पश्चिम बंगाल में टीएमसी के नेता अनुब्रत मंडल को गिरफ्तार कर प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दिल्ली लाया जा चुका है। पश्चिम बंगाल की राजनीति को करीब से जानने वाले अनुब्रत मंडल यानी ‘केष्टो दा’ को जानते ही होंगे। उनकी एक पहचान टीएमसी और ममता बनर्जी के एक सिपहसालार के रूप में भी है।
अनुब्रत मण्डल की गिरफ़्तारी महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि लम्बे समय से कभी बीमारी का बहाना तो कभी कोर्ट की प्रक्रियाओं में मामले को उलझाकर वह इस गिरफ्तारी से बच रहे थे। पिछले वर्ष उन्हें सीबीआई भी गिरफ्तार कर चुकी थी।
पशु तस्करी से जुड़ा है मामला
सीबीआई ने 2020 में पशु तस्करी के मामले में केस दर्ज किया था जिसमें अनुब्रत मंडल का नाम भी सामने आया था। सीबीआई के मुताबिक 2015 से 2017 के दौरान सीमा सुरक्षाबल को 20,000 से ज्यादा पशुओं के कटे सिर मिले थे। आरोप है कि राज्य में सत्ताधारी राजनीतिक दल की सह से गायों की तस्करी बांग्लादेश की जा रही थी।
इस मामले में मंडल का परिवार भी शामिल है। इनकी बेटी के खाते में 17 करोड़ रुपये की लेनदेन सामने आया है। पूछताछ पर मंडल की बेटी सुकन्या ने बताया कि उसके पिता को ही उन वित्तीय खातों व लेन-देन की जानकारी है जिसके बारे में ईडी उनसे पूछताछ कर रही है। अनुब्रत मंडल को बंगाल से बाहर जाने न देने के लिए राज्य सरकार ने हर संभव प्रयास किया।
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क्योंकि ममता सरकार इसके परिणाम जानती है
अनुब्रत मंडल भले ही कभी चुनाव नहीं लड़े लेकिन विधानसभा चुनाव से लेकर पंचायत चुनाव तक टीएमसी को जिताने में उनकी अहम भूमिका रही है। वह बीरभूम के जिलाध्यक्ष हैं जो टीएमसी का गढ़ माना जाता है। इस वर्ष पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव प्रस्तावित हैं ऐसे में 3 जिलों के वोटर्स पर अपनी पकड़ रखने वाले अनुब्रत मंडल के बिना टीएमसी के लिए मुश्किलें आनी वाली हैं।
इन पंचायत चुनाव परिणाम से जो सन्देश आएगा उसका असर वर्ष 2024 के चुनावों में भी दिखना तय है। 42 लोकसभा सीटों वाला पश्चिम बंगाल सभी राजनीतिक दलों के लिए एक महत्वपूर्ण राज्य है। पिछले लोकसभा चुनावों में भाजपा ने अप्रत्याशित तरीके से अपनी सीटें 2 से बढाकर 18 तक पहुँचा दी थीं। इस कारण अब ममता बनर्जी का चिंतित होना जायज़ है।
‘दीदी’ की रणनीति में आएगा बदलाव
अनुब्रत मंडल ममता बनर्जी के खास हैं ऐसे लोग जिन्हें ‘राइट हैंड’ का दर्ज़ा दिया जाता है वह इसलिए क्योंकि कोई चुनावी रणनीति हो या पार्टी को किसी मुश्किल से निकालना, मंडल इसके लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार रहते हैं। इसीलिए उनकी छवि एक माफिया के रूप में भी है जो खनन, पशु तस्करी सहित कई अवैध गतिविधियों में शामिल रहते हैं। इसका एक उदाहरण वर्ष 2021 का विधानसभा चुनाव है जहां मंडल ने ही ‘खेला होबे’ के नारे को आगे बढ़ाया था। चुनाव से पहले भी परिणाम के बाद भी
ऐसे में त्रिपुरा, मेघालय के हालिया विधानसभा चुनाव में विपरीत परिणामों के बाद ममता बनर्जी के लिए यह बड़ा झटका है। जहां वह राज्य से बाहर निकलकर पार्टी के प्रसार पर फोकस कर रही थीं, अब उनकी वह रणनीति शून्य हो चुकी है क्योंकि इस घटना के बाद उन्हें राज्य में ही ध्यान केंद्रित करना पड़ेगा। तो फिर प्रश्न उठता है कि उनके राष्ट्रीय नेता बनने के प्लान का क्या?
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दिल्ली अब दूर हो गई है
वैसे तो आज कल राष्ट्रीय पार्टी बनने को ही उस पार्टी के नेता स्वयं को राष्ट्रीय नेता समझ लेते हैं लेकिन उनके इस आकलन में सबसे बड़ी कमी यह है कि क्या वे देश की जनता के भावनाओं के अनुरूप कार्य कर रहे हैं? देश की जनता की सबसे बड़ी इच्छा यह होती है कि उनका नेता भ्रष्टाचार में लिप्त ना हो शायद इसलिए बेईमान लोग भी अपना नेता ईमानदार ही चाहते हैं लेकिन ममता बनर्जी भ्रष्टाचार के जाल में धीरे-धीरे फंस गयी हैं। हो सकता है कि भ्रष्टाचार में वह पहले से शामिल रही हों लेकिन उनकी मुश्किल यह है कि अब वह धीरे-धीरे सामने आ रहा है।
इससे पहले उनके मंत्री पार्थ चटर्जी भ्रष्टाचार के एक मामले में जेल में है वहीं उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी कोयला घोटाले में घिरे हुए हैं। पार्टी और सरकार का मुखिया होने के नाते इन सभी घोटालों में ममता बनर्जी की भूमिका भी संदिग्ध नजर आएगी।
भ्रष्टाचार का तमगा लिए क्या कोई नेता देश को राष्ट्रीय नेतृत्व दे सकता है? जिस तीसरे मोर्चे का नेतृत्व करने का सपना ममता देख रही हैं अब क्या कोई अन्य राजनीतिक दल ऐसे नेता के लिए एकजुट हो पाएंगे? एक बार के लिए अगर सोचें कि ‘भ्रष्टाचारी’ अनिवार्यता होने के नाते केसीआर जैसे तीसरे मोर्चे के अन्य नेता समर्थन दे भी दें लेकिन क्या वोटर स्वीकार कर पायेगा ?