राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने सितंबर 2021 के मुंद्रा पोर्ट ड्रग बरामदगी मामले में पश्चिम बंगाल के एक कारोबारी को गिरफ्तार किया है। एनआईए द्वारा वांटेड की सूचि में शामिल अफगान भाइयों हसन दाद और हुसैन दाद के अंडर में चल रहे सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय ड्रग तस्करी सिंडिकेट से संबंधित मामले में यह 26वीं गिरफ्तारी है।
पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के व्यवसायी सुशांत सरकार को आतंकवादी गतिविधियों और भारत में हेरोइन की अवैध तस्करी में कथित संलिप्तता के मद्देनजर गिरफ्तार किया गया है।
एनआईए ने कहा कि, “सुशांत सरकार ने नवंबर में ईरान के माध्यम से अफगानिस्तान से भारत में सेमी-प्रोसेस्ड हेरोइन पाउडर की शिपमेंट का ऑर्डर दिया था। उसने इसके लिए अपनी फर्म ‘जीसस क्राइस्ट इम्पेक्स’ का इस्तेमाल किया और हेरोइन की एक खेप को एक अन्य आरोपी, दिल्ली के सम्राट होटल में प्लेबॉय क्लब के मालिक कबीर तलवार की फर्म तक भी पहुँचाया। इस खेप को हेरोइन तस्करी करने वाले सिंडिकेट के लोगों द्वारा उतारा गया था, जो इस मामले में चार्जशीटेड हैं।”
अफगानिस्तान के दाद बंधुओं ने समुद्री मार्ग से कंटेनरों द्वारा भारत में हेरोइन की कई खेप पहुंचाई हैं। हेरोइन को अफगानिस्तान में प्रोसेस किया गया था और उसके बाद सेमी-प्रोसेस्ड पाउडर और बिटुमिनस कोयले जैसी अन्य सामग्रियों के रूप में छुपाया गया था। इन खेपों को पहले गुजरात और कोलकाता के भारतीय बंदरगाहों पर भेजा गया और उसके बाद ट्रकों पर लादकर नई दिल्ली भेजा गया था।
राजस्व खुफिया निदेशालय ने पिछले साल 13 सितंबर को गुजरात के मुंद्रा बंदरगाह पर एक कंटेनर फ्रेट स्टेशन से अफगानिस्तान से तस्करी कर लायी गयी 2,988 किलोग्राम हेरोइन जब्त की थी और मामला दर्ज किया था।
इस साल मार्च में 16 लोगों के खिलाफ दायर अपनी पहली चार्जशीट में एनआईए ने दावा किया था कि रैकेट में शामिल लोगों के पाकिस्तान के आतंकवादी समूहों से भी संबंध हैं। 29 अगस्त को नौ और आरोपियों के खिलाफ सप्लीमेंट्री चार्जशीट भी दाखिल की गई थी। इस संगीन मामले में NIA ताबड़तोड़ देशभर में संदिग्धों की गिरफ्तारी कर भारत में अफगानिस्तान की तालिबानी अफीम के अवैध धंधे पर क्रैकडाउन कर रही है।
अफगानिस्तान में पैदा हुई अफीम से बनती है हेरोइन
अभी दुनिया में अफीम का सबसे बड़ा उत्पादक अफगानिस्तान है। अवैध नशीली दवाओं के व्यापार के लिए, अफीम के लेटेक्स से मॉर्फिन निकाला जाता है, जिससे इसका थोक वजन 88% कम हो जाता है। फिर इसे प्रॉसेस करके हेरोइन में बदल दिया जाता है, जो लगभग दुगनी शक्तिशाली होती है, और इसका मूल्य भी बहुत ज्यादा बढ़ जाता है।
कम वजन के कारण हेरोइन की थोक में तस्करी करना आसान हो जाता है, और दुनिया के तमाम देशों में समुद्र मार्ग से इसकी अवैध तस्करी की जाती है, जिसमें बड़े बड़े आतंकवादी संगठन, औद्योगिक घराने, और यहाँ तक कि कई देशों के सैन्य अधिकारी और राजनेता भी संलिप्त रहते हैं। अभी अफगानिस्तान व पाकिस्तान के ऊपरी क्षेत्र और म्यांमार दुनिया में अफीम के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता हैं।
अफगानिस्तान में बेतहाशा बढ़ गई अफीम की खेती
संयुक्त राष्ट्र की UNODC की रिपोर्ट के अनुसार 2019 की तुलना में अफगानिस्तान के अफीम के खेतों में एक साल में ही 37% की बढ़ोतरी हुई, और जुताई क्षेत्र 163 हजार हेक्टेयर से बढ़कर 224 हजार हेक्टेयर हो गया था। पर सोचने देने वाली बात है कि इस दौरान अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी नहीं हुई थी, तो अफगानिस्तान में अफीम की खेती इतनी तेज गति से कैसे बढ़ गई।
1994 में तालिबान की स्थापना से पहले अफगानिस्तान में अफीम की खेती छोटे पैमाने पर ही होती थी, इसलिए इसके विस्तृत आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में तालिबान की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए सिंडिकेट द्वारा अफगानिस्तान में अफीम की खेती को धीरे धीरे बढ़ावा दिया जाने लगा। अफगानिस्तान के खेतों में होने वाली अफीम की खेती के निर्यात में दाऊद समेत पाकिस्तान के कई आतंकी गुट सक्रिय रहते हैं।
अफगानिस्तान में अफीम खेती के बढ़ने के इतिहास में छिपे हैं कई प्रश्न
1994 के बाद के सालों में अफगानिस्तान में अफीम खेती पर UN द्वारा जारी निम्न चार्ट दिखाता है कि अफगानिस्तान में अफीम की उपज 2001 के बाद लगातार बढ़ी जो अब चार गुणा हो चुकी है। ध्यान देने वाली बात है कि सितम्बर 2001 में ही अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेण्टर पर हमले के बाद अफगानिस्तान में अमेरिका ने कदम रखे थे।
इससे 16 महीने पहले से ही तालिबान सरकार के मुल्ला उमर ने अलकायदा के भयंकर विरोध के कारण अफीम की खेती पर सख्त प्रतिबन्ध लगा रखा था, जिस कारण अफगानिस्तान की 99% अफीम खेती बंद हो गई थी और दुनिया की तीन चौथाई हेरोइन सप्लाई खत्म हो गई थी। UN के ग्राफ में देखा जा सकता है अमेरिका के प्रवेश के साथ ही उसके बाद अफगानिस्तान में अफीम की खेती तेजी से बढ़ने लगी।
अफगानिस्तान में तालिबान से पहले मुजाहिदीन संगठन मजबूत था और इस्लाम में नशा के हराम होने के कारण उसने अफगानिस्तान के नार्दर्न अलायन्स वाले भाग में अफीम पर रोक लगा दी थी, माना जाता है कि इसीलिए मुजाहिदीन के विकल्प के रूप में तालिबान को ड्रग सिंडिकेट ने बढ़ावा दिया।
तालिबान की आर्थिक शक्ति का सबसे बड़ा स्रोत है अफीम की खेती
बाद में अपनी आतंकवादी गतिविधियों को चलाने के लिए तालिबान ने अफीम को राजस्व का स्रोत बना लिया, अब अफगानिस्तान में अफीम की खेती इतनी बढ़ गयी है कि केवल अफीम के बूते ही तालिबान को आत्मनिर्भर कहा जा सकता है, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र के अनुसार वैश्विक अफीम और हेरोइन की आपूर्ति का 80 प्रतिशत हिस्सा अफगानिस्तान से होने वाली मुख्यतः अवैध तस्करी से आता है। अनुमान के मुताबिक तालिबान की 60% आय अवैध नशीले ड्रग्स से होती है।
अफगानिस्तान में उगने वाली अफीम दुनिया में सबसे नशीली होती है, इसलिए ड्रग मार्केट में इसका दाम और माँग बहुत ज्यादा है। हालाँकि, इस साल के शुरुआत में तालिबान के अखुन्दजादा ने अफीम को फिर से बैन करने की बात कही थी, पर इसपर सन् 2000 जैसा अमल दूर की कौड़ी नजर आता है।
अमेरिका नशीली दवाइयों का सबसे बड़ा बाजार
संयुक्त राष्ट्र की UNODC रिपोर्ट के अनुसार आज नशीली दवाओं का सबसे बड़ा बाजार अमरीका है। नशीली दवाइयों से प्रति लाख में सबसे ज्यादा मृत्युदर भी अमेरिका में ही है। भारत में भी बॉलीवुड के अवैध ड्रग सम्बन्ध सामने आते रहे हैं, अभी के मामले में भी दिल्ली के प्लेबॉय क्लब संचालक पर कार्यवाही हो रही है, ऐसे में इस नेक्सस पर NIA की कार्रवाई तालिबानी ड्रग सिंडिकेट समेत कुछ बड़े नामों के सरदर्द का भी कारण बन सकती है।
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