रावण से युद्ध जीते थोड़ा समय बीत चुका था। कोसलपुरी में रामराज्य था और कोई समस्या आए भी तो श्रीराम अपने दरबार में समस्या को निपटाने के लिए तैयार ही होते थे। समस्याएँ रामराज्य में कम ही आती थी तो दरबार का समय आपसी बातचीत में भी जाता था। ऐसे ही एक दिन दरबार में लोग आपस में बात कर रहे थे जब एक दरबारी को हँसी आ गयी। ठहाका कुछ ऐसा जोरदार था कि राम जी को रावण से हुआ युद्ध याद आ गया। जब वो तीर मारते तो रावण का सर कटकर हवा में उड़ता और ठहाका लगाता हुआ चरणों के आस-पास आ गिरता।
श्रीराम को लगता कि सर काटे जाने पर भी कुछ नहीं हुआ, इसलिए रावण का सर उनका मज़ाक उड़ने के लिए अट्टहास करता है। वास्तविक कारण ये था कि अज्ञानी-अहंकारी, विषय-वासनाओं में लिप्त रहने वाले शरीर से अलग होने पर बुद्धि-ज्ञान से संपन्न रावण का सर प्रसन्न होकर हँसता था। श्री राम ने रावण के सर के हँसने के वास्तविक कारण पर कभी ध्यान नहीं दिया था और जब दरबारी रावण की तरह हँसता दिखा तो वो क्रुद्ध हो गए। उन्होने अयोध्या नगरी में, कोसलपुरी देश में हँसने पर ही प्रतिबन्ध लगा दिया!
इसका परिणाम ये हुआ कि लोगों ने एक दूसरे की आँखों में आँखें डालकर बात करना बंद कर दिया। डर था कि कहीं हँसी न आ जाए। समारोह-आयोजन इत्यादि में लोग इकठ्ठा होते तो हँसी-ठिठोली भी होती, इसलिए उन्हें भी बंद किया गया। बच्चों तक का खेलना, आपस में घुलना-मिलना बंद हो गया। यज्ञ आदि अनुष्ठान बंद हुए तो देवताओं ने ब्रह्मा जी को बताया। ब्रह्मा जी अयोध्या आए और उन्होंने एक वृक्ष का रूप धारण करके नगर के बाहर ही डेरा जमा लिया। संयोग से एक लकड़हारा पेड़ के पास से गुजरा, और वृक्ष उसे देखकर जोर-जोर से हँसने लगा। पेड़ की हँसी सुनकर लकड़हारे को हँसी आई।
लकड़हारे ने जब हँसने वाले पेड़ की बात बताई तो पहले तो जाँचने गए उसके परिवार के लोग हँसे, फिर मोहल्ला, फिर सिपाहियों को पता चला तो वो हँसे, कोतवाल हँसा और जानकारी मिलने पर दरबारी भी देखने गए और वो हँसने लगे। इससे परेशान होकर सबने पेड़ काटने की कोशिश की, लेकिन जो पेड़ को काटने के लिए कुल्हाड़ी लिए बढ़ता, पेड़ उसके साथ अजीब हरकत करता! पेड़, पत्थर मारने लगता! जब श्री राम को इस विचित्र पेड़ का पता चला तो वो स्वयं पेड़ को काटने निकले। कहीं पेड़ काटने के लिए राम-बाण न चला दिया जाए, जिसका जयंत पर प्रभाव देवता देख ही चुके थे, इसलिए पेड़ बने ब्रह्मा जी भागे वाल्मीकि जी के पास।
महर्षि वाल्मीकि आए, उन्होंने हँसी विहीन अयोध्या की दशा देखी तो उन्होंने श्री राम को समझाया। वह बोले कि रावण के आतंक से लोग मुक्त हैं, इसलिए हँस रहे हैं। लक्ष्मी जी भी कलह करने वालों के पास नहीं आती, हँसते-मुस्कुराते लोगों के पास ही आती हैं। ये आपने कैसा विचित्र नियम बना दिया है? थोड़ा सोचने विचारने पर श्रीराम को भी समझ में आया कि नियम गलत है। इस तरह अयोध्या से हँसने पर लगा प्रतिबन्ध हटा।
वाल्मीकि जी की ही लिखी मानी जाने वाली “आनंद रामायण” में जो विचित्र कथाएँ आती हैं, उन्हें पढ़ लेने का, जानने का महत्व क्यों बढ़ जाता है? इसलिए क्योंकि पौराणिक कथाओं को तोड़-मरोड़ कर युवाओं के लिए प्रस्तुत करने वाले हाल के ही दौर के एक तथाकथित माइथोलोजिस्ट, गोलू, अक्सर ऐसी ही कहानियों का प्रयोग करते हैं। कार्टून-एनीमेशन में ऐसी कहानियाँ बच्चों को पसंद आती हैं, इसलिए शासन से गलत नियम बन सकते हैं, ये समझाने के लिए ऐसी कहानियां उपयोगी होंगी। फिर ऐसी कथाओं के जरिये, कोई कालनेमि जनता में असंतोष भी बढ़ा सकता है।
इस कहानी को उस हिस्से के लिए याद रखिए, जहाँ महर्षि वाल्मीकि हँसी-खुशी रहने वाले लोगों के पास लक्ष्मी जी के आने का वर्णन करते हैं। जिसे स्लम एरिया कहते हैं, या फिर कई बार भारतीय गाँवों में भी आपको छोटी-छोटी बातों पर होने वाले झगड़े दिख जाएँगे। स्लम एरिया में तो ऐसे झगड़े पानी की कतार में पहले या ज्यादा पानी लेने तक के लिए होते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में इसने ये कहा, उसने वैसा कैसे कहा, खेत में किसी पशु के घुसने से लेकर भूमि विवाद में अदालत के चक्कर लगाते लोग दिखेंगे। जो आह गाँव-वाह गाँव करने वाली जमात है, वो असल में 20-30 वर्षों से गाँव में रही नहीं, इसलिए उन्हें बदली हुई जमीनी सच्चाई पता ही नहीं है।
इस झगड़े-कलह का नतीजा आपको स्पष्ट रूप से आर्थिक स्थिति पर पड़ता दिखेगा। नहीं, झगड़े के बाद मार-पीट और फिर उसके बाद हुए अस्पताल, थाने-कचहरी के खर्चे बाद में आते हैं। ऐसे कलह का परिणाम होता है आपस में, एक-दूसरे से हँसकर बात करना बंद होना। फिर समाज का आपसी विश्वास खत्म होता है। जिनका एक-दूसरे पर विश्वास न हो, वो साथ मिलकर काम भी नहीं कर सकते। समुदाय के रूप में काम नहीं करने का सीधा मतलब है कि गाँव के तालाब उसी तरह समाप्त होंगे जैसे शहरों के हुए हैं। कूड़े-कचरे का प्रबंधन नहीं होगा। ऐसी समस्याएँ सीधा कृषि की क्षमता पर प्रभाव डालेंगी। कूड़े से जुड़ी बीमारियाँ बच्चों के अगली पीढ़ी के स्वास्थ्य पर असर डालेंगी।
जब अमीर का और अमीर होते जाना और गरीब का गरीब होते जाना कहते हैं तो उसका एक अर्थ शहरी आबादी का और धनी तथा ग्रामीण का निर्धन होते जाना भी तो होता ही है। मोटे तौर पर आप ऐसा समझ सकते हैं कि आनंद रामायण जैसे ग्रंथों को पढ़ना बंद करने से आपने आक्रमणकारियों को अपना एक शास्त्र, शस्त्र की तरह प्रयोग करने के लिए दे दिया है। आपने ग्रन्थ को केवल धार्मिक अर्थों तक सीमित करके उसके सामाजिक व्यवस्था से जुड़े सन्देश को लुप्त कर दिया है। इसके अलावा बच्चों से एक रोचक कहानी छीनने का जो निकृष्टतम कृत्य है, उसका पाप भी जोड़ लीजिये।
अब अगर यहाँ तक पहुँच गए हैं तो याद कीजिये कि बचपन में कुल्हाड़ी या कोई काटने वाला औजार हाथ आते ही उसे हर जगह आजमाना शुरू किया जाता था न? ये कुछ-कुछ ऐसा है जैसे नियम बनाने की शक्ति होने पर हँसने-रोने के लिए नियम बना देना। फिर महर्षि वाल्मीकि को आकर याद दिलाना पड़ता है कि हर चीज के लिए आप नियम ही बनाने लगें, ये आवश्यक नहीं। जहाँ जरूरी हो, वहीं इस शक्ति का प्रयोग किया जाता है। काफी कुछ बायकॉट की शक्ति मिल जाने जैसी ही बात है। भस्मासुर की तरह अपने ही सर हाथ रखकर इस शक्ति को जाँचा नहीं जाता। कहाँ प्रयोग करना है, कहाँ नहीं, उसपर विचार कर लीजिये।