धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए पाकिस्तान बिलकुल भी सुरक्षित नहीं है। शायद ही ऐसा कोई दिन हो जब पाकिस्तान से अल्पसंख्यकों पर हमले की खबरें सामने ना आती हों और बीते कुछ महीनों में जिस तरह से वहां पर कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा हिंदुओं और ईसाइयों पर हमला किया गया उसे देखकर यह साफ़ होता है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय की स्थिति क्या है। पाकिस्तान में जब भी किसी समुदाय को ठेस पहुँचाना होता है तो हमेशा से ही उनके धार्मिक स्थलों को निशाना बनाया जाता है और इस बार भी कुछ यूँ ही हुआ है।
सोमवार (4 सितंबर) को कराची से हिंसा का एक और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। वीडियो में देखा जा सकता है की नकाबपोश लोगों की भीड़ एक अहमदी इबादतगाह में तोड़फोड़ कर रही है। जिसमे अहमदिया हॉल की छत पर हथौड़े का इस्तेमाल करके मीनारों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। जबकि दूसरी ओर इमारत के बाहर अन्य लोग नारे लगा रहे हैं। इसको लेकर पाकिस्तान में जमात अहमदिया के प्रवक्ता अमीर महमूद का कहना है कि करीब 10 हमलावरों ने दोपहर की नमाज़ के तुरंत बाद ईमारत पर हमला कर दिया।
आपको बता दें, जिस इलाके में यह हिंसा देखी गई वहां से पुलिस थाना केवल दो गलियों की दूरी पर था मगर फिर भी ये हिंसा जारी रही और बाद में जब मामले में कार्रवाई की गई तो पुलिस द्वारा तीन हमलावरों को गिरफ्तार कर लिया गया।
अब इस हमले में जो सबसे बड़ा सवाल है वह ये कि मुसलमानों द्वारा यह हमला मस्जिद पर क्यों किया गया?
दरअसल ये हमला पाकिस्तानी मुसलमानों द्वारा अहमदिया मुसलमानों की मस्जिद में किया गया और इसी समुदाय को पाकिस्तान इस्लाम धर्म पर खतरा भी मानते हैं। यही वजह है कि अहमदिया मुसलमानों पर हमलों की घटना बढ़ती ही जा रही है। इसी वर्ष पाकिस्तान द्वारा रिलीज़ की गई (UPR) की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2017 से 2022 के बीच अपराध की घटनाओं में कम से कम 13 अहमदी मारे गए, जबकि 40 घायल हुए। इसके साथ ही 2018 से 2022 के बीच तीन अहमदी मस्जिदों पर भी हमला किया गया।
दुनियाभर में अहमदिया समुदाय की संख्या करीब 10-20 मिलियन के बीच है, यह कुल मुस्लिम आबादी का मात्र 1% है। अगर पाकिस्तान की बात करें तो वहां पर इनकी आबादी करीब 40-60 लाख तक है और यही एक ऐसा देश है जहाँ पर अहमदिया समुदाय की जनसँख्या सर्वाधिक है। हाल ही में भारत में भी अहमदिया समुदाय को आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने ‘काफिर’ घोषित कर उन्हें मुस्लिम मानने से इनकार कर दिया था। पाकिस्तान में तो इसके लिए बाकायदा कानून है और इसके तहत उन्हें मुस्लिम नहीं माना जाता या फिर अहमदिया खुद को इस्लाम से जुड़ा हुआ नहीं मानते।
पाकिस्तानियों का यह मानना है कि अहमदिया मुसलमान इस्लाम धर्म मानने वालों को गुमराह कर रहे हैं जिससे वह इन्हे मुसलमान मानते ही नहीं। यहाँ तक कि उनकी हर हज यात्रा को भी रोका जाता है। पाकिस्तानी मुसलमानों का मानना है कि अगर इस्लामिक देश में गैर-इस्लामिक कृत्य पर समय रहते अंकुश नहीं लगाया गया तो इस्लाम धर्म पर इसका विपरीत और गलत असर पड़ेगा। जिसे देखते हुए पाकिस्तान ने इस समुदाय की पैरवी करने वाली वेबसाइट को कई बार बंद करने का नोटिस भी दिया है क्योंकि वह इसे धोखाधड़ी मानते हैं। केवल इतना ही नहीं बल्कि पाकिस्तान में इस मांग ने भी ज़ोर पकड़ ली है कि अहमदिया मुसलमानों की किसी भी महत्वपूर्ण पद पर नियुक्ति ना की जाए।
आज एक तरफ जर्मनी है जहाँ अहमदिया समुदाय के प्रमुख हज़रत मिर्ज़ा मसरूर अहमद द्वारा मस्जिद का उद्घाटन कराया जाता है तो वही दूसरी ओर पाकिस्तान जहाँ उनके साथ अत्याचार किए जाते हैं।
पाकिस्तान हमेशा से ही अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ रहा है, उन पर अत्याचार करता आया है और यही अत्याचार अब पाकिस्तान में रहने वाले अहमदिया मुसलमानों पर भी होता नज़र आ रहा है। धार्मिक स्थलों को निशाना बना कर समुदाय की आस्था को ठेस पहुंचाई जाती है और यही पाकिस्तान लंबे समय से कर रहा है।
यह भी पढ़े : भारत लाया जाएगा मुंबई हमले का आतंकी तहव्वुर राणा