नेता बने नेता के सामने प्रश्न प्रशासनिक हों या राजनीतिक, वह उसका उत्तर प्रोपगैंडा से ही देता है। वह रेटरिक के अलावा और कुछ जानता ही नहीं। उसे शासन और प्रशासन का हिस्सा बना तो दिया जाता है पर उसे हिदायत यही रहती है कि हर प्रश्न का उत्तर प्रोपगैंडा है। ये हिदायतें उनके हर एक्शन में दिखाई देती हैं। समस्या चाहे जितनी बड़ी हो, क्या पहनना है से लेकर क्या बोलना है, सब कुछ हिदायतों का पालन है।
यूक्रेन को ही देखिये। पूरी दुनिया को प्रभावित करने वाले इतने बड़े युद्ध का कारण बनकर भी जेलेंस्की शासन, प्रशासन और जियो पॉलिटिक्स पर किये गए सवालों का जवाब प्रोपगैंडा और रेटरिक से ही देता है। उसके लिए भी सब कुछ स्क्रीनप्ले है। उसके लिए हर एक्शन रंगमंच पर हो रहा है। आगे भी होगा।
हाँ, भारत के परिप्रेक्ष्य में यह अब आसान नहीं है। कभी प्रोपगैंडा और रेटरिक से काम चल जाता था। अब नहीं चलता। ऐसे में कोई नेता कुर्ते की फटी जेब दिखाकर यह बताये कि वह गरीब है या यह कहे कि वह कट्टर ईमानदार है, अब ऐसे हर वक्तव्य को आम भारतीय अपनी कसौटी पर कसता है। भारत में राजनीति अब बातों से आगे की बात है। यह अब परसेप्शन और रियलिटी के बीच की लड़ाई है, परफॉरमेंस और प्रॉमिस की बीच की लड़ाई है और रेटरिक और गवर्नेंस की लड़ाई है। रेटरिक और प्रोपेगेंडा के लिए जगह कितनी तेजी से कम हो रही है, भारतीय राजनीति में टिके रहने के लिए न केवल इसका भान होना आवश्यक है बल्कि उसके अनुसार राजनीतिक दर्शन में फेरबदल भी आवश्यक है।