‘ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया…’ जैसी मशहूर ग़ज़ल गाने वाली बेगम अख़्तर की आज पुण्यतिथि है। बेगम अख़्तर की गायिकी का जादू आज भी दुनियाभर में ग़ज़ल सुनने वालों को सुकून देता है। अख़्तरीबाई फ़ैज़ाबादी ही निकाह के बाद बेगम अख़्तर हो गईं।
बेगम अख़्तर ने अपनी ग़ज़लों का जादू उन दिनों बिखेरा जब शास्त्रीय और सुगम संगीत का क्षेत्र बड़े पैमाने पर पुरुष प्रधान था। यही नहीं, ग़ज़ल गायिकी पहले सीमित महफ़िलों की शान हुआ करती थी। उसे आम लोगों तक पहुँचाने का श्रेय बेगम अख्तर को जाता है।
रागों पर आधारित ग़ज़ल में बहुत कम गायिकाएँ बेग़म अख्तर के स्तर का गाती थीं। उनकी गायिकी के दीवाने केवल भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में आज भी हैं। बेगम अख्तर को दादरा और ठुमरी में भी महारत हासिल थी।
बेगम अख्तर को 1972 में गायन के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिला। उन्हें पहले पद्मश्री से और बाद में भारत सरकार द्वारा मरणोपरांत पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया।
बेगम अख्तर का जन्म 7 अक्टूबर 1914 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में हुआ था। उन्हें बचपन से ही गायिका बनने का शौक था। कहते हैं अख्तर की माँ ही उनकी पहली गुरु थी। महज़ 7 साल की उम्र में ही थियेटर अभिनेत्री चंदा का गाना सुनकर अख्तर को संगीत से लगाव हो गया था लेकिन परिवार वाले उनकी इस इच्छा के सख्त खिलाफ थे।
परिवार की ओर से बेगम अख्तर को उनके चाचा से समर्थन मिला जिन्होंने उनके शौक को आगे बढ़ाने की सोची। इसके बाद उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उस जमाने के जाने माने संगीत उस्ताद अता मुहम्मद खान, अब्दुल वाहिद खान और पटियाला घराने के उस्ताद झंडे खान से उन्हें हिंदुस्तानी पद्दती में संगीत की शिक्षा मिली।
अल्लाह से नाराज़गी
कहा जाता है कि बेग़म अख़्तर अपनी शिष्या से कहती थीं कि उनका अल्लाह से निजी राब्ता है और यही वजह थी कि वो कभी आस्तिकों की तरह कई दिनों तक क़ुरान पढ़ती थीं तो कभी मजहब से एकदम किनारे रहा करती। इसके जवाब में उन्होंने अपनी शिष्या शांति हीरानंद से कहा था कि ‘हमारी अल्लाह मियाँ से जंग है’।
बेगम अख्तर ने महज 15 साल की उम्र में एक कार्यक्रम में अपनी पहली प्रस्तुति दी। यह कार्यक्रम साल 1930 में बिहार में आए भूकंप के पीड़ितों के लिए आर्थिक मदद जुटाने की खातिर आयोजित किया गया था, जिसकी मुख्य अतिथि सरोजिनी नायडू थीं। सरोजनी नायडू बेगम अख्तर के गाने से इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने उपहार के तौर पर अख्तर को एक साड़ी भेंट की।
इसके पश्चात उन्हें अलग-अलग लोगों से लगातार प्रोत्साहन मिला और उन्होंने गज़ल गाना जारी रखा। उनकी ग़ज़ल, दादरा, ठुमरी आदि को लेकर कई ग्रामोफोन रिकॉर्ड जारी किए गए। बेगम अख्तर सार्वजनिक संगीत कार्यक्रम देने वाली शुरुआती महिला गायकों में से थीं। कालांतर में वे महफ़िल या निजी समारोहों में गायन से अलग हो गईं और समय के साथ मल्लिका के रूप में जानी जाने लगी।
बेगम अख्तर गायकी के साथ अभिनेत्री भी रही हैं। उनकी लोकप्रियता के चलते उन्हें फिल्मों में काम करने के ऑफर मिलने लगे, जिसके बाद बेगम अख्तर ने नल और दमयंती, एक दिन की बादशाहत, मुमताज बेगम जैसी कई फिल्मों में अभिनय भी किया। लेकिन जिस कला से वो मशहूर थी वो थी उनकी जादू भरी गायकी।
संगीत सिखाने वाले उस्ताद ने ही किया था शोषण
बेगम अख्तर की संगीत की मशहूर ज़िंदगी बड़े संघर्षों के बाद आई। उन्होंने संगीत के कई उस्तादों से तालीम ली। महज़ सात साल की उम्र में जब उन्होंने गायन की शुरुआत की तो उनके ही संगीत उस्ताद ने उनका शारीरिक शोषण किया।
बेगम अख्तर की जीवनी लिखने वाली रीता गांगुली ने अपनी किताब में इस बात का जिक्र भी किया है। उन्होंने कहा है कि उस्ताद द्वारा की गई इस हरकत के बाद बेगम अख्तर ने संगीत सीखने वाली कई लड़कियों से बात की और लगभग सभी ने अपने उस्तादों को लेकर इस प्रकार की शिकायत की।
बेग़म अख़्तर तब एक एक छोटी बच्ची थी जब उसे संगीत सीखाने वाले उस्ताद ने ही उनके साथ छेड़छाड़ की और कुछ साल बाद उनके साथ फिर बलात्कार किया गया। बलात्कार के बाद वह गर्भवती हो गई और एक बेटी को जन्म दिया जिसका नाम रखा शमीमा उर्फ़ सन्नो। बेग़म अख़्तर इसे अपनी बहन बताती रही। उन्हें ऐसा समाज में अविवाहित माँ बनने से मिलने वाली दुत्कारों से बचने के लिए करना पड़ा। यह हक़ीक़त बहुत वर्षों बाद सामने आ पाई थी कि सन्नो बेग़म अख़्तर की बहन नहीं बल्कि बेटी है।
बेग़म अख़्तर को जीवन के शुरुआती वर्षों से ही दुःख और त्रासदियाँ मिलीं, लेकिन आख़िर में गायन ने ही उन्हें जीवन के अन्याय और त्रासदियों से उबरने में मदद की और उन्हें सांत्वना दी।
संघर्ष भरी ज़िन्दगी जीने के बावजूद बेगम अख्तर ने दुनियाँ को जो संगीत दिया उसकी मिसाल बहुत कम मिलती हैं। बेगम अख्तर को साल 1945 में अपना प्यार मिला जिसके बाद उन्होंने इश्तियाक अहमद अब्बासी नामक वकील से निकाह कर लिया था।
निकाह के बाद अपने पति की जिद के कारण उन्होंने गायकी से दूरी बना ली पर यह दूरी अधिक समय तक नहीं रह सकी और एक बार फिर उन्होंने गायकी की दुनियाँ का रुख किया। फिर गायकी का सिलसिला उनकी आखिरी सांस तक जारी रहा। 30 अक्टूबर 1974 को बेगम अख्तर का निधन हो गया था और मल्लिका ए गजल लखनऊ के पसंदा बाग की कब्र में दफन है।