रूसी राष्ट्रपति पुतिन बोले और क्या खूब बोले। बोले कम, गरजे अधिक। गरजने से अधिक बरसे भी। बरसे जिसमें पश्चिम बोले तो अमेरिका भींगा। चार यूक्रेनी शहरों के रूस में ‘मिलाने’ के ‘जनमत संग्रह’ के मसले को तो बमुश्किल छुआ। नाटो के विस्तार को भी बस एकाध वाक्य में समेट दिया, लेकिन पश्चिम को उन्होंने धोया, सुखाया और फिर बिछाया।
पश्चिम को लालची बताते हुए पुतिन ने घोषणा की, ‘वे (यानी पश्चिमी देश) अपने वित्त और तकनीक का इस्तेमाल करते हुए अपनी मर्जी दूसरे देशों पर थोपते हैं। वे रूस जैसे देशों को अपना गुलाम और उपनिवेश बनाना चाहते हैं।’
पुतिन यहीं नहीं रुके। उन्होंने पश्चिमी देशों को दूसरे मुल्कों को अस्थिर करनेवाला, आतंकी अड्डे तैयार करनेवाले और दूसरे देशों की संप्रभुता छीननेवाले लुटेरे तक करार दिया। उन्होंने कहा कि पश्चिमी देश ‘आधिपत्य-कर’ वसूलना चाहते हैं और उनकी लालच की वजह से ही सभी पश्चिमी मुल्क एक साथ रूस पर इस मिश्रित युद्ध में मुब्तिला हैं।
पश्चिम चाहता है हमें उपनिवेश बनाना
रूसी राष्ट्रपति का यह बयान देखिए, “वे हमें अपना उपनिवेश बनाना चाहते हैं। वे नहीं चाहते कि हम मुक्त रहें। वे चाहते हैं कि हम रूसी आत्माविहीन गुलामों की भीड़ बने रहें।”
रूसियों को संबोधित करते हुए कहीं पुतिन पोस्ट-मॉडर्न नजर आते हैं, कहीं दार्शनिक और कहीं इन सब से बढ़कर एक ‘उन्मुक्त आत्मा’। हाँ, पश्चिम से उनकी उत्कट नफरत छिपाए नहीं छिपती, “नियम-आधारित कानून, जिनकी चर्चा पश्चिम करता है, वह बकवास है। किसने ये नियम बनाए..रूस एक प्राचीन देश और सभ्यता है और हम इन ‘फर्जी’ नियमों के साथ नहीं खेलेंगे।”
पुतिन के मुताबिक पश्चिमी देशों के पास कोई नैतिक आधार नहीं कि वे जनमत-संग्रह का विरोध करें, क्योंकि उन्होंने हमेशा दूसरे देशों की स्वायत्तता का उल्लंघन किया है- “पश्चिमी संभ्रांत वर्ग सर्वाधिकारवादी, निरंकुश और रंगभेदी हैं।”
पुतिन के शब्द-बाण यहीं नहीं रुके। उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों ने गुलामों का वैश्विक व्यापार शुरू किया, मूलनिवासी अमेरिकियों का नरसंहार किया, भारत को लूटा, अफ्रीका को बर्बाद किया और चीन को युद्ध के जरिए अफीम खरीदने को बाध्य किया। वे रूस के खिलाफ हैं और खुद को ‘सुसंस्कृत’ कहकर दूसरों के साथ भेदभाव करते हैं।
पश्चिम ने धर्म त्याग कर शैतान को अपनाया
पुतिन अपने भाषण में एक धार्मिक व्यक्ति के तौर पर भी खुद को दिखाते हैं और सर्व-समावेशी भी। वह रूसियों को याद दिलाते हैं कि रूस ईसाइयत, इस्लाम, यहूदी और बौद्ध धर्म के समावेश और एक मजबूत केंद्र की वजह से मजबूत है।
पुतिन याद दिलाते हैं, “पश्चिम ने धर्म का त्याग कर दिया है और शैतान को अपना लिया है”। वह कहते हैं कि पश्चिम स्वाधीनता और प्रजातंत्र की बातें भले कितनी भी करे, लेकिन सच इसका ठीक उल्टा है। एकध्रुवीय विश्व और लोकशाही दोनों उल्टी बातें हैं।
रूसी राष्ट्रपति पश्चिमी देशों पर कड़ा प्रहार करते हुए कहते हैं, “उन्होंने परमाणु हथियारों का प्रयोग किया। बेवजह जर्मनी के शहरों को धूल में मिलाया। कोरिया, वियतनाम पर हमला किया। आज तक उन्होंने जापान, दक्षिण कोरिया और जर्मनी जैसे कई देशों पर ‘कब्जा’ किया हुआ है, लेकिन बहलाने को उन्हें ‘मित्र’ कहते हैं।”
पश्चिमी वर्चस्व का टूटना तय है
पुतिन ने कहा कि अमेरिका दुनिया को अपनी मर्जी से हाँकता है। जो भी पश्चिमी आधिपत्य को चुनौती देता है, वह तुरंत ही दुश्मन बन जाता है। यह नव-उपनिवेशवाद रूस, चीन और ईरान को ‘काबू’ करने में छिपा है। सच तो झूठ और अतिवाद के जरिए नष्ट कर दिया गया है।
पुतिन ने पश्चिमी आधिपत्य के टूटने की भविष्यवाणी तो की ही, साथ ही पश्चिमी समाज पर भी तंज कसा। उन्होंने अपने लोगों से पूछा कि क्या वे चाहते हैं कि पिता-माता की जगह पैरेंट 1 और पैरेंट 2 कहलाएं?
पुतिन ने लगभग चेतावनी के अंदाज में कहा कि पश्चिम यह जान ले कि वह डॉलर और सोशल मीडिया के जरिए अपने लोगों को खिला नहीं सकते। हालाँकि, पश्चिमी संभ्रांतों को उस खाद्य एवं ऊर्जा संकट का समाधान खोजने में कोई दिलचस्पी नहीं, जो उन्होंने बनाई है। पश्चिम के इस आक्रमण के खिलाफ रूस हरेक कदम पर खड़ा है और नए गठबंधन भी बन रहे हैं।
पुतिन ने असल में क्या कहा?
रूसी राष्ट्रपति के इस भाषण को अगर बिंदुओं में समझना चाहें, तो कुछ इस तरह से समझिएः
- उन्होंने चार यूक्रेनी राज्यों के रूस में विलय को जायज ठहराया, बल्कि उसे मुद्दा ही नहीं बताया।
- अमेरिका के खिलाफ सीधे युद्ध नहीं, लेकिन घात-प्रतिघात चलता रहेगा।
- पश्चिम के खिलाफ रूस और ईरान को साथ लेकर एक ध्रुव बनाने के भी संकेत दिए।
- भारत और अफ्रीका के शोषण का उदाहरण देकर उन्होंने एशिया और अफ्रीका को भी साधने के संकेत दिए।
- बहुध्रुवीय विश्व की वकालत कर उन्होंने जता दिया है कि रूस उसमें से एक ध्रुव की अगुआई करने को तैयार है।
- धार्मिक समूहों का नाम लेकर वह रूस की आंतरिक राजनीति को साध रहे हैं।
- समाज और परिवार की बात कर वह पश्चिम की टूटी हुई नस को दबा रहे हैं।
कुल मिलाकर देखें तो पुतिन ने जितना कहा है, उससे कहीं अधिक उनके भाषण के मायने होनेवाले हैं।