समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को अयोध्या की भव्य दिवाली से परेशानी है। जिनके पिताजी को रामभक्तों से दुश्मनी रही हो, उन सुपुत्र को श्रीराम के स्वागत में दीप जलाना भला क्यों पंसद आएगा? खैर, अखिलेश यादव को अपनी पसंद-नापसंद रखने का अधिकार है पर वे अपनी भावनाओं को किसी गरीब के कंधे पर रखकर क्यों व्यक्त करना चाह रहे हैं? क्या अपनी कुंठा को गरीबों की परेशानी बताना ही समाजवाद है?
अखिलेश यादव की मानें तो अयोध्या के सरयू नदी के तट पर प्रज्जवलित दीप सिर्फ अभिजात्य वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। श्रीरामचरितमानस के अपमान से लेकर रामजी से परेशानी तक रखने वाले राजनीतिक दल के नेताओं को यह पता नहीं होगा पर सत्य यह है की दीपावली पर अधिकार की बात आएगी तो इसमें सबसे आगे दूर जंगल में रहने वाली आदिवासी माता शबरी का नाम आएगा। अखिलेश यादव और उनके पार्टी नेताओं को हिंदू धर्म में खामियां निकालने से फुर्सत मिले तब उन्हें पता चले कि जन गरीबों का इस्तेमाल वो अपनी कुंठा के लिए कर रहे हैं वो तो स्वयं दीए जलाकर श्रीराम का इंतजार कर रहे हैं।
अखिलेश यादव को अयोध्या में आ रहा बदलाव पंसद नहीं आ रहा है। यह तो स्वाभाविक है पर इस नापसंद के रूप में अयोध्या में श्रीराम के लिए जलाये गये दीपों को बांटने काम कहाँ तक उचित है? सरयू के तट पर दीप जलाने वाले अमीर-गरीब नहीं है। वे सिर्फ श्री राम के लिए हैं, उन्हीं श्री राम के लिए जो शबरी के घर जाकर जूठे बेर भी प्रेम से खाते हैं। हर वर्ष ये दीप किसी राजनीति या फोटोशूट के लिए नहीं जलाये जाते। ये दीप अपने राम के लिए जलाये जाते हैं और इससे वृहद् हिंदू समाज की भावनाएँ जुड़ी हैं। बिलकुल गरीब, अमीर, आदिवासी हो या दलित राम सबके हैं। किसी के राम राजा हैं तो किसी के पुत्र समान।
कभी अपने विलासिता के जीवन से बाहर निकलकर समाजवाद के कथित रक्षक अखिलेश यादव ने गरीब की झोंपड़ी में झांका होता तो उन्हें अहसास होता कि वो हर शाम अपने अराध्य के लिए दिया जलाता है।
आज जब सरयू का घाट जगमग हो रहा है तो अखिलेश को गरीब याद आ रहा है। जब सरयू का किनारा रोशनी का इंतजार करता था तब अखिलेश यादव और उनकी पार्टी ने कौन से गरीब के घर को रोशन किया हुआ था, इसका जवाब उनके पास शर्तिया रूप से नहीं होगा। असल में, अखिलेश यादव के लिए अयोध्या में सरयू नदी के किनारे जलते दीप विफलता का प्रतीक हैं। इसी दृश्य को रोकने के लिए कभी रामभक्तों पर गोलियां चलाई गई थी, जिसमें ये गरीब लोग भी शामिल थे। आज सरयू पर रोशनी देखकर अखिलेश की आंखे चौंधिया गई है और वे अंधेरे में डूबते अपने और अपनी पार्टी के भविष्य को किसी गरीबे के चेहरे में ढूँढ रहे हैं।
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