कांग्रेस को उसके सत्ता मोह के साथ ही धर्मनिरपेक्षता के प्रति उसकी तथाकथित निष्ठा के लिए जाना जाता है। यह धर्मनिरपेक्षता पार्टी का अपना निजी संस्करण है जिसका प्रयोग वो समय और अपने फ़ायदे के अनुसार करती है। कुछ लोग कांग्रेस के धर्मनिरपेक्षता को छल भी बताते हैं। कांग्रेस का यही छल आजकल मोहब्बत की दुकान के नाम से जाना जाता है। धर्मनिरपेक्षता को चुनावी हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का एक पूरा कांग्रेसी इतिहास रहा है, यह बात और है कि इसी को कांग्रेस अपनी विचारधारा बताती रही है। खैर, हम यहां चुनाव और चुनावी राजनीति की बात न करके अपराध के आड़े आए कांग्रेस के सत्ता मोह और धर्मनिरपेक्षता की बात करेंगे। खासकर अजमेर सेक्स स्कैंडल में कांग्रेस के इस सत्ता मोह का क्या परिणाम निकला, उसकी पड़ताल की एक कोशिश करेंगे। आखिर, कांग्रेस की कथित धर्मनिरपेक्षता के उदाहरण तो बहुत हैं पर इसका परिणाम अगर 30 वर्षों के बाद भी किसी को भुगतना पड़ रहा है तो उसकी चर्चा सबसे पहले की जानी चाहिए।
अजमेर सेक्स स्कैंडल ऐसा ही केस है जिसकी पीड़िताओं को 3 दशकों के बाद भी न्याय नहीं मिला है। शासन की कार्यप्रणाली देख पीड़िताएं अब यह स्वीकार कर चुकी है कि न्याय उनके लिए तो नहीं बना है। इसलिए आज पीड़िताओं को जब कोर्ट में समन किया जाता है तो वे पूछती है 30 वर्ष बाद क्यों, अब तो जीने दो, हमें अकेला छोड़ दो।
स्कूली छात्राओं के साथ हो रहे यह यौन शोषण के मामले कांग्रेस सरकार के दौरान ही सामने आए थे। राजस्थान में तत्कालीन समय पहले शिवचरण माथुर एवं फिर हरिदेव जोशी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार रही। हालांकि मामले को दबाने के कारण यह सुनिश्चित नहीं किया जा सका कि पहला मामला कब सामने आया पर 200 से अधिक छात्राओं का शोषण 1990 के बाद कुछ महीनों में संभव नहीं है। कुछ पुलिसकर्मियों का कहना है कि छात्राओं ने पहले भी उनसे संपर्क करने की कोशिश की थी पर राजनीतिक दबाव में उन्होंने शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया था। ऐसे में न्याय सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी कांग्रेस की थी। जिसे यह संदेश देना था कि अपराधी की वित्तीय, धार्मिक एवं राजनीतिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो, राज्य में सरकार कानून को सर्वोच्च रखती है। हालांकि अजमेर सेक्स स्कैंडल में सरकार का गैर-जिम्मेदार रवैया इस बात को प्रमाणित कर रहा है कि सरकार द्वारा अपने निजी लाभ के लिए काम किया गया, न कि न्याय के लिए।
अजमेर सेक्स कांड की वास्तविकता बहुत देर से बाहर आई, इस बात का उल्लेख पहले भी किया जा चुका है। केस पर काम कर चुके पत्रकारों के अनुसार छात्राओं ने पुलिस तक पहुँचने की कोशिश की गई थी पर पुलिस ने राजनीतिक दबाव में कोई कदम नहीं उठाया। वहीं कुछ ऐसे पुलिसकर्मी थे जो आपत्तिजनक तस्वीरों के जरिए छात्राओं को ही ब्लैकमेल करने लगे थे। मामले में ऐसे ही एक पत्रकार मदन सिंह थे जिन्हें छात्राओं का केस कवर करने के लिए अज्ञात लोगों ने गोली मार दी थी। अस्पताल में इलाज के दौरान मदन सिंह ने हमले के लिए पूर्व कॉन्ग्रेस नेता राजकुमार जयपाल और माफिया सवाई सिंह को जिम्मेदार ठहराया था। हालांकि अज्ञात लोगों की भीड़ ने मदन को अस्पताल में दोबार हमला करके मार दिया था। मदन सिंह ने अपनी रिपोर्ट्स में बताया था कि अजमेर में स्कूली छात्राओं को ब्लैकमेल करके यौन शोषण किया जा रहा है। वहीं पुलिस राजनीतिक दबाव में आकर मामले को दबाने में लगी हुई है। मदन सिंह ने अपने बयान में जिस कांग्रेस के पूर्व नेता राजकुमार जयपाल पर आरोप लगाया था उनके विरुद्ध स्वाति लोढ़ा नामक युवती ने दुष्कर्म का मामला दर्ज करवाया गया था जो अपनी शिक्षा के लिए अजमेर आई थी।
इसी केस पर काम कर रहे अन्य पत्रकार दीनबंधु चौधरी, जिन्होंने सर्वप्रथम मामले की तरफ अजमेरवासियों और सरकार का ध्यान खींचा था, की भी हत्या कर दी गई थी। मदन सिंह की मृत्यु के पहले कांग्रेस नेता का नाम लिए जाने के बाद भी पुलिस द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई। शायद यही कारण था कि मदन सिंह के ऊपर एक से अधिक हमला हुआ और उनकी मौत हो गई। जो पत्रकार चुप थे वो सुरक्षित थे और सामने आने वालों पर जानलेवा हमले हो रहे थे। इन सबके पीछे कौन था? किसके इशारे पर हुआ सरकार ने कभी जानने की कोशिश नहीं की।
अजमेर सेक्स स्कैंडल के अपराधियों में से मुख्य अपराधी कांग्रेस से ताल्लुकात रखते थे। मामले का मुख्य आरोपी फारूक चिश्ती तत्कालीन अजमेर भारतीय युवा कांग्रेस का अध्यक्ष था, वहीं सह आरोपी नफीस चिश्ती अजमेर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उपाध्यक्ष और अनवर चिश्ती अजमेर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का संयुक्त सचिव था। कई नेताओं द्वारा पत्रकार और पुलिस पर दबाव बनाने की खबरें सामने आई थी। ऐसे में राजनीतिक लाभ के लिए कांग्रेस सरकार का मामले को दबाना स्वाभाविक था। अपराधियों को राजनीतिक सांठगांठ का फायदा मिल रहा था पर क्या सरकार के लिए यह समझना मुश्किल था कि पीड़िताओं का निष्पक्ष न्याय पर अधिकार है? आज ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ का नारा देने वाली कांग्रेस उस समय शायद यह भूल गई थी और लड़ने वाली लड़कियों को ही ब्लैकमेल किया जा रहा था। यही कारण है कि अभी तक सहमी पीड़िताओं में से सिर्फ 2 ही अपने बयान पर कायम रह पाई हैं।
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30 वर्षों के बाद भी प्रश्न एक ही है; आखिर कांग्रेस सरकार ने समय रहते कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? इसका उत्तर देना आसान नहीं है क्योंकि कारण एक से अधिक हो सकते हैं। सर्वप्रथम तो मामले में अजमेर शरीफ सूफी दरगाह के खादिम परिवार के लोगों के शामिल होने से मामले के साम्प्रदायिक असर को लेकर सरकार भयभीत हो सकती थी। हालांकि मामले में अपराधियों की धर्म विशेष की पृष्ठभूमि होने के बावजूद सरकार की जिम्मेदारी थी कि वो निष्पक्ष कार्रवाई करे। कांग्रेस अपराधियों पर कार्रवाई न कर यह साबित कर रही थी कि वो धर्मनिरपेक्षता के धागे की रक्षा कर रही है। यही समस्या है कांग्रेस की चयनित धर्मनिरपेक्षता के साथ जो मुस्लिम अपराधी पर आंखे मूंदने को साम्प्रदायिक सौहार्द बनाना कहती है और हिंदू पीड़िताओं के लिए न्याय मांगे जाने कोकम्यूनल हिंसा को बढ़ावा देना मानती है।
खैर, दूसरे पहलू पर नजर डालें तो अपराधियों की पृष्ठभूमि ही नहीं उनकी पहुँच का असर इतना था कि कांग्रेस को अपना वोट बैंक जाने का डर था। मामले जब तेजी से सामने आने लगे थे तो राजस्थान में विधानसभा चुनाव भी नजदीक थे। ऐसे में मामलों पर कार्रवाई कर कांग्रेस सरकार संभवता अपने पारंपरिक वोट बैंक को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहती थी।
सत्ता मोह और धर्मनिरपेक्षता के इस मेल से कांग्रेस देश को अजमेर सेक्स स्कैंडल के रूप में एक नासूर देने में कामयाब रही। इससे कांग्रेस को फायदा कितना भी हुआ हो यह देश, समाज और लोकतंत्र के लिए नुकसानदेह रहा है। कांग्रेस की सरकार की तौर पर जिम्मेदारी थी कि वो सुनिश्चित करे कि राज्य में महिलाएं सुरक्षित हों। धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखने के लिए सरकार को संबंधित अपराधियों को कार्रवाई कर यह संदेश देना चाहिए था कि यह कोई बचाव का चोला नहीं है बल्कि एक-दूसरे धर्म के प्रति सम्मान बनाए रखने का सिद्धांत है और इसका उल्लंघन करने वाले को सजा मिलेगी।
कांग्रेस अपने नेताओं का बचाव करने की बजाए उनपर कार्रवाई करके यह संदेश दे सकती थी कि वे गलत का समर्थन नहीं करते। हालांकि कांग्रेस इसका ठीक विपरीत संदेश देने में कामयाब रही है।
अजमेर सेक्स स्कैंडल में सरकार अपनी जिम्मेदारी निभाने में पूर्णतया विफल रही। इसके लिए वह किसे जवाबदेह है? जनमानस को, पीड़िताओं को या कानून को। कांग्रेस से जवाब मांगने वाला कोई नहीं है। अपनी चयनित धर्मनिरपेक्षता में वो हर उस निर्णय को सही मानती है जो उसके वोट बैंक को सुरक्षित रखता है। इसके लिए सामाजिक न्याय बनाए रखने की जिम्मेदारी वो सरकार की नहीं मानती। कांग्रेस सरकार लगातार मामले को कमजोर कर रही थी तो कानून क्या कर रहा था। अगले लेख में हम समझेंगे कि अजमेर सेक्स स्कैंडल में कानून की भूमिका क्या थी और क्या वो सरकार के विरुद्ध जाकर पीड़िताओं को न्याय दिलाने कामयाब हो सकता था?
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