तालिबान शासित अफगानिस्तान में महिलाओं-बच्चियों पर हो रहे अत्याचार थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। बीते शनिवार (10 सितम्बर, 2022) को अफगानिस्तान के पक्तिया प्रान्त में छठी कक्षा से ऊपर की लड़कियों के स्कूलों को एक बार फिर बन्द कर दिया गया है।
तालिबान शासन के एक साल पूरे होने के बाद पक्तिया प्रान्त की राजधानी गार्डेज में चार और समकानी जिले में एक स्कूल अभी खुले ही थे कि तालिबान ने लड़कियों के इन पांचों स्कूलों को जबरन बन्द कर दिया है।
स्थानीय मीडिया रिपोर्टस के अनुसार, औपचारिक तौर पर इन स्कूलों को खोलने की अनुमति तालिबान ने नहीं दी थी बल्कि स्थानीय लोगों और शिक्षकों के प्रयास से ये स्कूल खुले थे। हालाँकि, तालिबानियों को इसकी भनक लगते देर नहीं लगी और उन्होंने स्कूलों पर ताला लगाते देर नहीं लगाई।
स्कूल बन्द करवाने पर विरोध प्रदर्शन
बीते शनिवार को जब राजधानी के गार्डेज स्कूल में छात्राएं कक्षाओं के लिए गईं, तो उन्हें घर लौटने के लिए कहा गया। इस घटना के बाद, पक्तिया प्रान्त में दर्जनों लड़कियों ने सड़क पर विरोध प्रदर्शन शुरु कर दिया। गार्डेज में तालिबान शासन को कोसते हुए, नारे लगाते हुए एक रैली भी निकाली गई। छात्राओं ने तालिबान शासन से गुहार भी लगाई है कि स्कूलों को दोबारा खोल दिया जाए।
अफगानिस्तान में लड़कियाँ अपने भविष्य को लेकर बेहद चिन्तित हैं। टोलो समाचार के हवाले से, मुजदा नामक एक छात्रा स्कूल बन्द होने पर कहती हैं, “यह तथ्य है कि स्कूल बन्द हो गए हैं, जो हमें झकझोर कर रख देता है। हमें नहीं पता कि स्कूल बन्द होने के बाद हमारी परीक्षा होगी या नहीं और लड़कियों को कक्षा में जाने की अनुमति मिलेगी यह नहीं।”
तालिबान का सत्य
आज से एक साल पहले जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया था तो बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर महिलाओं की शिक्षा और स्वतंत्रता के पुख्ता इंतजाम करने की बात कही थी। उस पर भारत का मीडिया भी लहालोट होता थका नहीं। हर जगह प्रचार किया गया कि ये तालिबान अब बदल गया है। यह प्रगतिशील तालिबान है।
तालिबान साल 1996 से 2001 की उन्हीं यादों और उसी दौर को वापस ले आया है, जिस दौर में महिलाओं की शिक्षा पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और महिलाओं को चार दीवारी के भीतर कैद कर दिया गया था। सत्य यही है कि महिला विरोधी यह तालिबान न तब सुधरा था और न ही आज सुधरा है।