अमेरिकी विशेषज्ञों के नवीनतम विश्लेषण में पाया गया है कि, महँगाई ग्रामीण अमेरिका को कुचल रही है और बहुत से लोगों को अपना आर्थिक बोझ कम करने के लिए शहरों की ओर जाने के लिए मज़बूर कर रही है। आयोवा स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डेव पीटर्स ने स्कूल के स्मॉल टाउन प्रोजेक्ट के अन्तर्गत अमेरिका के ग्रामीण समुदाय के लोगों पर मुद्रास्फीति के प्रभाव का अध्ययन किया जिसमें उन्होंने पाया कि इस साल ग्रामीण अमेरिकियों के खर्च में 9.2% की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन उनकी कमाई में केवल 2.6% की वृद्धि हुई है।
महँगे ईंधन से अमेरिकी गाँवों में संकट
पीटर्स ने अपने अध्ययन में यह भी इंगित किया है कि महंगाई की सबसे ज्यादा मार कहाँ पर पड़ी है। उन्होंने कहा, “किसानों और ग्रामीण समुदाय पर मुख्य रूप से ईंधन की कीमतों की सबसे ज्यादा मार पड़ी है, गैस और डीजल की कीमतों ने निचले समुदाय को चिन्ता में डाल दिया है।”
गौरतलब है कि अमेरिका में हाल ही में मुद्रास्फीति 40 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी जो सभी अमेरिकी परिवारों को प्रभावित कर रही है। लेकिन पीटर्स ने कहा कि, “ग्रामीण इलाकों में यातायात कठिन होने के कारण स्थिति ज्यादा भयावह हो गयी है। क्योंकि अमेरिका के ग्रामीण लोगों को किराने का सामान जैसी दैनिक आवश्यकताएं प्राप्त करने के लिए भी लम्बी दूरी तय करनी पड़ती है। काम पर जाने के लिए, स्कूल के लिए, चिकित्सा के लिए भी गाँवों से काफी दूर जाना पड़ता है और इसके लिए कोई सार्वजनिक परिवहन की व्यवस्था नहीं है”।
यहाँ यह जानना जरूरी है कि अमेरिका का क्षेत्रफल बहुत अधिक होने के कारण प्रति वर्ग किमी जनसंख्या घनत्व बहुत कम है, इसलिए गाँव शहरों से कई सौ किलोमीटर दूर होते हैं और वहाँ स्कूल और अस्पतालों की भी कोई खास व्यवस्था नहीं होती। उसकी तुलना में भारत के ज्यादातर गाँव किसी न किसी शहर के समीप होते हैं।
इस अध्ययन में पाया गया कि दो साल पहले की तुलना में गैसोलीन के भुगतान के लिए ग्रामीण परिवारों को सालाना 2,500 डॉलर अधिक खर्च करना पड़ रहा है। इसके साथ ही, स्वास्थ्य बीमा, पशु चिकित्सा और घरों को गर्म करने के लिए आवश्यक ईंधन की कीमतें भी बढ़ रही हैं।
अमेरिका के अधिकांश ग्रामीण घरों को तरलीकृत पेट्रोलियम या तरलीकृत प्रोपेन के टैंक खरीदने पड़ते हैं, या उन्हें फ्यूल ऑयल खरीदना पड़ता है। कोरोना के कारण अस्थिरता व रूस यूक्रेन युद्ध जैसे वैश्विक कारणों से इनकी लागत में भी करीब 1,000 डॉलर की वृद्धि हुई है। यह वृद्धि अमेरिका समेत पूरे विश्व को प्रभावित कर रही है।
मुद्रास्फीति के जारी आंकड़ों के जवाब में, राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी कहा कि, “इस मुद्दे से निपटना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता थी। बाइडेन ने कहा कि प्रशासन गैस की कीमतों को कम करने के लिए रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार से तेल जारी करना जारी रखेगा, और फेडरल रिजर्व को भी मुद्रास्फीति से निपटने में आवश्यकता सहायता व अधिकार दिए जाएँगे।”
एक और बयान में बाइडन ने स्वीकार किया कि, “मुद्रास्फीति हमारी सबसे महत्त्वपूर्ण आर्थिक चुनौती है और हमें कीमतों में बढ़ोतरी को नियंत्रित करने के लिए और अधिक प्रयास करने की जरूरत है।”
बढ़ती ब्याज दरों से गहरा रही है मंदी
अमेरिका में फेड भी अब अर्थव्यवस्था में मंदी लाए बिना मुद्रास्फीति को कम करने के लिए फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है, और बीते छह महीनों में चार बार ब्याज दरें बढ़ा चुका है। प्रिंसटन के अर्थशास्त्री एलन ब्लाइंडर ने बताया कि, “फेड ने ब्याज दरों को बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को पहले ही धीमा कर दिया, जिससे खर्च में तो कटौती हुई पर यदि आप लगातार ऐसा करेंगे, तो आपको मंदी का सामना करना ही पड़ेगा।”
पीटर्स ने चेतावनी दी कि यदि कीमतें बहुत अधिक समय तक बहुत अधिक रहती हैं, तो यह बहुत से ग्रामीण अमेरिकियों को एक खतरनाक चक्र में डाल देगी। तब लोगों को अपनी वर्षों की बचत में से खर्च करना पड़ेगा, जो पीटर्स के मुताबिक पहले ही शुरू हो चुका है।
इसके बाद, उन्हें दैनिक और आवश्यक वस्तुओं पर भी अपने जोड़ी गयी बचत के विवेकाधीन धन का उपयोग करने के लिए मजबूर किया जाएगा, और उसके बाद वे क्रेडिट कार्ड के कर्ज में डूब जाएंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि जहाँ एक औसत ग्रामीण अमेरिकी के पास 2 साल पहले 10,000 डॉलर हाथ में थे, अब मात्र 5,000 डॉलर ही उनके हाथ में हैं।
लेकिन इससे भी बड़ी चिंता की बात यह है कि ऐसे संकट में ग्रामीण अमेरिका के कुछ लोग ‘होम इक्विटी लाइन ऑफ क्रेडिट’ लेना शुरू कर देंगे क्योंकि उनके घरों का मूल्य भी बढ़ गया है, खासकर मिडवेस्ट क्षेत्र में। लेकिन यह रणनीति उलटी पड़ सकती है।
क्योंकि अगर घर की कीमतें वापस से गिर गयीं और उन्हें गिरवी सम्पत्ति के साथ छोड़ दिया जाता है तो उनके घर का मूल्य कवर नहीं होगा। इसलिए यह सब कारक मिलकर ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को शहरों के करीब जाने पर विचार करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं जो कि जटिल प्रक्रिया है।
गाँवों से शहरों की ओर पलायन ही चारा
अध्ययन में आयोवा और नेब्रास्का में ऐसे बहुत से ग्रामीण अमेरिकी हैं जो वास्तव में अपने बजट को बड़ी मेहनत से सम्भालने की कोशिश कर रहे हैं। वो शहरों में काम करके शहर की न्यूनतम मजदूरी प्राप्त करना चाहते हैं, लेकिन वे इतनी यात्रा नहीं कर सकते क्योंकि परिवहन गैस की कीमतों के कारण बहुत महंगा हो गया है। इसलिए वास्तव में केवल एक चीज उन्हें गाँवों में रोक रही है, वह है घरों की लागत।
इसलिए कुछ लोग किसी बड़े शहर के करीबी इलाकों में जाने पर विचार कर रहे हैं, वे उपनगरों में जा रहे हैं, या किसी बड़े शहर से 45 मिनट दूरी वाले किसी छोटे रहवास में जा रहे हैं। इसलिए अगर यह सिलसिला जारी रहा, तो अमेरिकी मिडवेस्ट और विशाल मैदानी अमेरिका के ग्रामीण हिस्सों में जनसंख्या तेजी से गिर जाएगी।
अमेरिका के हर क्षेत्र महँगाई बढ़ी है, लेकिन यह क्षेत्रीय प्रतिव्यक्ति आय और क्षेत्रीय विकास की स्थिति जैसे कारकों के आधार पर अलग-अलग लोगों को अलग तरह से प्रभावित करती है। डेव पीटर्स ने ग्रामीण अमेरिका में लोगों पर महंगाई के प्रभाव का अध्ययन किया है।
अर्थव्यवस्था विशेषज्ञ पीटर आयोवा स्टेट यूनिवर्सिटी के स्मॉल टाउन प्रोजेक्ट से जुड़े हैं और आयोवा स्टेट यूनिवर्सिटी की एक्स्टेंशन सेवा के साथ काम करते हैं। इस सेवा के अन्तर्गत वे स्थानीय लोगों को आर्थिक विकास जैसे विषयों पर शिक्षित करने के लिए विश्वविद्यालय की ओर से विभिन्न क्षेत्रों का दौरा करते हैं। उपर्युक्त लेख उनके अध्ययन पर आधारित है।