पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए मुस्लिम धर्म से संबंध रखने वाले एक सहायक प्रोफेसर को नियुक्ति से बर्खास्तगी पर कोई भी राहत देने से मना कर दिया। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से बर्खास्त किए गए शिक्षक आबिद अली के मामले में यह निर्णय पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने सुनाया। कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम व्यक्ति को अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र जारी ही नहीं किया जा सकता।
आबिद अली को वर्ष 2010 में अनुसूचित जाति के प्रमाणपत्र के आधार पर हरियाणा के कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के पद नियुक्ति दी गई थी। इस नियुक्ति के विरुद्ध भर्ती प्रक्रिया में असफल होने वाले उम्मीदवार ने अपील की थी। नौकरी ना पाने वाले व्यक्ति का कहना था कि प्रोफेसर की नियुक्ति पाने वाले आबिद अली को अनुसूचित जाति के आधार पर नियुक्ति दी गई है जो कि गलत है क्योंकि आबिद मुस्लिम धर्म से सम्बन्ध रखते हैं और ऐसे में अनुसूचित जाति के पद पर वह नियुक्त नहीं किए जा सकते।
इस मामले में करनाल जनपद के डिप्टी कमिश्नर द्वारा गठित की गई एक समिति ने अपनी जांच में यह पाया था कि आबिद, मुस्लिमों में जुलाहा समुदाय से संबंध रखते हैं और अनुसूचित जाति के लाभ पाने के हकदार नहीं हैं। समिति ने आबिद की सेवाएं समाप्त करने की भी सिफारिश की थी। इसके पश्चात एक अन्य समिति ने आबिद की सेवाएँ समाप्त करने का निर्णय लिया था।
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इस निर्णय के विरुद्ध आबिद ने अपील की थी जिसे सुनते हुए हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति जयश्री ठाकुर ने कहा, “न्यायालय यह विचार रखता है कि भले ही याचिकाकर्ता ने अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र पाते समय तथ्यों से छेड़छाड़ नहीं की थी परन्तु उनका दावा है कि उन्हें नियुक्ति इसी प्रमाणपत्र के अंतर्गत मिली थी जिसके वह हकदार नहीं थे। ऐसे में न्यायालय उन्हें आगे सेवाएं जारी नहीं रखने दे सकता।”
न्यायिक मामलों की खबरों पर नजर रखने वाली वेबसाइट लाइवलॉ के अनुसार, कोर्ट ने कहा कि उसके समक्ष ऐसे कोई साक्ष्य नहीं है जिनसे यह स्पष्ट हो सके कि याचिकाकर्ता हिन्दू या अनुच्छेद 341 के अंतर्गत प्रदत्त शक्तियों के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा दिए गए आदेश के पैरा 3 के अंतर्गत आने वाले किसी भी धर्म का पालन करता है, ऐसे में उन्हें अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र जारी नहीं किया जा सकता था क्योंकि वह मुस्लिम धर्म से ताल्लुक रखते है।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता को जारी किए गए प्रमाणपत्र के विषय में कहा कि यह स्पष्ट है कि इसे जारी करते समय उनका और उनके पिता, दोनों का नाम मुस्लिम था ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने प्रमाणपत्र लेने में कोई भी धोखाधड़ी नहीं की।
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