इस साल की अमरनाथ यात्रा के पहले जत्थे को अमरनाथ श्राइन बोर्ड के चेयरमैन और जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा ने 30 जून, 2023 को हरी झंडी दिखाते हुए रवाना किया दिया। जम्मू बेस कैंप से पहले जत्थे में कुल 3,488 यात्री रवाना हुए।
हालांकि तारीख के हिसाब से देखें तो 1 जुलाई, 2023 से यह यात्रा शुरू हो गई है और 31 अगस्त को सम्पन्न होगी।
अमरनाथ की पवित्र गुफा को लेकर मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती के बीच इसी गुफा में संवाद हुआ था जिसे अमरकथा के रूप में जाना जाता है।
अमरनाथ यात्रा के 5 पड़ाव
अमरनाथ यात्रा के 5 पड़ाव हैं। पहला पड़ाव पहलगाम है। यहीं से पैदल यात्रा शुरू होती है। दूसरा पड़ाव है चंदनवाड़ी। तीसरा पड़ाव शेषनाग, चौथा पड़ाव, पंचतरणी और फिर अमरनाथ गुफा।
इन पांच पड़ावों की भी अनूठी कथा है। अमरकथा की कहानी भी इन पांच पड़ावों से होकर गुजरती है। दरअसल, माता पार्वती, भगवान शिव से अमरकथा सुनाने का आग्रह करती रहती थीं। कई बार आग्रह करने के बाद भगवान शिव अमरकथा सुनाने के लिए तैयार तो हुए लेकिन शर्त यह थी कि अमरकथा सुनाते वक्त कोई अन्य जीव इस कथा को न सुने।
संभवत: इसीलिए अमरनाथ गुफा की ओर जाते हुए सबसे पहले भगवान शिव जब पहलगाम पहुंचे, तो उन्होंने नंदी का परित्याग किया। इसके बाद चंदनवाड़ी में उन्होंने अपनी जटा से चंद्रमा को मुक्त किया। फिर शेषनाग नामक झील पर पहुंचकर उन्होंने अपने गले से सर्पों को भी उतार दिया। फिर गणेशजी को भी उन्होंने महागुनस पर्वत पर छोड़ दिया। इसके बाद पंचतरणी पहुंचकर शिवजी ने पाँचों तत्वों का परित्याग किया। सब कुछ छोड़कर अंत में भगवान शिव ने अमरनाथ गुफा में प्रवेश किया और पार्वती जी को अमरकथा सुनाने लगे।
अमरकथा सुनते शुक
यहाँ एक दिलचस्प बात यह भी है कि इस कथा को शुक जिसे हरे कंठ वाला तोता भी कहते हैं, वह भी सुन रहा था। जब पार्वती जी को कथा सुनते-सुनते नींद आ गई तो उनकी जगह पर वहां बैठे शुक ने हुंकारी भरना शुरू कर दिया। ऐसी किवदंती है कि तोते के साथ कबूतर भी था जो आज भी गुफा और उसके आस-पास दिखाई देता है। इसे ‘अमर पक्षी’ माना जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि शुक कोई और नहीं बल्कि ऋृषि वेदव्यास जी के पुत्र शुकदेव महाराज हैं।
अमरनाथ गुफा न केवल अमरकथा के लिए प्रचलित है बल्कि 52 शक्तिपीठों में से एक, ‘हिम शक्तिपीठ’ अमरनाथ गुफा में मौजूद है। ऐसी मान्यता है कि यहां माता सती का कंठ गिरा था। यहां सती महामाया और शिव त्रिसंध्येश्वर कहलाते हैं। श्रावण पूर्णिमा को अमरनाथ के दर्शन के साथ यह शक्तिपीठ भी दिखता है।
अमरनाथ यात्रा का माहात्मय
पवित्र अमरनाथ गुफा सनातन धर्म में अमरत्व का प्रतीक है। ऐसा कहते हैं कि काशी विश्वनाथ में दर्शन से दस गुना, प्रयाग से सौ गुना और नैमिषारण्य से हजार गुना पुण्य अमरनाथ की यात्रा से प्राप्त होता है।
हजारों वर्ष पुरानी अमरनाथ यात्रा का सम्बन्ध आदि शंकराचार्य से है। अमरनाथ यात्रा में हिम शिवलिंग के अतिरिक्त सर्वाधिक महत्व छड़ी मुबारक का है। इस यात्रा की अवधि भी छड़ी मुबारक से जुड़ी है। अमरनाथ यात्रा की औपचारिक शुरुआत के लिए व्यास पूर्णिमा के दिन छड़ी मुबारक भूमि पूजन व ध्वजारोहण के लिए पहले पहलगाम फिर शंकराचार्य मन्दिर, फिर शरीका भवानी और फिर दशनामी अखाड़ा ले जाया जाता है।
अमरनाथ गुफा में छड़ी मुबारक की पूजा-अर्चना के साथ ही अमरनाथ यात्रा संपन्न हो जाती है और वापसी में इसे पहलगाम लाकर लिद्दर नदी के जल में प्रवाहित कर दिया जाता है।
अमरनाथ गुफा की खोज बूटा मलिक ने की?
सैकड़ों वर्षों से चली आ रही इन तमाम परंपराओं, मान्यताओं के बावजूद बीते कई दशकों से अमरनाथ गुफा को लेकर एक झूठ गढ़ा गया है। झूठ है कि अमरनाथ गुफा की खोज एक कश्मीरी मुस्लिम चरवाहे बूटा मलिक ने की है।
दरअसल, कहानी यह गढ़ी गई है कि अनंतनाग के पहलगाम के बूटा मलिक एक रास्ते से गुजर रहे थे, बारिश होने के कारण वे एक गुफा में चले जाते हैं और वहां उन्हें एक साधु मिलते हैं। साधु उन्हें एक पोटली देते हैं जिसमें कुछ कोयले होते हैं। बूटा मलिक पोटली लेकर घर पहुंचते हैं तो उस पोटली में कोयले के बजाय सोने के सिक्के निकलते हैं। फिर बूटा मलिक दोबारा उन्हीं साधु से मिलने जाते हैं लेकिन उस गुफा में उन्हें साधु तो नहीं मिलते लेकिन हिम शिवलिंग दिखता है।
यह कहानी है तो रोचक लेकिन सरासर झूठी है। इस कहानी पर पहला संदेह तो तब पैदा होता है जब कोई इसे बूटा मलिक बताते हैं, कुछ के लिए अदम मलिक हैं तो कुछ के लिए अकरम मलिक। बूटा मलिक के वंशज बताते हैं कि यह लगभग 150 साल पहले की बात है। हालांकि ऐसा कहीं डॉक्युमेंटेशन नहीं मिलता है कि बूटा मलिक ने अमरनाथ गुफा की खोज कब की?
झूठा है यह दावा
ट्रैवल्स इन कश्मीर नामक किताब के ब्रितानी लेखक अमरनाथ की यात्रा करते हैं। 1844 में छपी उनकी किताब में अमरनाथ का जिक्र आता है। अपनी किताब में वे बताते हैं कि 20 जून को अमरनाथ यात्रा शुरू होती है और पहली बर्फबारी से पहले पूरी हो जाती है।
अब कोई बताए कि जिस यात्रा का जिक्र 6 साल पहले एक ब्रिटिश राइटर करता है, उसकी खोज बूटा मलिक ने कैसे की। ऐसा नहीं है कि किसी ब्रितानी लेखक ने इस यात्रा का जिक्र किया है तो वह उससे कुछ दशक पहले शुरू हुई हो बल्कि यह यात्रा सैकड़ों वर्षों से की जाती रही है।
कश्मीर को लेकर सबसे प्राचीन और प्रामाणिक ग्रंथ है, नीलमत पुराण। नीलमत पुराण में जिस तीर्थ अमरेश का जिक्र है, वह अमरनाथ गुफा के पास स्थित शेषनाग झील है। ईसा पूर्व 1182 के आसपास अभिमन्यु प्रथम व गोनंद तृतीय के शासनकाल के दौरान इसको संकलित करने का काम चंद्र देव ने किया।
अमरनाथ यात्रा अनवरत चलती रही है। इसकी पुष्टि 12वीं शताब्दी में कल्हण रचित राजतंरगिणी भी करती है। राजतरंगिणी में उल्लेख है कि कश्मीर की महारानी सूर्यमती ने अमरेश्वर में मठों को निर्माण करवाया। वहीं 15वीं, शताब्दी में जोनराज कृत राजतरंगिणी में अमरेश्वर को कश्मीर का भगवान और अधिपति बताया गया है।
औरंगजेब के साथ 1663 में कश्मीर की यात्रा करने वाले एक फ्रांसीसी यात्री फ्रैंकोइस बरनियर ने एक बर्फ से जमी गुफा का जिक्र किया है। इतिहासकार विनसेंट आर्थर स्मिथ द्वारा बरनियर की किताब का अंग्रेजी अनुवाद आप स्क्रीन पर देख सकते हैं।
यह सभी प्रमाण इस बात की पुष्टि करते हैं कि हिन्दुओं की पवित्र अमरनाथ यात्रा को लेकर दशकों से एक प्रोपगेंडा चलाया जाता रहा है। यहाँ एक सवाल हिन्दू समाज से भी है कि इस तरह की अतार्किक बातें और झूठ के बावजूद हिन्दुओं ने दशकों तक किसी तरह का कोई विरोध दर्ज करने की कोशिश तक नहीं की। इसे सहिष्णुता कहें या फिर अपने धर्म के प्रति सुप्तता ये हम आप पर छोड़ते हैं।
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