“वर्तमान समय में शराब की दुकानों के लिए राजनेताओं की सिफारिश पर अधिकारियों द्वारा लाइसेंस दिया जाता है। वे प्राय: रिश्वत ले कर लाइसेंस देते हैं।”
ऊपर लिखे गए यह शब्द अरविन्द केजरीवाल के हैं। यह तब लिखे गए थे जब केजरीवाल राजनेता नहीं थे। तब वे एक्टिविस्ट थे और एक्टिविस्ट इसी तरह की बातें लिखता और बोलता है।
आज जब एक्टिविस्ट को कोसों दूर पीछे छोड़ केजरीवाल राजनेता बन चुके हैं, तो उनके लिए इन शब्दों के मायने उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने एक्टिविस्ट के रोल में उनके द्वारा बोले या लिखे गए अन्य शब्दों, वाक्यों या वादों के।
एक एक्टिविस्ट के रोल में बोले या लिखे गए शब्द केजरीवाल के लिए महत्वपूर्ण होते तो मनीष सिसोदिया कब का इस्तीफा दे चुके होते। सिसोदिया तो देते ही, उनसे पहले सत्येन्द्र जैन दे चुके होते।
सोमनाथ भारती का एक बयान था जो अब शायद आम आदमी पार्टी के नेता को याद ना हो क्योंकि यह काफी पुराना बयान है। दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार के पूर्व कानून मंत्री सोमनाथ भारती ने लोकपाल विधेयक लाने की बात पर कहा था, “हम जो लोकपाल बिल ला रहे हैं उसके कारण भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों की रूह कांप जाएगी।”
दरअसल रूह के कांपने के लिए रूह का होना आवश्यक है जो आम आदमी पार्टी की कभी नहीं रही। पार्टी ने अपनी जगह तय कर ली है क्योंकि उसने आज तक किसी बात की जिम्मेदारी नहीं ली।
वैसे भी, किसी को इस बात पर कोई शंका नहीं कि पार्टी केजरीवाल की है। ऐसे में सवाल केजरीवाल से पूछा जाना चाहिए कि भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस वाली नीति का क्या हुआ? एक्टिविस्ट के रोल में किए गए वादे नेता के रोल में आते ही भुला क्यों दिए गए? एक राजनेता और मुख्यमंत्री की भूमिका में केजरीवाल झूठ बोलते हुए रोज क्यों पकड़े जाते हैं? झूठा साबित होने पर औरों के आरोपों और तर्कों को झटक क्यों देते हैं?
जवाबदेही अरविन्द केजरीवाल की ही बनती है। मनीष सिसोदिया तो CBI को जवाब दे ही रहे होंगे लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री और पार्टी के परमानेन्ट मुखिया होने के नाते केजरीवाल से भी सवाल किए जाने चाहिए।
केजरीवाल को जवाब देना चाहिए कि भ्रष्टाचार के आरोपों का जवाब “सब झूठ है” जैसा वाक्य कैसे हो सकता है? भ्रष्टाचार की जांच का जवाब सड़कों पर प्रदर्शन कैसे हो सकता है? जांच एजेंसियों के सवाल का जवाब राजघाट में बापू की प्रतिमा के सामने बैठकी कैसे हो सकती है? आबकारी मंत्री सिसोदिया के कारनामों को लेकर किए गए सवाल का जवाब शिक्षा मंत्री सिसोदिया के पक्ष में नारे लगाकर कैसे दिया जा सकता है?
सड़कों पर धरना देकर जांच एजेंसियों या केंद्र सरकार के खिलाफ माहौल बनाना जाँच सम्बन्धी सवालों का जवाब नहीं हो सकता। अपराध सम्बन्धी सबूतों को नष्ट करना अपराध को लेकर किए गए सवालों का जवाब नहीं हो सकता।
जिन अन्ना हजारे को आगे रखकर केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री पद तक पहुँचे, उन्हीं अन्ना हजारे ने केजरीवाल, उनके मित्रों और उनकी पार्टी की नैतिकता का एक अनुमान भारत के सामने यह कह कर दे दिया था कि “रामलीला मैदान में अन्ना कार्ड का इस्तेमाल कर जो पैसा इकट्ठा किया गया, उसका हिसाब उन्हें नहीं दिया गया।”
केजरीवाल के तमाम मित्र और मित्र से मंत्री बने लोग आज जब पार्टी में नहीं हैं और जब हर तरफ केवल केजरीवाल दिखाई दे रहे हैं तो उनसे प्रश्न पूछा जाना चाहिए।
प्रश्न यह पूछा जाना चाहिए कि दिल्ली सरकार के कुल 32 विभागों में 18 विभाग मनीष सिसोदिया के पास ही क्यों थे? प्रश्न पूछा जाना चाहिए कि केजरीवाल के पास एक भी विभाग क्यों नहीं है? आखिर देश में और कौन सा नेता है जो बिना विभाग का मुख्यमंत्री है? प्रश्न पूछा जाना चाहिए कि दिल्ली सरकार के किसी भी कागज पर केजरीवाल के दस्तखत क्यों नहीं हैं? लोकतांत्रिक प्रक्रिया में यदि फैसलों की सामूहिक जिम्मेदारी कैबिनेट की होती है तो केजरीवाल इससे कैसे बच सकते हैं?
वैसे कागज पर दस्तखत ना होने की बाबत सवाल दिल्ली के उप राज्यपाल ने पूछे हैं परन्तु उनके सवाल को केजरीवाल यह कह कर झटक चुके हैं कि वे तो राजनीति से प्रेरित सवाल हैं।
आखिर, क्या अपने पास मंत्रालय का ना होना जवाब ना देने का पर्याप्त बचाव हो सकता है? केजरीवाल को जवाब देना चाहिए क्योंकि जवाब देने के लिए कोई और अब बचा भी नहीं है। सिवाए शायर मिजाज भगवंत मान के, जिनसे केजरीवाल अब प्रेस कॉन्फ्रेंस करवा रहे हैं।
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