किसके राम पूछ लिया जाए तो प्रश्न थोड़ा विचित्र लग सकता है। विचित्र इसलिए क्योंकि पहली नजर में ऐसा लगता है कि प्रभु श्री राम तो एक ही थे, त्रेता युग वाले, सीता के वियोग में वन-वन भटकते, सुग्रीव से मैत्री निभाते, विश्वामित्र आदि ऋषियों के यज्ञ की रक्षा करने वाले, जनता को रावण के त्रास से मुक्ति दिलाने वाले, सभी एक ही तो थे, श्री राम! जब साहित्य की दृष्टि से देखेंगे, अलग-अलग काल के अलग-अलग भक्तों की दृष्टि से देखेंगे, तो श्री राम भी अलग-अलग हो जाते हैं। ये कुछ वैसा ही है जैसे दशरथ-कौशल्या आदि को वो पुत्र के रूप में दिखते थे। इसलिए छोटा ही तो है ये मानकर दशरथ उन्हें ऋषि विश्वामित्र की यज्ञ-रक्षा के लिए नहीं भेजना चाहते थे। माता सीता को पति के रूप में दिखे तो उन्हें वो अकेले वनवास भोगने देने को तैयार नहीं थीं। प्रजा को उन्हीं में राजा दिखता था तो पहले साथ वनगमन को चले और जब वो संभव नहीं हुआ तो उनके लौटने पर दीपावली मनाने लगे।
तो कहा तो जा ही सकता है कि एक होते हुए भी राम भिन्न-भिन्न भी होते हैं। उत्तरी भारत का कलाकार जब श्री राम का चित्र या मूर्ती बनाता है तो मुकुट गोल हो जाता है और भारत के दक्षिणी हिस्सों में जब मूर्ती बनती है तो मुकुट लम्बा हो जाता है। बंगाल के कृतिवास रामायण में राम देवी दुर्गा की उपासना में अपनी आँख ही कमल के फूल के बदले चढ़ाने को प्रस्तुत हो जाते हैं। उन्होंने शारदीय नवरात्र में देवी की उपासना की तो आज लोग उसी को अकालबोधन कहते, उसी काल की उपासना को प्राथमिकता देते हैं, वसंत को गौण कर देते हैं। दूसरी ओर रामेश्वर के राम शिव की, और शिव स्वयं श्री राम को उपास्य कहते नजर आते हैं। अभी हाल की बहसों में एक बहस ये भी उठी थी कि जीर्णोद्धार किये रहे राम जन्मभूमि मंदिर में श्री राम के साथ माता सीता इत्यादि का विग्रह होगा या नही? कई लोगों को तो इस बहस के बाद पता चला कि रामलला का मंदिर मतलब प्रभु के बाल रूप का मंदिर है! कोई बाल विवाह तो हुआ नहीं था कि बाल रूप के साथ भी पत्नी दिखें मूर्तियों में।
वाल्मीकि रामायण के आधार पर देखें तो श्री राम के गुणों की चर्चा तो होती ही है, शारीरिक संरचना के लिए भी कई शब्द मिल जाते हैं। सिर्फ सुन्दरकाण्ड का 35वां सर्ग देखें तो माता सीता द्वारा पूछे जाने पर पहले तो हनुमान जी श्री राम के गुणों की चर्चा करते हैं –
रामः कमलपत्त्राक्ष स्सर्वसत्त्वमनोहरः।
रूपदाक्षिण्यसम्पन्नः प्रसूतो जनकात्मजे।।5.35.8
अर्थ: जनकनन्दिनी, श्रीराम के नेत्र खिले हुए कमलों के समान विशाल तथा सुन्दर हैं। मुख पूर्णिमा के चन्द्र जैसा मनोहर है। वो जन्म से ही रूप और उदारता आदि गुणों से संपन्न हैं।
कुछ श्लोक आगे हमें शारीरिक संरचना का भी पता चलता है –
विपुलांसो महाबाहुः कम्बुग्रीवश्शुभाननः।
गूढजत्रुस्सुताम्राक्षो रामो देवि जनै श्श्रुतः।।5.35.15
दुन्दुभिस्वननिर्घोष स्स्निग्धवर्णः प्रतापवान्।
सम स्समविभक्ताङ्गो वर्णं श्यामं समाश्रितः।।5.35.16
अब यहाँ देखा जाये तो सोलहवां श्लोक ये बताता है कि उनका वर्ण श्याम है, अर्थात गोरे तो नहीं थे! एक भगवान शिव को छोड़ दें, तो “कर्पूरगौरं” कहकर किसी को गोरे रंग का बताया जाने का उदाहरण कम ही मिलेगा। हाँ देवी के नाम में ही “गौरी” दिखेगा, मगर उनका ही एक रूप “काली” भी हो जाता है। इसलिए गौर वर्ण से कोई विशेष आग्रह हिन्दुओं में रहा हो, ऐसा नहीं कहा जा सकता।
इसकी तुलना में जब हम मौजूदा दौर के प्रचार देखते हैं, तब जरूर ये गोरे रंग का विशेष आग्रह दिखता है। विदेशों से आये इस गोरे रंग का मोह कुछ ऐसा है कि कुछ वर्षों से इमामी लड़कों के लिए फेयर एंड हैण्डसम बनाती है। इसके 2005 में शुरू होने से लेकर 2015 की शुरुआत तक में ही कंपनी 200 करोड़ से ऊपर की क्रीम बेच चुकी थी। एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड्स कौंसिल ऑफ इंडिया जो ये तय करती है कि प्रचार कैसे दिखाए जायेंगे, उसे अगस्त 2014 में कहना पड़ा था कि सांवले रंग वालों को ‘जीवन के किसी क्षेत्र में नाकामयाब’ ना दिखाएँ। शादी से लेकर नौकरी तक में जिस देश में त्वचा के रंग पर निर्भर करते हों वहां गोरा बनाने का दावा करने वाली क्रीम का बाज़ार समझ में आता है। ऐसे में जब अचानक भगवान की छवि भी गौरवर्ण बनाकर पेश की जाये तो शक भी होता है।
हाल ही में काफी मशक्कत के बाद “आर्यन इन्वेशन थ्योरी” के झूठ को कुछ हद तक चुनौती दी गयी। अभी भी सभी लोग ये जानते और मानते हों कि आर्य कहीं बाहर से आये हमलावर नहीं थे, ऐसा भी नहीं। कुछ वर्षों की मेहनत से आर्मीनियाई नीली आंखों वाले ईसा मसीह को भूरी आंखों में बदलकर यूरोपियन नस्ल का सिद्ध किया जाने लगा है। भारत में भी जब पूरा भारत श्री राम के नाम मात्र पर एकजुट होता दिखता है तो कुछ लोग कहने आ ही जाते हैं कि श्री राम तो उत्तर के थे, दक्षिण में उतने प्रसिद्ध नहीं। ऐसे में जब कथित रूप से “आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस” के जरिये बनाए गए चित्र में श्री राम गोरे से दिखें तो प्रश्न करने से परहेज नहीं करना चाहिए। जब “अपने-अपने राम” कहा जाता है तो वो राम अपने भक्तों के होते हैं। उनकी नियत पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगा होता। किन्हीं हमलावरों ने जो छवि दिखाई है, उसपर प्रश्न उठाना तो बिलकुल वाजिब है।
ये बदलता हुआ भारत जो किसी विदेशी के दिए नाम, छवि या स्वरुप को स्वीकारने को सरलता से तैयार नहीं, उसे अच्छे बदलावों में तो गिना ही जाना चाहिए!