दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने चौथी बार शराब नीति मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) के समन की अवहेलना करते हुए कहा कि “कानून के अनुसार जो भी करने की आवश्यकता होगी वह करेंगे।”
ईडी की कार्रवाई से बचने का प्रयास कर रहे अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के प्रयास अब प्रेडिक्टिबल लगने लगे हैं। दिल्ली सरकार में ही मंत्री आतिशी मार्लेना का कहना है कि ईडी की स्क्रिप्ट बीजेपी ऑफिस में लिखी जाती है। उन्होंने गौरव भाटिया के बयान के शब्दों के साथ खेलते हुए यह बताने का प्रयास किया है कि बीजेपी को पहले से पता है कि अरविंद केजरीवाल गिरफ्तार हो सकते हैं।
इस तर्क से तो हमें यह लगता है कि गौरव भाटिया से पहले आतिशी मार्लेना को पता था तभी को वे पिछले वर्ष अक्टूबर से ही बोल रही हैं कि अरविंद केजरीवाल गिरफ्तार हो सकते हैं। उनके साथ-साथ सौरभ भारद्वाज और पूरा का पूरा AAP नेतृत्व यही बयान देते आया है कि अरविंद केजरीवाल को ईडी गिरफ्तार करना चाहती है।
ईडी क्या चाहती है यह तो हमें नहीं पता पर कुछ ऐसे प्रश्न है जो अरविद केजरीवाल एंड टीम ने बड़ी सफाई से अनुत्तरित छोड़ दिए हैं।
नोटिस को लेकर पार्टी का कहना है कि ईडी के अनुसार कि केजरीवाल आरोपी नहीं हैं, फिर उन्हें क्यों बुलाया जा रहा है? पहली बात अरविंद केजरीवाल को कोई क्लीन चिट नहीं मिली है। साथ ही केंद्रीय एजेंसी के पास प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट,2002 के तहत अधिकार है कि वो किसी भी व्यक्ति को पूछताछ के लिए नोटिस जारी कर सकती है…जिस व्यक्ति को नोटिस जारी किया गया है उसे उपस्थिति होना ही होता है। ऐसे में ईडी के समन से बचने का प्रयास कर केजरीवाल कानून की अवहेलना ही कर रहे हैं।
केजरीवाल का यह भी कहना है कि ईडी का यह समन भी पिछले समन की तरह अवैध और राजनीति से प्रेरित है। समन वापस लिया जाना चाहिए। मैंने अपना जीवन ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ बिताया है। मेरे पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है।
केजरीवाल जी ने यह तो सरासर झूठ बोला है। उनके पास छुपाने को कुछ न होता तो उनको 4 ईडी के नोटिस जारी करने की जरूरत ही नहीं पड़ती। पर कभी विपश्यना तो कभी चुनाव के बहाने ईडी के सामने जाने से कतरा रहे केजरीवाल को पता है कि वो कितनी पानी में हैं।
ईडी के नोटिस को पॉलिटीकली मोटिवेटेड और इलीगल बताकर केजरीवाल ने सिर्फ अपनी छिछली राजनीति का उदाहरण पेश किया है। यह भी संभव है कि आंदोलनजीवी बनकर राजनीति में प्रवेश करने के बाद उन्हें लगा था कि वे भ्रष्टाचार के आरोपों से भी ईमानदारी के नारों से ही बच जाएंगे। हालांकि अब कानून का सामना करने की स्थिति बन जाने पर अरविंद केजरीवाल ने हर वो संभव रास्ता अपनाया है जिससे जांच से बचा जा सके। ईडी या बीजेपी पर दोषारोपण तो महज राजनीतिक कदम है।
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