अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट द्वारा विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए नए ऐतिहासिक मानक स्थापित किए गए हैं। कोर्ट द्वारा अब प्रवेश के लिए नस्ल और जातीयता के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया है। जाहिर है यह फैसला वर्षों से चले आ रहे अफ्रीकी-अमेरिकियों और अल्पसंख्यकों के लिए शैक्षणिक संस्थानों में पहले से चल रहे विशेष कोटे को समाप्त करने वाला है।
अमेरिकी शीर्ष अदालत का फ़ैसला इस कारण भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अमेरिका में शिक्षा के क्षेत्र में नस्ल को विषय हमेशा ही विवादित रहा है । वहां पर अश्वेत एवं सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को कॉलेज एडमिशन में आरक्षण देने का नियम है। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फ़ैसले में कहा है कि यूनिवर्सिटी में एडमिशन के दौरान अब नस्ल पर विचार नहीं किया जाएगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति ने कोर्ट के फैसले पर असहमति जताई है। अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने बृहस्पतिवार, 30 जुलाई को कहा कि कॉलेज में प्रवेश के लिए सकारात्मक नियमों को समाप्त करना अवसरों को समाप्त करने जैसा है।
उल्लेखनीय है कि अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को हार्वर्ड विश्वविद्यालय और उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय में नस्ल-आधारित प्रवेश को रद्द कर दिया है।
अमेरिकी उपराष्ट्रपति का कहना है कि “सर्वोच्च न्यायालय ने जो सकारात्मक कार्रवाई पर निर्णय दिया है उस पर बात रखने के लिए मैं अपने आपको बाध्य महसूस कर रही हूँ। यह कई मायनों में अवसरों को खत्म करने जैसा है। यह इतिहास से मुँह मोड़ने जैसी बात है। असमानता को स्वीकारन न करने जैसा है। यह निर्णय कक्षाओं और बोर्डरूम में विविधता की ताकत को कमजोर करने वाला है।”
बता दें कि अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला विश्वविद्यालय की नीतियों में काले, हिस्पैनिक और मूल अमेरिकी आवेदकों को प्राथमिकता देकर श्वेत और एशियाई आवेदकों के साथ भेदभाव करने की खबरों के बीच आया है। अपने फैसले में अदालत ने कॉलेज प्रवेश में इन नियमों को खत्म कर दिया जिसमें नस्ल को एक कारक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
मुख्य न्यायाधीश जॉन जी रॉबर्ट्स ने बहुमत के लिए लिखते हुए फैसले में कहा, छात्र के साथ एक व्यक्ति के रूप में उसके अनुभवों के आधार पर व्यवहार किया जाना चाहिए न कि नस्ल के आधार पर।
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अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक्टिविस्ट समूह स्टूडेंट्स फॉर फेयर एडमिशंस की पिटीशन पर दिया है। इस समूह द्वारा हायर एजुकेशन के सबसे पुराने प्राइवेट और सरकारी संस्थानों में विशेष तौर पर हावर्ड यूनिवर्सिटी और उत्तरी कैरोलिना यूनिवर्सिटी पर उनकी प्रवेश नीतियों को लेकर मामला दायर किया गया था। पिटीशन में दावा किया गया था कि नस्ल प्रेरित एडमिशन प्रतिस्पर्धा करने वाले समान या अधिक योग्य एशियाई-अमेरिकियों के साथ पक्षपात करता है।
इससे पूर्व अमेरिका के राष्ट्रपति जो बायडेन द्वारा भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर असहमति जताई गई। अमेरिकी राष्ट्रपति का कहना है कि कॉलेज प्रवेश के लिए कोर्ट ने सकारात्मक नियमों को समाप्त कर दिया है। मैं न्यायालय के फैसले से दृढ़ता से असहमत हूं। उन्होंने कहा कि आज का निर्णय दशकों की पूर्ववर्ती और महत्वपूर्ण प्रगति को पीछे ले जाता है।
जो बायडेन का कहना है कि अमेरिका का अर्थ ही है सभी को सफल होने एवं बड़ा बनाने के लिए मौका देने का। इसमें जो लोग पीछे रह गए हैं उन्हें इसमें शामिल करने के लिए अवसरों को अधिक सरल बनाने से अमेरिका को फायदा हुआ है। उनका मानना है कि जब कॉलेज में नस्लीय विविधता होती है तो वे और अधिक मजबूत होते हैं।
बायडेन का कहना है कि हमारा देश मजबूत है क्योंकि हम इस देश में प्रतिभा की पूरी श्रृंखला का दोहन कर रहे हैं। मैं यह भी मानता हूं कि प्रतिभा, रचनात्मकता और कड़ी मेहनत इस देश में हर जगह है, लेकिन अवसर समान नहीं हैं। यह पूरे देश में हर जगह नहीं है।
इसके साथ ही बायडेन ने कहा कि वो इस फैसले को अंतिम निर्णय नहीं बनने देंगे। उनका कहना है कि हम इस निर्णय को अंतिम शब्द नहीं बनने दे सकते। मैं इस बात पर जोर देना चाहता हूं: हम इस निर्णय को अंतिम शब्द नहीं बनने दे सकते।
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