भारतीय समाज में भीख माँगना काफी लज्जा का विषय माना जाता है। लज्जा ना आए, इसीलिए कुछ लोगों ने भीख को ‘चंदे’ से बदल दिया।
उर्दू का यह शब्द, भारतीय समाज में ठीक उसी तरह फिट हो गया है, जैसे मुफ्तखोरी की राजनीति में अरविन्द केजरीवाल। चंदा ना मिले तो तमाम राजनीतिक दलों के दफ्तरों में ताले लग जाएँ।
‘डोनेशन’ देने वालों को ‘धन्यवाद’ बोल फ़ैक्ट चेकर मोहम्मद ज़ुबैर हुआ ट्रोल
फैक्ट-चेकर मोहम्मद ज़ुबैर चंदे लेने की तत्परता में यह ध्यान तक देना भूल गया कि वह आख़िर किसे ‘कोट ट्वीट’ कर धन्यवाद दे रहा है। यही वजह है कि इस्लामी फैक्ट-चेकर के साथ बीते गुरूवार (1 सितंबर, 2022) के दिन एक मजाक हो गया, जब वह ट्विटर पर चंदा मांग रहा था।
ट्वीट करते हुए मोहम्मद ज़ुबैर ने एक बार फिर चंदे की मांग की तो कई लोगों ने करुणा का भाव दिखाते हुए 500 रूपए और 1000 रुपए भेज दिए। खुशी का इज़हार करते हुए ज़ुबैर ने भी कमेंट में भेजी डिजिटल पर्चियों को रीट्वीट कर दिया।
इसी बीच, मोहम्मद ज़ुबैर ने ‘AlertCitizenCop’ नाम के एक ट्विटर यूजर का स्क्रीनशॉट रीट्वीट किया, लेकिन उन्हें पता नहीं था कि उनके साथ ‘खेल’ हो गया है।
दरअसल, इस ट्विटर यूजर ने एक एडिट किया हुआ ‘पेमेंट रसीद’ शेयर की थी। साथ ही, कथित फ़ैक्ट चेकिंग वेबसाइट ऑल्टन्यूज़ के सह-संस्थापक प्रतीक सिन्हा के साथ प्रवर्तन निदेशालय (ED) और केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) को भी टैग किया था।
बाद में खुद इस ट्विटर यूजर ने रीट्वीट करते हुए मोहम्मद ज़ुबैर का मखौल उड़ाया और तंज़ कसे।
गाँव बसा नहीं, पहले आए भिखारी
मोहम्मद जुबैर के साथ मजाक हुआ है, इसकी भनक उन्हें अभी तक भी नहीं लगी है। इसी बीच कटोरा लिए कई ‘ऐक्टिविस्ट, पत्रकार’ ‘AlertCitizenCop’ के इनबॉक्स में पधार गए।
मीडिया की ‘जंग’
अहमद खबीर ‘जामिया टाइम्स’ नामक समाचार वेबसाइट के एडिटर हैं। ऐसा जामिया टाइम्स की वेबसाइट से भी हमें पता चलता है। इन्ही में से एक क्रांतिकारी का नाम है अहमद खबीर! अहमद खबीर के ट्विटर अकाउंट पर मौजूद जानकारी के अनुसार वह ‘जामिया टाइम्स’ के एडिटर हैं।
चंदाखोर पत्रकारिता का मकड़जाल ऐसा फैला है कि जामिया से डिप्लोमा किए हर वामपंथी पत्रकार ने अपने यूट्यूब वीडियो के सामने ‘पेटीएम’ नंबर डालना शुरू कर दिया है।
इसी कड़ी में अब एक और नाम जुड़ गया है। ‘जामिया टाइम्स’ के एडिटर अहमद खबीर के कुछ स्क्रीनशॉट हमारे संज्ञान में आए हैं।
अहमद खबीर लिखते हैं कि इस साल हमें 10 लाख रुपए चाहिए, इसी से उनका और उनकी टीम का भरण-पोषण होगा। आगे वह गर्व से बताते हैं कि ‘जामिया टाइम्स’ पिछले 4 साल से ‘हिंदुत्व और जाति व्यवस्था के खिलाफ’ मीडिया की जंग का नेतृत्व कर रहा है
अहमद खबीर ने अपने संदेश में आगे लिखा है कि उनकी टीम ने किसान आंदोलन, एनआरसी, सीएए, एनपीआर, दिल्ली दंगे समेत तमाम मुद्दों पर रिपोर्टिंग की थी।
आपको याद होगा कि कैसे शाहीनबाग़ हो या किसान आंदोलन, एक खास समूह ने ऐसा प्रचार किया था जैसे भारत में एक नई क्रांति का उदय हो रहा है। एक माहौल बनाया गया कि भारत में सब ख़राब हो रहा है। हो-हल्ला ऐसा बढ़ा कि रिहाना और मियां खलीफा ने भी ट्वीट कर दिया। और इस पूरे दलदल को फैलाने में प्रॉपगेंडा पोर्टल्स की क्या भूमिका थी, यह हम सब जानते हैं।
कहाँ से मिलती है चंदापरस्त ‘पत्रकारिता’ की प्रेरणा
एक ट्विटर यूज़र के इन्बॉक्स में अहमद खबीर ने अपने किए गए असंख्य कांडो का विवरण दिया है। ऐसा उन्होंने चंदे के लिए इस यूज़र को प्रभावित करने के लिए किया लेकिन अहमद खबीर नहीं जानते थे कि वो ग़लत जगह अपनी ‘उपलब्धि’ का बखान कर रहे हैं।
आजकल चंदापरस्त पत्रकारिता भी मशहूर हो रही है, चाहे अब वो तथाकथित फैक्ट-चेकर मोहम्मद जुबैर हो या राणा अयूब। फैक्ट-चेकर मोहम्मद ज़ुबैर तो बाकायदा हर महीने का टारगेट तैयार रखता है, 8 लाख रुपए मिल गए, बस 3 लाख रुपए का चंदा और मिल जाए।
ध्यान देने वाली बात यह है की इन तथाकथित पत्रकारों को लाखों का चंदा मिलता है, चंदा कहां से आता है किसी को नहीं पता, लेकिन इसी चंदे से यह अपना प्रोपोगंडा चलाते हैं।
आखिर में हम यही कहना चाहेंगे कि नूपुर शर्मा के ऊपर जिहादी भीड़ छोड़ने में केवल मोहम्मद जुबैर दोषी नहीं था बल्कि वह सब भी थे जिन्होंने उसे चंदा देकर सशस्त्र किया।