संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन दोनों ने अपने-अपने चाँद पर भेजे जाने वाले रॉकेटों को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास एक ही जगह पर उतारने का निर्णय लिया है।
स्पेसन्यूज के अनुसार, NASA और चीन की अंतरिक्ष एजेंसी CNSA दोनों ने अपने चन्द्र मिशन की लैंडिंग के लिए जिन स्थानों की खोज की है वह बिल्कुल आसपास हैं और एक दूसरे की सीमा में आते हैं। इन लैंडिंग साइटों में शैकलटन, हॉवर्थ और नोबेल क्रेटर शामिल हैं, जो चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास स्थित हैं।
अमेरिका और चीन चाँद पर क्यों चाहते हैं एक ही लैंडिंग साइट
स्पेसन्यूज के अनुसार, दोनों अन्तरिक्ष एजेंसियों द्वारा इन स्थानों को चुनने की वजह उनकी ऊंचाई, प्रकाश की अनुकूल व्यवस्था और छायादार क्रेटरों की निकटता है। इन क्रेटरों में चाँद की जल निर्मित बर्फ को स्टोर करने की क्षमता है। यह कारक मिलकर इन स्थानों को चन्द्र मिशन लैंडिंग के अनुकूल बनाते हैं।
अमेरिका और चीन के चन्द्र मिशन क्रमशः 2025 और 2024 में उड़ान भरने के लिए तैयार हैं। पर अभी इस पर संशय बना हुआ है कि अमेरिका और चीन अपने अपने चन्द्र मिशनों के ‘लैंडिंग साइट ओवरलैप’ की संभावना और संभावित विवाद की स्थिति से कैसे निपटेंगे। आज ज्यादा से ज्यादा देश चाँद पर अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने की योजनाओं पर काम कर रहे हैं, पर वैज्ञानिकों के लिए इसका हल निकालना एक नई तरह की समस्या है।
स्पेसन्यूज के अनुसार, जब चीन के साथ अंतरिक्ष समझौतों की बात आती है, तो अमेरिका “वुल्फ अमेंडमेंट” की वजह से अपने पैर पीछे खींच लेता है। “वुल्फ अमेंडमेंट” 2011 में तत्कालीन प्रतिनिधि फ्रैंक वुल्फ ने पेश किया था जो नासा को चीन के साथ किसी भी रूप में काम करने से गंभीर रूप से प्रतिबंधित करता है।
अंतरिक्ष क्षेत्र में एक दूसरे के साथ मित्रतापूर्ण रवैया रखने में वैश्विक राजनीति कई विवाद बढ़ाने वाली है। कुछ विशेषज्ञों को डर है कि यह आगे आने वाले समय में अंतरिक्ष सैन्यीकरण की शुरुआत भी हो सकती है। अमेरिका और चीन में अन्तरिक्ष को लेकर जुबानी जंग लंबे समय से चल रही है।
अमेरिका के ‘मून रॉकेट’ लॉन्च की विफलता पर चीन ने NASA का उड़ाया मजाक
इसी माह सितंबर की शुरुआत में अमेरिका के चन्द्र रॉकेट ‘आर्टेमिस-1’ की लॉन्चिंग दूसरी बार भी फ्यूल लीक के कारण विफल हो गई थी। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी के बेहद महंगे और लंबे समय से प्रतीक्षित ‘मून रॉकेट’ के लॉन्च में विफल रहने के बाद चीन ने NASA और उसके अध्यक्ष बिल नेल्सन की आलोचना करने में जरा भी समय बर्बाद नहीं किया।
चीन के ग्लोबल टाइम्स में, देश की प्रमुख कम्युनिस्ट पार्टी ने नेल्सन को जमकर फटकार लगाई। नेल्सन ने इंजन की समस्या के कारण फेल हुए पहले स्पेस लॉन्च सिस्टम (SLS) रॉकेट के परीक्षण से ठीक एक दिन पहले NBC न्यूज पर अपने इंटरव्यू में चीन की आलोचना की थी।
नेल्सन ने कहा था, “चीनियों ने हर किसी से बहुत सारी तकनीक प्राप्त की है, और इस वजह से, वे बहुत अच्छे हैं।” इससे पहले मई में नेल्सन ने कहा था कि चीन का अंतरिक्ष कार्यक्रम अमेरिका और अन्य देशों से “चोरी करने में अच्छा” है।
नेल्सन ने अपने दावे के बारे में खुलकर तो नहीं बताया, लेकिन इसके पीछे 2019 की वो घटना मानी जाती है, जब अमेरिका के ‘अंडरकवर होमलैंड सिक्योरिटी मिशन’ ने एक चीनी नागरिक को कथित तौर पर संवेदनशील मिसाइल और अंतरिक्ष यान उपकरणों को चोरी करके अमेरिका से बाहर ले जाने की कोशिश करते हुए पकड़ा था।
इस पर ‘द ग्लोबल टाइम्स’ में एक वरिष्ठ चीनी अन्तरिक्ष विशेषज्ञ ने नेल्सन की टिप्पणी को “भड़काऊ, दुर्भावनापूर्ण और गलत इरादों वाली” करार दिया था।
नासा ने चीन पर लगाया ‘चन्द्रमा को चुराने’ की कोशिश का आरोप
यह पहली बार नहीं है कि नेल्सन और चीन के बीच झगड़ा हुआ है। इसी साल जुलाई की शुरुआत में, नासा अध्यक्ष नेल्सन ने जर्मनी के बिल्ड अखबार के साथ एक इंटरव्यू में चीन पर “चंद्रमा को चुराने” की कोशिश का आरोप लगाया था। इस पर चीनी अंतरिक्ष अधिकारियों ने कड़ा पलटवार किया था।
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने नेल्सन की टिप्पणियों के छपने के बाद एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान कहा कि, “अमेरिका ने चीन के सामान्य और वाजिब आउटर स्पेस कार्यक्रमों पर लगातार कीचड़ उछालने का अभियान चला रखा है, और चीन इस तरह की गैर-जिम्मेदाराना टिप्पणियों का कड़ा विरोध करता है।”
चीन के प्रति अमेरिका और नेल्सन का कठोर रवैया जगजाहिर रहा है, इसलिए अमेरिका के चन्द्र रॉकेट की लगातार दो विफलताओं ने चीन को खुश होने और अमेरिका का मजाक बनाने का मौका दे दिया है।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा चीन के साथ अंतरिक्ष सम्बन्धी बातचीत के प्रयासों के बावजूद, कोई खास सफलता नहीं मिल सकी थी। स्पेसन्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन का फिलहाल चीन के साथ फिर से चर्चा में शामिल होने का कोई इरादा नहीं है।
“यह पृथ्वी के बाहर के संसाधनों के लिए संघर्ष का पहला मामला हो सकता है”
इस सब घटनाक्रम के बीच चांद पर उतरने के लिए दोनों देशों ने जो विकल्प चुने हैं वो चौंकाने वाले तो नहीं हैं, पर ऐतिहासिक जरुर हैं। जैसे जैसे दुनिया से बाहर अन्तरिक्ष में इंसानों की चहलकदमी बढ़ रही है, वैश्विक राजनीति के कारण अन्तरिक्ष में इस तरह के तनाव के और उदाहरण भी सामने आ सकते हैं।
अंतरिक्ष और कानून नीति के प्रोफेसर क्रिस्टोफर न्यूमैन ने स्पेसन्यूज को बताया कि, “यह समझना मुश्किल नहीं है कि दोनों देश एक ही जगह क्यों चाहते हैं। क्योंकि इन-सीटू संसाधन उपयोग के लिए यह जगह चाँद पर स्थित प्रमुख अचल संपत्ति है, पर पृथ्वी से परे संसाधनों के संघर्ष का यह पहला मामला भी हो सकता है। बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करेगा कि कौन वहाँ पहले पहुँचता है।”
न्यूमैन ने कहा कि, दोनों देशों ने ‘आउटर स्पेस ट्रीटी’ पर दस्तखत किए थे, इसलिए उन्हें, “आकाशीय पिंडों का शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए उपयोग” के सिद्धांत को स्वीकार करना चाहिए।