कर्नाटक की कॉन्ग्रेस सरकार ने हाल ही में प्रदेश सरकार द्वारा संचालित मंदिरों के विकास के लिए कोई भी धनराशि देने से मना कर दिया था। इसके लिए आदेश भी जारी कर दिए गए थे। अब विरोध के पश्चात इस आदेश को वापस कर लिया गया है लेकिन सरकार की फजीहत हो चुकी है।
गौरतलब है कि इससे पहले प्रदेश के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने भी कहा था कि राज्य में विकास पर कोई भी पैसा खर्च नहीं होगा क्योंकि उन्हें अपनी चुनावी गारंटी पूरी करनी हैं। अब यह आदेश और इससे कर्नाटक की कॉन्ग्रेस सरकार का पीछे हटना सामने आया है।
जानकारी के अनुसार, देश के स्वतंत्रता दिवस की पूर्वसंध्या 14 अगस्त को कर्नाटक के मुजरई विभाग (सरकार द्वारा संचालित मंदिरों की देखरेख करने वाला विभाग) के कमिश्नर एच बसवाराजेंद्र ने एक आदेश जारी किया था जिसमें कहा गया था कि यदि मंदिरों का विकास कार्य अभी तक चालू नहीं हुआ है तो उनको कोई भी पैसा अब ना दिया जाए। आगे पत्र में कहा गया था यदि मंदिरों के विकास कार्य के लिए 50% फंड की स्वीकृति जारी हो चुकी है तो उसे तुरंत रोक दिया जाए और आगे किसी भी प्रकार के धन के लिए मन कर दिया जाए।
इस विभाग के अंतर्गत कर्नाटक में 34,563 मंदिर आते हैं। इनमें से 200 मंदिर ऐसे हैं जिनका सालाना राजस्व 25 लाख से अधिक है। इस फैसले का सोशल मीडिया समेत विपक्षी पार्टियों ने काफी कड़ा विरोध किया और कॉन्ग्रेस सरकार को हिन्दू विरोधी करार दिया।
इस निर्णय के कारण विवादों में घिरी कॉन्ग्रेस सरकार ने अब इस आदेश को रद्द कर दिया है। कर्नाटक सरकार में मंत्री रामलिंग रेड्डी ने यह भी माना है कि यह आदेश गलत है। उन्होंने इस पूरे विवाद का ठीकरा पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के ऊपर मढ़ दिया और बताया कि उस दौरान ही मंदिरों को पैसा नहीं दिया गया था। इसका जवाब देते हुए भाजपा नेताओं ने स्पष्ट किया कि राज्य में आचार संहिता और चुनाव के कारण पैसा नहीं जारी किया जा सका था।
भाजपा विधायक और पूर्व केन्द्रीय मंत्री बीआर पाटिल यत्नाल ने कहा कि कर्नाटक की कॉन्ग्रेस सरकार के पास वक्फ बोर्ड और अल्पसंख्यकों को देने के लिए पैसा है, वह मंदिरों का धन रोक रही है। गौरतलब है कि हाल ही में कर्नाटक सरकार ने बड़ी धनराशि वक्फ बोर्ड और क्रिस्चियन बोर्ड को दी थी।
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