“अडानी तो केवल फ्रंट है, सारा पैसा मोदी जी का लगा है”
“आजाद भारत के इतिहास पर गौर करें तो हमारे पास कभी ऐसा पीएम नहीं हुआ जो सिर्फ 12वीं पास हो, वह सरकार नहीं चला सकता लेकिन उसका अहंकार सबसे ऊपर है”
ये बयान राह चलते किसी आम व्यक्ति के नहीं बल्कि दिल्ली के मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर जम चुके अरविन्द केजरीवाल के हैं। प्रधानमंत्री मोदी पर राजनीतिक आक्रमणों के क्रम में केजरीवाल ने कई वर्षों के बाद ये आरोप लगाये हैं।
ध्यान देने वाली बात यह है कि ये आरोप केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा में खड़े होकर लगाए हैं।
वैसे उनके पूर्व के राजनीतिक आचरण को देखते हुए ये आरोप पूरी तरह से आश्चर्यचकित भी नहीं करते पर यह सोचने पर अवश्य मजबूर कर देते हैं कि एक समय प्रधानमंत्री मोदी पर राजनीतिक आक्रमण न करने की बात कहने वाले केजरीवाल ने फिर से ऐसा करना आवश्यक क्यों समझा?
केजरीवाल इतने अधीर क्यों ?
पिछले कुछ समय से केजरीवाल प्रधानमंत्री मोदी और केंद्र सरकार से अधिक नाराज़ दिखाई दे रहे हैं। क्या दिल्ली के बजट में विज्ञापन पर प्रश्न पूछना इसका कारण था? या फिर अपने सबसे करीबी मंत्रियों सिसोदिया और सत्येंद्र जैन के जेल जाना इसके पीछे का कारण है? कारण चाहे हो हों केजरीवाल का अचानक अधीर हो जाना उनकी कार्यशैली में झलक रहा है।
मज़े की बात यह है कि ऐसा करने के लिए वे विधानसभा के मंच का प्रयोग कर रहे हैं। दरअसल कुछ राजनीतिक जानकारों के अनुसार वे ऐसा करने के लिए दिल्ली विधानसभा का स्पेशल सेशन तक बुला ले रहे हैं।
वे राजनीतिक और प्रशासनिक विषयों पर कम और मोदी पर अधिक बोल रहे हैं। देश के अन्य राज्यों में गैर भाजपा दलों की सरकारें भी हैं लेकिन उन राज्यों में ऐसा दिखाई नहीं देता।
पिछले कुछ समय से तो ममता बनर्जी भी प्रधानमंत्री मोदी पर इस तरह की टिप्पणियाँ नहीं कर रही हैं। ऐसा कुछ करने के लिए किसी अन्य मुख्यमंत्री ने विधानसभा के मंच का ऐसा इस्तेमाल नहीं किया।
बिना सबूतों के असंसदीय टिप्पणी और आरोप लगाने का हश्र क्या होता है आप राहुल गाँधी को देख सकते हैं तो फिर?
क्या केजरीवाल को डर नहीं लगता ?
दरअसल केजरीवाल संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकार का ग़लत इस्तेमाल करना बखूबी जानते हैं। स्वयं वे कथित तौर पर पढ़े लिखे हैं। केजरीवाल जानते हैं संविधान द्वारा मिले विशेषाधिकार के तहत सदन में बोले गए शब्दों के लिए न तो वे जिम्मेदार हैं और न इसे किसी न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। सदन से बाहर हवा हवाई बातें कहकर और बिना सबूतों के ऐसे आरोप लगाने के परिणामों को वे पूर्व में भुगत चुके हैं।
बाहर ऐसे आरोप लगाने के बाद उनके साथ क्या हुआ, यह तो सबको याद ही है। आपको याद न हो तो आइये हम याद दिला देते हैं।
केजरीवाल- एक ‘यू टर्न’
केजरीवाल ने पंजाब चुनाव प्रचार के दौरान शिरोमणि अकाली दल के नेता बिक्रम सिंह मजीठिया पर आरोप लगाए कि मजीठिया ड्रग्स बेचते हैं और इंटरनेशनल ड्रग्स डीलर्स की सूची में उनका नाम है, इसलिए पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनेगी तो मजीठिया जेल में होंगे। बाद में जेल जाने के डर से स्वयं केजरीवाल ने मजीठिया को लिखा कि आरोप निराधार थे, इसलिए वे माफी मांगते हैं।
ऐसे ही केजरीवाल ने अपने तथाकथित ऐतिहासिक दस्तावेज, ‘भारत के सर्वाधिक भ्रष्ट लोगों की सूची’ में नितिन गडकरी का नाम भी जोड़ दिया था। ऐसा करने के बाद उन्होंने यह दावा भी किया था कि “गडकरी से माफी मांगने का सवाल ही नहीं और अगर नितिन गडकरी का कोर्ट में ट्रायल शुरू हुआ तो गडकरी की इतनी भद पिटेगी कि आप देखेंगे”।
बाद में इन्हीं केजरीवाल ने गडकरी से लिखित में माफी मांग ली। स्वर्गीय अरुण जेटली को तो शायद केजरीवाल जीवन भर ना भूल पाएं।
केजरीवाल ने पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली पर गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए लेकिन जब जेटली ने केजरीवाल के खिलाफ 10 करोड़ का मानहानि केस दायर किया तब केजरीवाल ने बयान दिया कि “बीजेपी माफी की भीख मांग रही है, कोर्ट में बहस होने दीजिए सच सामने आ जाएगा”
लेकिन वे अपने इस दावे से भी पीछे हट गये और बाद में उन्होंने जेटली को माफीनामा भेजा हालांकि अरुण जेटली ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।
अरविन्द केजरीवाल का आरोप लगाना और उसके बाद यू-टर्न लेने का सिलसिला सिर्फ भाजपा तक ही सीमित नहीं है कपिल सिब्बल और उनके बेटे पर भी केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। बाद में कार्यवाही के डर से केजरीवाल ने दोनों को खत लिखकर अपने बयानों के लिए खेद जता दिया था
अब आप समझ गए होंगे कि किस प्रकार केजरीवाल ने माफ़ी मांगने में डिग्री हासिल की हुई है और क्यों उन्होंने ऐसे आरोप लगाने के लिए विधानसभा का स्पेशल सेशन बुलाया। लेकिन प्रश्न यह है कि केजरीवाल ऐसा क्यों कर रहे हैं ?
केजरीवाल की नई रणनीति?
दिल्ली में प्रचंड बहुमत की सरकार है। एमसीडी में मेयर भी उन्हीं की पार्टी का है। यहाँ तक कि देश में कांग्रेस के बाद वह एक मात्र ऐसी पार्टी हैं जिनकी सरकार दो राज्यों यानी दिल्ली और पंजाब में है।
जी हाँ, यही वजह है।
वे शायद कांग्रेस को भाजपा के विरुद्ध विपक्षी दलों का नेतृत्व करने से रोकना चाहते हैं। केजरीवाल जानते हैं इस वक़्त कांग्रेस अपने इतिहास के सबसे निचले पायदान पर है। दल का नेता भी अब नेता से मात्र सदस्य बन चुका है। केजरीवाल कांग्रेस की इसी आपदा में अपने लिए अवसर के देख रहे हैं। कुल मिलाकर वे विपक्ष के नेता के तौर पर राहुल गाँधी की जगह लेने का प्रयास कर रहे हैं।
केजरीवाल इसी रणनीति के तहत प्रधानमंत्री मोदी पर नए-नए आरोप लगा रहे हैं। उन्हें शायद किसी ने यह विश्वास दिला दिया है कि प्रधानमंत्री की छवि को नुकसान पहुँचा कर ही नेता बना जा सकता है। वे जितने अधिक आरोप लगाएंगे उतने बड़े नेता बनेंगे।
इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि सबूत रहने और अदालत में बार-बार जमानत की अर्जी ठुकराये जाने के बावजूद वे अपने मंत्रियों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को सिरे से नकार देते हैं। पर उन्हें यह विश्वास है कि प्रधानमंत्री पर भ्रष्टाचार के उनके आरोपों को देश सही मान लेगा।
पर केजरीवाल आरंभ से ही बड़े आशावादी नेता रहे हैं। उनकी आशावादिता का सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि प्रधानमंत्री बनने का सपना उन्होंने 2014 से ही देखना आरंभ कर दिया था। यहाँ तक कि चुनाव परिणाम आने से पहले ही वे वाराणसी से ख़ुद को विजयी घोषित कर चुके थे। बस मामला यहाँ अटक गया कि वे नरेंद्र मोदी जी से मात्र 3,71,784 वोटों से हार गए थे।
इसी तरह पिछले कुछ वर्षों में वे देश के विभिन्न राज्यों में अपने पार्टी की बयान सरकार बनवा चुके हैं। ताजा उदाहरण गुजरात विधानसभा के चुनाव थे जहाँ उन्होंने लिख कर तो अपनी पार्टी की सरकार बनवा ली थी पर चुनाव परिणाम आने के बाद पता चला कि उनकी पार्टी मात्र 87 सीटों की कमी के कारण सरकार नहीं बना सकी।
ऐसे में वे अपने नए दावों और प्रधानमंत्री पर आरोपों के टट्टू पर पर सवार होकर केंद्र की सत्ता में पहुँचना चाहते हैं।दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल को प्रधानमंत्री मोदी पर लगाए आरोप और उन आरोपों के परिणाम याद रखने चाहिए।
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने प्रधानमंत्री पर पाकिस्तानी आतंकवादियों से मिले होने का आरोप लगाया था। इसका परिणाम क्या हुआ ?
यह याद न हो तो प्रधानमंत्री को ‘Coward and Psychopath’ (कायर एवं मनोरोगी) बोलने वाला अपना बयान याद कर लें। उनके आशावाद के लिए सही रहेगा।
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