अमेरिका में आर्थिक दृष्टि से हालात बेहतर नजर नहीं आ रहे हैं।
साल 2022 के आखिर में ही अमेरिका में आर्थिक मंदी की बहस जोर पकड़ने लगी थी। इस मंदी की जद में केवल एक या दो क्षेत्र ही नहीं बल्कि अमेरिकी समाचार जगत से लेकर वहाँ का तकनीक सेक्टर भी बड़े स्तर पर प्रभावित हुआ है।
साल 2022 के आखिर में अमेरिका के नामी समाचार पत्र ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ के साथ-साथ कई बड़े समाचार पत्र के कर्मचारी सड़क पर उतर आए थे। उनके विरोध प्रदर्शन के पीछे वेतन में कटौती और नौकरियों से होने वाली छंटनी प्रमुख कारण थे। न्यूयॉर्क टाइम्स में पिछले चालीस वर्षों में यह पहली बार था जब इतने बड़े स्तर पर कर्मचारी हड़ताल पर गए हों।
इसके बाद, नए साल के शुरू में ही एक खबर आई है कि अमेरिका की बड़ी टेक कंपनियों में से एक अमेजन अपने 18,000 कर्मचारियों की छंटनी करने जा रहा है। नौकरियों से निकाले जा रहे यह कर्मचारी अमेजन के वैश्विक स्तर पर कुल कर्मचारियों का 6% है। अमेजन के सीईओ एंडी जेसी ने गत बुधवार (04 जनवरी, 2022) को कर्मचारियों के नाम एक सार्वजनिक चिट्ठी जारी की, जिसमें उन्होंने कहा कि यह छंटनी इसी महीने की 18 तारीख से शुरू होने वाली है।
एंडी जेसी ने इस चिट्ठी में अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता जाहिर की। उन्होंने लिखा, “अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता को देखते हुए इस वर्ष की समीक्षा बेहद कठिन रही है जबकि हमने बीते कई वर्षों में कर्मचारियों को तेजी से काम पर रखा है।”
गत वर्ष नवम्बर, 2022 में भी अमेजन ने लगभग 10,000 कर्मचारियों को निकालने की योजना बनाई थी।
एंडी जेसी के ताजा बयान के बाद अब हजारों कर्मचारियों के भविष्य पर खतरे के बादल तो मंडराने ही लगे हैं साथ ही, यह बहस भी शुरू हो गई है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सब कुछ ठीक नहीं है।
अमेरिका में कर्मचारियों की छंटनी का यह अकेला मामला नहीं है। अमेजन के अलावा क्लाउड बेस्ड सॉफ्टवेयर कम्पनी सेल्सफोर्स इंक ने अपने कर्मचारियों की संख्या में 10 प्रतिशत की कटौती करने और अपने कुछ कार्यालयों को भी बंद करने की योजना बनाई है।
कंपनी का कहना है कि नौकरी में इसलिए कटौती करनी पड़ रही है क्योंकि उन्होंने कोरोना महामारी के दौरान बहुत अधिक लोगों को नौकरियां दी। अब आर्थिक मंदी के बीच अपने खर्चे को कम करने के लिए लगभग 8,000 कर्मचारियों को नौकरी से निकालना पड़ रहा है।
अमेरिका की मशहूर इन्वेस्टमेंट बैंकिंग कंपनी गोल्डमैन साक्स भी इस साल जनवरी से नौकरियों में कटौती करने जा रही है। साल 2022 के अन्त में गोल्डमैन साक्स ने कहा था कि वह तकरीबन 4,000 कर्मचारियों को नौकरी से निकालेगी।
9 नवम्बर, 2022 को एक और टेक कंपनी मेटा ने अपने 11,000 से अधिक कर्मचारियों को नौकरी से निकालने की बात कही थी। यह मेटा के वैश्विक स्तर पर कुल कर्मचारियों की संख्या का 13 प्रतिशत था। मेटा के 18 साल के इतिहास में यह पहली बार था, जब इतने बड़े स्तर पर कर्मचारियों को एक साथ नौकरी से निकाला गया।
इससे पहले माइक्रोसॉफ्ट ने भी 17 अक्टूबर, 2022 को लगभग 1,000 कर्मचारियों को निकालने की बात कही थी।
एलन मस्क ने भी ट्विटर के अधिग्रहण के बाद कर्मचारियों को नौकरी से निकालने की बात कही है।
ब्रिटेन की समाचार एजेन्सी रॉयटर्स ने ट्रैकिंग साइट Layoffs.fyi के हवाले से बताया है कि अमेरिका के टेक उद्योग ने साल 2022 में 1,50,000 से भी अधिक कर्मचारियों को नौकरी से निकाला है। यह संख्या अब भी लगातार बढ़ रही है।
अमेरिका में छंटनी की यह प्रक्रिया केवल टेक उद्योग तक सीमित नहीं है।
अमेरिकी रेलवे भी हो रहा है प्रभावित
अमेरिका में रेलवे कर्मचारियों ने अपनी वेतन और अन्य माँगों को नहीं मानने पर राष्ट्रीय स्तर पर हड़ताल की धमकी दी। अमेरिका में प्रतिदिन लगभग 70 लाख लोग रेलवे से सफर करते हैं। इसके अलावा, रेलवे अमेरिका में सप्लाई चेन को जारी रखने के सबसे बड़े माध्यमों में से एक है।
रेलवे की हड़ताल का मुद्दा कितना गम्भीर है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बायडेन सरकार इस हड़ताल के खिलाफ एक कानून लेकर आ गई। इस कानून के मुताबिक अगर रेलवे कर्मचारियों ने हड़ताल की तो उन्हें गैर-कानूनी माना जाएगा, जिसे बायडेन सरकार अपने मन मुताबिक संभाल सकेगी।
अमेरिका की मशहूर इन्वेस्टमेंट बैंकिंग कंपनी गोल्डमैन साक्स (Goldman Sachs) ने चिंता जाहिर करते हुए पूछा था कि क्या साल 2023 में अमेरिका की अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ेगी?
आंकड़े क्या कहते हैं?
अमेरिका के आर्थिक सूचकांक बेहतर स्थिति में नहीं दिखाई दे रहे हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद यूरोपीय देशों में गैस और कच्चे तेल की कीमतों में अस्वाभाविक उछाल आया है। इसका सीधा असर रोजमर्रा की वस्तुओं के दामों पर पड़ा है। अमेरिका में महंगाई दर लगातार बढ़ रही है।
बीते एक साल से अमेरिका में महंगाई दर 7% से लेकर 10% के बीच रही है। यह महीने दर महीने घटती-बढ़ती रही। आंकड़ो को देखें तो साल 2019, 2020 और 2021 में महंगाई दर क्रमश: लगभग 2.3%, 1.4%, 7% रही है जबकि गत वर्ष 2022 की अन्तिम तिमाही में यह महंगाई दर लगभग 7.1 प्रतिशत रही है।
वहीं, बढ़ती महंगाई के बीच अमेरिका की आर्थिक विकास की दर लगातार नीचे जाती हुई दिखाई दे रही है। अमेरिका के आर्थिक मामलों के विभाग ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक एनालिसिस (BEA) के अनुसार वर्ष 2022 की पहली दो तिमाही में अमेरिका की जीडीपी वृद्धि दर नकारात्मक रही है। साल 2022 की पहली तिमाही में जीडीपी की दर -1.6% रही जबकि दूसरी तिमाही में यह दर -0.6% रही।
अमेरिकी अर्थव्यवस्था लगभग 25 ट्रिलियन की है। इसमें -1.6% की कमी का अर्थ है, अर्थव्यवस्था में लगभग 400 बिलियन डॉलर से अधिक की कमी। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि यह बांग्लादेश की कुल अर्थव्यवस्था के बराबर है।
अमेरिका में उद्योग-धंधों की हालत भी खस्ता है। उद्योग-धंधों के सूचकांक PMI के आंकड़ों को देखा जाए तो वह भी सुखद संदेश नहीं दे रहे।
दिसम्बर, 2022 में अमेरिका के निर्माण क्षेत्र का PMI 46.2 के स्तर पर रहा। जबकि आदर्श स्थिति 50 होती है। बीते 32 माह में यह सूचकांक अपने सबसे निचले स्तर पर रहा।
इसके अतिरिक्त नवम्बर, 2022 तक सर्विस सेक्टर, जो अमेरिकी अर्थव्यवस्था का 80% हिस्सा कवर करता है, के लिए यह सूचकांक भी 47.7 के स्तर पर रहा।
महंगाई से जूझते पड़ोसी देश क्यूबा से अमेरिका पहुँच रहे प्रवासी
क्यूबा में खाने-पीने के सामान से लेकर रोजमर्रा के जीवन की चीजों के भाव आसमान छू रहे हैं। अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। यही कारण है कि क्यूबा से बड़े स्तर पर लोग अमेरिका की ओर रवाना हो रहे हैं, जहां पहले से ही आर्थिक मंदी की आहट सुनाई दे रही है।
फ्लोरिडा के लोकल शेरिफ ऑफिस ने प्रवासियों की बढ़ती संख्या को संकट करार देते हुए 3 जनवरी, 2022 को कहा कि हाल के दिनों में क्यूबा और कैरेबियन क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों से तकरीबन 500 प्रवासी छोटी-छोटी नाव की मदद से फ्लोरिडा पहुँचे हैं।
यूरोप समेत अन्य देशों के क्या हाल हैं
यूनाइटेड किंगडम
यूनाइटेड किंगडम के लिए साल 2022 आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से काफी उथल-पुथल भरा रहा। एक ओर राजनीतिक संकट तो दूसरी ओर विश्व की पांचवीं अर्थव्यवस्था के पायदान से खिसक कर छठी अर्थव्यवस्था पर पहुंच गया।
साल 2023 में यूनाइटेड किंगडम आर्थिक मंदी की कगार पर खड़ा है। अमेरिका की मशहूर इन्वेस्टमेंट बैंकिंग और रेटिंग एजेंसी गोल्डमैन साक्स का अनुमान है कि 2023 में यूके की अर्थव्यवस्था में 1.2% की गिरावट दर्ज की जाएगी।
साल 2022 में भी ब्रिटेन में महंगाई दर 10% से ऊपर रही है और इस स्थिति पर काबू न पाने के कारण प्रधानमंत्री लिज ट्रस को इस्तीफा तक देना पड़ा। इस समय भी वर्तमान प्रधानमंत्री के सामने ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में सुधार लाना सबसे बड़ी चुनौती है।
जर्मनी
जर्मनी के आर्थिक मामलों के मंत्री रॉबर्ट हेबेक ने 10 दिसम्बर, 2022 को एक आधिकारिक बयान में कहा था कि साल 2023 में जर्मनी की अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ने वाली है। हेबेक का कहना है कि वर्ष 2023 में यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी, की जीडीपी 0.4% से घट जाएगी। जबकि इसके पहले जर्मनी की जीडीपी 2.5% की दर से बढ़ने का अनुमान लगाया गया था।
वहीं, वर्ष 2023 के लिए भी जर्मनी की जीडीपी वृद्धि दर अनुमान को 2.2% से घटाकर 1.4% कर दिया गया। आर्थिक मामलों के मंत्री रॉबर्ट हेबेक ने इस मंदी के पीछे का सबसे बड़ा कारण यूक्रेन-रूस युद्ध को बताया है।
यूरोप में रूस के प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा उपभोक्ता जर्मनी है। यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद इस गैस आपूर्ति में बाधा आने के कारण कीमतों में भी अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की गई है। दूसरी ओर अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध मंदी की ओर बढ़ रही अर्थव्यवस्था को नुकसान ही पहुँचा रहे हैं।
श्रीलंका
भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में भी खाद्य पदार्थों के भाव आसमान छू रहे हैं। श्रीलंका बीते छ: महीने से भी अधिक समय से गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है। बेरोजगारी और महंगाई की मार यहाँ साफतौर पर देखी जा सकती है। सेन्ट्रल बैंक ऑफ श्रीलंका के मुताबिक नवम्बर, 2022 में श्रीलंका की महंगाई दर 60% से भी ऊपर पहुंच गई।
वैश्विक मंदी के बीच भारत में स्थिति कैसी है?
साल 2022 के सितम्बर माह में भारत, ब्रिटेन को पछाड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना। वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में भारत की अर्थव्यवस्था 13% की दर से बढ़ी है।
वहीं आरबीआई, आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक ने वर्ष 2022-23 में भारत की अर्थव्यवस्था के लगभग 7% की दर से बढ़ने का अनुमान लगाया है। भारत वर्तमान में विश्व की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है।
अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने तो यहाँ तक कहा है कि भारत ‘आइलैंड ऑफ होप’ यानी ‘आशा का द्वीप’ है। विश्व की प्रतिष्ठित रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड ऐंड पूअर्स (S&P Global) ने भारतीय अर्थव्यवस्था के सम्बन्ध में कहा है कि यह दशक भारत का है। वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी कहा है कि यह दशक ही नहीं पूरी सदी भारत की है।
हाल ही में ब्रिटिश संस्था, सेन्टर ऑफ इकोनॉमिक्स एण्ड बिजनेस रिसर्च (CEBR) की वर्ल्ड इकोनॉमिक लीग टेबल नामक रिपोर्ट के अनुसार भारत 2032 तक जर्मनी और जापान को पछाड़कर विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत वर्ष 2035 में 10 ट्रिलियन डॉलर के आकार वाली विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
सवाल ये है कि जब यह आर्थिक मंदी और नौकरियों में इतने बड़े स्तर पर अमेरिका प्रभावित हो रहा है तो आख़िर अमेरिकी सरकार को यह घोषणा करने में और कितना वक्त लगेगा कि वह रुस-यूक्रेन युद्ध में और अधिक दिनों तक दिलचस्पी लेने का बोझ सहन नहीं कर सकता।
यदि एशियाई देशों में इस स्तर पर नौकरियाँ जा रही होतीं या भारत ऐसी किसी आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा होता तो पश्चिम की कितनी ही रेटिंग एजेंसियाँ अब तक अपने आँकड़े जारी कर भारत को ‘कंगाल देश’ साबित करने पर तुली होतीं। हालाँकि, विश्व बैंक एवं आईएमएफ़ भारत को ले कर पिछले कई समय से सिर्फ़ और सिर्फ़ सकारात्मक बयान ही जारी कर रहा है।
कोरोना महामारी के बाद से वैश्विक मंदी के बीच भारत की स्थिर और मज़बूत होती अर्थव्यवस्था के बीच इसे भारत की ‘विश्व गुरु’ बनने की छवि में थोड़ा इजाफ़े के रूप में देखे जाने का जोखिम लिया जा सकता है। बावजूद इसके कि भारत भी अन्य राष्ट्रों की ही तरह इस वक्त प्रवासी संकट से ले कर कोरोना महामारी के बीच उलझा हुआ है। उस से भी बड़ी बात यह है कि यहाँ पर यह संकट कई रूपों में सामने आते हैं। बावजूद इस सब के, भारत की आर्थिक स्थिति पश्चिमी देशों एवं यूरोप से बेहतर हालात में है।