क्या विपक्ष और सरकार साथ मिलकर काम कर सकते हैं? इस प्रश्न पर पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली का जवाब था; “बिलकुल कर सकते हैं! सरकार को विपक्ष के साथ परामर्श करना चाहिए”।
अपने सुलझे हुए व्यक्तित्व, हाजिर जवाबी एवं पक्ष-विपक्ष के साथ सामंजस्य बनाकर रखने वाले राजनेता देश में विरले ही हुए हैं। अरुण जेटली की गिनती ऐसे ही विरले राजनेताओं में होती है। पेशे से वकील रहे जेटली के राजनीतिक निर्णयों ने उनको अपनी ही नहीं विपक्षी दलों और नेताओं में भी सम्माननीय स्थान दिया।
अरुण जेटली की स्पष्टवादिता ही उनकी खासियत थी। आप चाहें उनके जवाब सुन लें या किसी बिल को पेश करते समय उनके द्वारा दी गई प्रस्तावना, विषय की व्याख्या करने में उनका कोई जवाब नहीं था। जेटली के सिर्फ भाजपा ही नहीं बल्कि अन्य पार्टियों के नेताओं से भी मित्रता रही। सही मायने में उन्होंने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर आदर्श राजनेता का उदाहरण पेश किया था।
मोदी सरकार के दौरान जब विपक्ष और शिवसेना के बीच मन-मुटाव हुआ तो शिवसेना की ओर से कहा गया कि संसद में अपने हक की बात उठाना सांसदों का कर्तव्य है, यह बात जेटली ने कही थी। यकीनन जेटली चाहे विपक्ष में रहे या सत्ता पक्ष में, उन्होंने ऐसे उदारण पेश किए जिनका प्रयोग विपक्षी दल भी करते थे।
उनके व्याख्या का तरीका ही था कि जम्मू-कश्मीर और धारा 370 के दुरुपयोग जैसे संवेदनशील विषय (जैसा कि इसे बना दिया गया था) पर जब वे गुलाम नबी आजाद के सामने बोल रहे थे तो सभी नेता शांति से उन्हें सुन रहे थे क्योंकि इतिहास चाहे कितना भी कठोर रहा हो, जेटली सम्बंधित तथ्यों और घटनाओं की व्याख्या जस के तस करते थे। ऐसा किसी राजनीतिक बदले के उद्देश्य से नहीं था बल्कि उनका मानना था कि इतिहास कितना भी कठोर हो उसे स्वीकार करके ही आगे बढ़ा जा सकता है।
जम्मू-कश्मीर के विकास और विलय के प्रश्न पर अरुण जेटली ने बड़ी प्रखरता से सदन में कहा था, “घाटी को लेकर आपके (कॉन्ग्रेस) सभी निर्णय और आकलन गलत निकले हैं…और आजाद साहब अगर आपको ब्लेम गेम (आरोप-प्रत्यारोप) ही खेलना है तो मैं बता दूं कि जब भी कश्मीर का इतिहास लिखा जाएगा तो उसमें पता चलेगा कि किसका दृष्टिकोण सही था, नेहरू का या मुखर्जी का और उस वक्त आपको बहुत तकलीफ होगी”।
तथ्यों को पेश करने की सरलता और उन्हें सटीक शब्दों और वाक्यों में पिरोने की उनकी कला इस स्तर की थी कि सदन में विपक्ष की ओर से आवाज नहीं आती थी क्योंकि वर्तमान हो या इतिहास, सरकार की नीति हो या कानून की व्याख्या, उन्हें सदन में रखने में जेटली को महारत हासिल थी।
जेटली ने अटल सरकार से लेकर मोदी सरकार तक में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर काम किया और इस दौरान उनके सुबह लगने वाले दरबार भी काफी चर्चित रहे। पक्ष के नेता, विपक्ष के नेता, युवाओं या पत्रकारों के साथ बैठकर विचारों का आदान प्रदान करते और अपना हास्य पक्ष भी उनके सामने रखते थे।
कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरुर कहते हैं; “वे सबको जानते थे, वे सच में ऐसे नेता थे जो लोगों से घिरे रहते थे। सामाजिक कार्यक्रमों में हमेशा उपस्थित रहते। ऐसे कार्यक्रमों में मेरी उनसे कई बार मुलाकात हुई। सब उनको जानते थे, पंसद करते और आमंत्रित करते थे, चाहे बीजेपी के लोग हो कॉन्ग्रेस के या किसी अन्य पार्टी के। राजनीति के बाहर भी सभी उनको जानते थे”।
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जेटली का एनडीए सरकार को बनाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्हें भाजपा का ‘ट्रबलशूटर’ कहा जाता था। जाहिर है जब नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री का चेहरा बनाया गया था और नीतिश कुमार ने एनडीए का साथ छोड़ दिया था तब जेटली ने ही रामविलास पासवान और चंद्रबाबू नायडु को एनडीए में मिलाकर गठबंधन को मजबूत किया था। वे जेटली ही थे जिनके कारण पंजाब के शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी के बीच 23 साल का लंबा राजनीतिक गठजोड़ रहा।
अरुण जेटली प्रखर वक्ता होने के साथ ही धैर्य के साथ सुनने वाले नेता थे। उनके कद का प्रभाव था कि राजनीतिक कार्यकर्ता ‘मोदी-वे’ और ‘जेटली-वे’ को लोकसभा या राज्यसभा के रास्ते के रूप में जिक्र करते थे। राफेल डील के समय विपक्ष द्वारा उठाये गए प्रश्नों का उन्होंने जिस स्पष्टता के साथ उत्तर दिया था, उसे भविष्य में हमेशा याद किया जाता रहेगा। उन्होंने सदन में यह सफलतापूर्वक साबित किया था कि कैसे एनडीए सरकार ने राष्ट्र हितों को सर्वोपरि रखकर सौदे को मूर्त रूप दिया। उन्होंने सौदे का फायदा, कॉन्ग्रेस के सौदे की कमियां और विपक्ष के ढ़ीले-ढ़ाले रवैए को जिस तरह संभाला वो उनकी राजनीतिक सॉफ्ट पावर थी।
उनके कार्यकाल के दौरान ऐतिहासिक निर्णय और आर्थिक सुधारों के रूप में सेवा एवं वस्तु कर (GST) और ‘डिमॉनेटाइजेशन’ ऐसी नीतियाँ रहीं जिनकी चर्चा आने वाले समय में लंबे समय तक रहेगी। विपक्ष का जबरदस्त विरोध, देश में चलते नरैटिव इन सबको वित्त मंत्री के तौर पर जेटली ने बड़ी ही सहजता से सुलझाया। उनका कहना था, “जनता काले धन के बीच नहीं रहना चाहती है इसलिए वो अभी ये छोटी असुविधा सह लेंगे क्योंकि उनको पता है कि इसके परिणाम आने के बाद अर्थव्यवस्था और मजबूत होगी, ईमानदार होगी”। GST बिल को लेकर देश के 28 राज्यों में सर्वसम्मति बनाने का श्रेय भी अरुण जेटली के धैर्य, लोकतंत्र में उनकी आस्था और एक राजनेता के तौर पर उनकी कुशलता को जाता है।
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जेटली ने कुछ समय के लिए रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी भी संभाली और इस दौरान उन्होंने नए युद्धक विमान और हथियार खरीदने के साथ ही कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए थे। पेशे से वकील रहे अरुण जेटली ने तीन तलाक और जम्मू कश्मीर पर लाए गए बिलों को ड्राफ्ट करने में अपना योगदान दिया था।
अरुण जेटली हमेशा 20 से 30 वर्ष के कार्यकर्ताओं से मुलाकात कर बदलती राजनीति और तकनीक को लेकर उनके पक्ष जानते थे ताकि वर्तमान परिस्थितियों को समझ सके। यह एक राजनेता का ऐसा गुण है जो उसे भविष्य की ओर देखने के लिए प्रेरित करता है। वे हमेशा राजनीति में धैर्य और दीर्घकालिक दृष्टिकोण में यकीन रखते थे। वर्ष 2019 में प्रधानमंत्री ने अपना दोस्त खोया तो देश के लोकतंत्र ने अपना शुभचिंतक, कुशल राजनीतिज्ञ और उनके दल ने अपने एक प्रखर नेता को। देश के लोकतंत्र में आस्था, उसकी वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था में भरोसा और देश के भविष्य में विश्वास अरुण जेटली को एक ऐसे राजनेता के रूप में प्रस्तुत करते हैं जो वर्तमान में ही नहीं बल्कि भविष्य में तमाम एकलव्यों के द्रोणाचार्य होंगे।