वैसे तो भारतीय राजनीति में बौखलाहट कोई नई बात नहीं है पर उसे लेकर जो नई बात है वह है बौखलाहट का स्तर। वायनाड के सांसद राहुल गांधी के अयोग्य घोषित होने के बाद कॉन्ग्रेस ने घर-घर अभियान चलाया हुआ है। आम आदमी पार्टी के सर्वे सर्वा अरविंद केजरीवाल विधानसभा से प्रधानमंत्री को अपमानित करने की कोशिश कर रहे हैं। इन्हें देख कर प्रतीत होता है जैसे वर्तमान में न्यायपालिका और स्वतंत्र जांच एजेंसियों के निर्णय औऱ कार्यों की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ले रखी है। निर्णय कोई भी दे, निशाने पर वे ही आ जाते हैं। आरोप-प्रत्यारोप की इस कड़ी में अरविंद केजरीवाल ने डिग्री रूपी हथियार एक बार फिर से ढूंढ कर निकाला है। केजरीवाल का मानना है कि अनपढ़ या कम पढ़ा लिखा आदमी प्रधानमंत्री बनने के लायक नहीं होता।
केजरीवाल का यह नया शगल प्रधानमंत्री को अपमानित करने के लिए कम और अपनी पार्टी के भ्रष्ट नेता और दिल्ली के शासन मॉडल से ध्यान हटाने के लिए अधिक लग रहा है। केजरीवाल पिछले लगभग पाँच वर्षों से प्रधानमंत्री की डिग्री को लेकर परेशान है। इसी परेशानी के बीच उन्होंने 12वीं पास मनीष सिसोदिया को शिक्षा मंत्री और 12वीं पास भगवंत मान को पंजाब के मुख्यमंत्री पद की कमान भी सौंप दी।
केजरीवाल के साथ समस्या यह है कि उनका कोई पैंतरा काम नहीं कर रहा है। वर्ष, 2014 के चुनाव के पूर्व भी मोदी के खिलाफ आरोप लगा रहे थे। वर्ष, 2019 में भी वे यही कर रहे थे तो अब वर्ष, 2024 के चुनावों पूर्व भी उन्होंने प्रधानमंत्री का अपमान करने का अभियान शुरू कर दिया है। हालाँकि इसबार उन्होंने इसके लिए सही स्थान का चयन किया है। संवैधानिक स्थान, जहाँ से उनपर कोई कार्यवाही नहीं हो सकती। आखिर एक डिग्रीधारी और विदेशी चंदे की सहायता से मुख्यमंत्री बना एक ऐक्टिविस्ट ही अपमान करने के लिए ऐसे सुनियोजित स्थान के बारे में योजनागत तरीके से सोच सकता है।
केजरीवाल का यह मानना कि एक पढ़ा-लिखा व्यक्ति ही प्रधानमंत्री बनने योग्य है, दो बातें साबित कर रहा है। पहली, कि केजरीवाल स्वयं को प्रधानमंत्री का सर्वश्रेष्ठ दावेदार न केवल मान रहे हैं बल्कि ख़ुद को आगे कर भी रहे हैं। राहुल गांधी की शैक्षिक डिग्रीयों पर सवाल खड़े होते रहते हैं। वहीं सोनिया गांधी भी अपनी कथित शिक्षा की डिग्री दिखा नहीं पाई है। अब राहुल गांधी की सांसदी जाने के बाद केजरीवाल को बस इतना करना है कि वह लोगों को यह विश्वास दिला दें कि प्रधानमंत्री मोदी भी इसलिए अयोग्य हैं क्योंकि वे उनके जितने शिक्षित नहीं है। हां, जनमानस इसी बीच प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल का रिपोर्ट कार्ड उन्हें वापस दिखा दें तो वे क्या करेंगे, इसका अभी तक उन्होंने खुलासा नहीं किया है।
भारतीय राजनीतिक लोकतंत्र और अरविंद केजरीवाल
इसका दूसरा पहलू यह है कि डिग्री का नाम लेकर केजरीवाल प्रधानमंत्री ही नहीं बल्कि कॉन्ग्रेस और जनमानस को भी निशाने पर ले रहे हैं। वे बता रहे हैं सिर्फ उनके जैसा डिग्रीधारी ही विधानसभा और संसद में बैठने लायक है। एक चायवाले से प्रधानमंत्री बनने तक का सपना जो आम आदमी को बीजेपी सरकार ने दिखाया है, वो झूठ है। देश के निर्णय तो असल में पढ़े लिखे लोग ही ले सकते हैं।
दरअसल, केजरीवाल समझदार और पढ़े-लिखे व्यक्ति में अंतर नहीं कर पा रहे हैं। उनको लग रहा है जो पढ़ा लिखा है वहीं समझदार भी होगा। देश की आजादी के बाद देश को शिक्षित प्रधानमंत्री मिले पर शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद तो कभी स्कूल तक नहीं गए। तो क्या केजरीवाल उस समय बनी शिक्षा नीतियों पर भी प्रश्न करेंगे?
केजरीवाल क्या यह कहना चाह रहे हैं कि इंदिरा गांधी के पास डिग्री नहीं थी इसलिए उन्होंने इमरजेंसी का रास्ता अपनाया? सूची बहुत लंबी है, किंगमेकर के नाम से मशहूर कामराज हो या जयललिता, करुणानिधी सब के पास राजनीतिक अनुभव तो है, पर डिग्री नहीं। केजरीवाल के पास इसके उलट डिग्री है पर राजनीतिक अनुभव में वे नए हैं।
अगर इसकी कल्पना भी कर लें कि शिक्षित नेतृत्वकर्ता ही देश चला सकता है तो केजरीवाल ने इसके लिए कौनसा उदाहरण पेश किया है। उनके पास डिग्री है, अवॉर्ड है, सामजिक सेवा का सर्टिफिकेट भी है पर दिल्ली का शासन मॉडल वो क्यों नहीं सफल बना पाए। उनके दो मंत्री बड़े घोटालों के आरोपों में जेल के अंदर हैं। उनकी पार्टी के नेता पर दिल्ली दंगे भड़काने का आरोप है। वे स्वयं विधानसभा का उपयोग राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ भाषण देने के मंच के रूप में करते हैं। केजरीवाल इतने शिक्षित हैं कि वो मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन का किराया 75000 रुपए बताते हैं। अपनी शिक्षा का उपयोग वे प्रधानमंत्री को अंग्रेजी में गालियां देने के लिए करते हैं।
क्या इस प्रकार का शिक्षित नेतृत्व चाहिए देश को?
वे भूल गए हैं कि जब वो अन्ना हजारे के साथ मिलकर मनमोहन सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे तो उस सरकार में अधिकतर डिग्रीधारी मंत्री थे। क्या मनमोहन सरकार अपने शासन को सफल बना पाई?
प्रधानमंत्री मोदी अपनी यात्राओं और सभाओं में विकास कार्यों का जिक्र करते नजर आ रहे हैं। वे भविष्य की नीतियों का खाका जनता के साथ साझा कर रहे हैं। 9 वर्षों का उनका रिपोर्ट कार्ड सबके सामने है। आखिर वो प्रधानमंत्री बनने से पूर्व गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में सफल सरकार का उदाहरण पेश करके आए थे। जनता यह बात समझती है कि उनको केजरीवाल से भ्रमित होने की आवश्यकता नहीं है। केजरीवाल चिल्लाते हैं, गालियां देते हैं क्योंकि उनके पास वो ही है।
लोकसभा चुनाव निकट आते-आते केजरीवाल अपने डिग्री हथियार का अधिक से अधिक प्रयोग करेंगे। इस बीच वे जुर्माने को अत्याचार बताएंगे, लोकतंत्र की हत्या के बारे में बात करेंगे। यह बात विरोधी दल समझ चुके हैं इसलिए वे केजरीवाल का समर्थन नहीं करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने भी अपने ऊपर हमलों को नजरअंदाज करके न्यायिक संस्थाओं पर भरोसा किया है। केजरीवाल अपने इस अक्खड़पन में भले ही रुकें न पर जनता समझ चुकी है कि काम क्रोध मद लोभ की, जौ लौं मन में खान। तौ लौं पण्डित मूरखौं, तुलसी एक समान।
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