संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान मंगलवार को लोकसभा में जम्मू-कश्मीर से संबंधित दो अहम बिल (विधेयक) पेश करने के दौरान टीएमसी सांसद सौगत रॉय की टिप्पणी ने सदन में विवाद खड़ा कर दिया। रॉय ने जम्मू कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जे पर बात करते हुए कहा कि बीजेपी द्वारा अनुच्छेद 370 के उन्मूलन के पीछे श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा दिया गया ‘एक निशान, एक विधान, एक प्रधान’ का ‘राजनीतिक स्लोगन’ था।
गृहमंत्री अमित शाह ने जरूर सदन में सौगत रॉय को उचित जवाब दे दिया है पर पश्चिम बंगाल की संघर्षपूर्ण भूमि से आने वाले टीएमसी सांसद का देश में ‘एक निशान, एक विधान, एक प्रधान’ पर प्रश्न उठाना भारत की अखंडता के खिलाफ है। अनुच्छेद 370 के उन्मूलन का समर्थन न सही पर देश में एक संविधान पर प्रश्न उठाकर सौगत रॉय ने देश की प्रभुता को चुनौती पेश की है।
हाल ही में विधानसभा चुनावों में हार के बाद जो ‘उत्तर बनाम दक्षिण’ का नरैटिव गढ़ा गया है, उसी के तहत सौगत रॉय को अनुच्छेद 370 का उन्मूलन भी खटक रहा है। मात्र चंद वोटों के लिए यह नरैटिव भारत को उत्तर से दक्षिण और क्राउन एरिया में जम्मू कश्मीर से अलग कर देना चाहता है।
जम्मू कश्मीर पर सौगत रॉय की टिप्पणी निंदनीय इसलिए भी है क्योंकि यदि उन्हें आज जम्मू-कश्मीर के भारत का हिस्सा न होने से कोई आपत्ति नहीं है तो वे बंगाल विभाजन से भी सहमत रहे होंगे। पश्चिम बंगाल ने आजादी के समय विभाजन का खूनी संघर्ष देखा है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी बंगाल विभाजन के समय वृहद हिंदू समाज के रक्षक बनकर उभरे थे और इसे भारत का अभिन्न अंग बनाए रखन के लिए कड़ा संघर्ष किया था।
यह सच है कि जम्मू-कश्मीर के लिए भी श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने संघर्ष किया था पर यह मात्र उनका राजनीतिक लक्ष्य नहीं था बल्कि यह तो हर भारतीय का स्वप्न था। देश में एक संविधान और एक विधान हो, यह किसी व्यक्ति की राजनीति इच्छा नहीं थी बल्कि यह आजादी के नेतृत्वककर्ताओं का लक्ष्य था कि देश आजाद हो, एक हो। इसके ऊपर भी अगर वे देश को संगठित करने के लिए किसी राजनीतिक व्यक्तित्व की तलाश कर रहें हो तो उन्हें सरदार पटेल का नाम लेना चाहिए। यह सरदार पटेल ही थे जिन्होंने जम्मू-कश्मीर में सेना भेजने का फैसला किया, जिसने पाकिस्तान के सैनिकों को हराया और यह सुनिश्चित किया कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बना रहे।
भारत की अखंडता बनी रहे यह भारतीयों का लक्ष्य है कोई राजनीतिक मूवमेंट नहीं, यह सौगत रॉय को समझने की आवश्यकता है। चुनाव परिणामों में हार के बाद ‘उत्तर बनाम दक्षिण’ की बहस छेड़ने वालों को जरूर जम्मू कश्मीर को भारतीय हिस्से की रूप में देखकर परेशानी हो रही है। हालांकि इस बीच यह समझना चाहिए कि भारत की अखंडता किसी राजनीतिक दल ने नहीं बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सर्वेसर्वा रही जनता ने सुनिश्चित की है। यह जनता ही है जिसने देश में ‘एक निशान, एक विधान, एक प्रधान’ को सर्वसम्मति भी दी और इसे आगे बढ़ाने वालों को सत्ता में लाकर अपने देश के हिस्से को वापस मां भारती से जोड़ दिया है।
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