नई दिल्ली, भारत के रक्षा सूत्रों के अनुसार, भारत में अल्ट्रा-लाइट हॉवित्जर को छोड़कर पिछले पांच वर्षों में खरीदे गए या वर्तमान में खरीदे जा रहे सभी गन सिस्टम स्वदेशी निर्मित हैं।
ANI के सूत्रों ने कहा, “भारतीय सेना indigenous Advanced Towed Artillery Gun System (ATAGS) और माउंटेड गन सिस्टम (MGS) के विकास में भी तेजी से आगे बढ़ रही है।”
इसके अलावा भारतीय सेना में स्वदेशी रूप से अधिक उन्नत बनाए गए पिनाक हथियार प्रणालियों की आमद चल रही है जिसमें छह और रेजिमेंटों को अनुबंधित किया गया है और जल्द ही डिलीवरी भी शुरू होगी।
रक्षा से जुड़े सूत्रों ने कहा, “ये रेजिमेंट इलेक्ट्रॉनिक और यांत्रिक रूप से बेहतर हथियार प्रणाली से लैस होंगी, जो लंबी दूरी तक विभिन्न प्रकार के गोला-बारूद को दागने में सक्षम होंगी। पिनाक भारत की उत्तरी सीमाओं के अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में लंबी दूरी तक की मारक क्षमता प्रदान करेगा।”
ANI के सूत्रों ने आगे बताया, “पिनाक मिसाइल रॉकेट्स रेजिमेंट को अधिक ऊंचाई पर काम करने के लिए सक्षम बनाया गया है और खराब मौसम वाले अधिक ऊंचाई वाले इलाकों में इन उपकरणों की गतिशीलता का परीक्षण और सत्यापन किया गया है। व्यापक सत्यापन के बाद उत्तरी सीमाओं के ऊंचाई वाले क्षेत्रों की एक रेजिमेंट को इस कार्यक्रम में शामिल किया गया है। अधिक ऊंचाई पर फायरिंग वैलिडेशन की योजना बनाई गई है।”
अल्ट्रा लाइट हॉवित्जर की खरीद विशेष रूप से देश की उत्तरी सीमाओं के कठिन इलाकों और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ‘सेक्टर-स्पेसिफिक’ ऑपरेशन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए की गई है।
“किसी भी ऑपरेशन की स्थिति में यह अत्यधिक परिवहनीय होने के कारण तेजी से तैनात किये जा सकते हैं, इन गन्स को चिनूक हेलीकॉप्टर द्वारा एयरलिफ्ट करके ले जाया जा सकता है और बेहद कम समय में तैनात किया जा सकता है। उत्तरी सीमाओं पर रेजिमेंटों को ऑपरेशनन्स के लिए मान्य किया गया है और रक्षा उपकरणों को वहाँ तैनात किया गया है।”
धनुष गन सिस्टम को उत्तरी सीमाओं के अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में डिप्लॉय किया गया है और रक्षा ऑपरेशन्स को अंजाम देने के लिए तैयार किया गया है। धनुष तोप बोफोर्स तोप का इलेक्ट्रॉनिक और यांत्रिक रूप से उन्नत संस्करण है और व्यापक परीक्षणों के बाद उत्तरी सीमाओं की पहली रेजिमेंट में शामिल कर ली गई है। धनुष गन सिस्टम स्वदेशी रूप से विकसित आर्टिलरी गन के इतिहास में एक प्रमुख मील का पत्थर है और रक्षा निर्माण क्षेत्र में आत्मानिर्भर भारत की दिशा में एक बड़ा कदम है।
शारंग गन को अब 130 मिमी गन सिस्टम के रूप में उन्नत बनाया जा रहा है और बेहतर रेंज, सटीकता और स्थिरता के साथ यह एक सफलतापूर्वक विकसित अपग्रेडेड गन के रूप में यह स्वदेशी रक्षा क्षमता की पुष्टि करती है।
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