राजनीति बदलने का उद्देश्य लेकर आई आम आदमी पार्टी आजकल अपने मंत्री और उनके मंत्रालय बदलने (और न बदलने को लेकर भी) को लेकर खासी चर्चा में है। पार्टी की पंजाब सरकार में कैबिनेट मंत्री फौजा सिंह सरारी ने भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद इस्तीफा दे दिया है। जहाँ विपक्ष चार माह से पंजाब सरकार पर हमलावर था, वहीं सरारी इस सरकार के कथित ‘भ्रष्टाचार मुक्त’ तमगे के साथ फिट नहीं बैठ पा रहे थे।
इससे पहले भ्रष्टाचार के आरोप में स्वास्थ्य मंत्री रहे डॉ. विजय सिंगला को पंजाब सरकार ने बर्खास्त कर दिया था। भगवंत मान सरकार के इस फैसले की तारीफ भी हुई थी। मंत्रियों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप के बाद उन्हें बर्खास्त किया जाए, ऐसा हर बार सम्भव नहीं हो सकता। ऐसे में सिंगला को बर्खास्त करने के बाद सरारी से इस्तीफ़ा करवा लिया गया है।
पर मंत्रियों के इस्तीफ़ों और बर्खास्तगी राजनीति का एक पहलू है। इन घटनाओं के और पहलू हैं जिन पर चर्चा होनी चाहिए। प्रश्न यह है कि आम आदमी पार्टी पंजाब और दिल्ली में अपने मंत्रियों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप को लेकर अलग-अलग रैवया क्यों अपना रही है?
दिल्ली और पंजाब में भ्रष्टाचार की परिभाषा क्या अलग-अलग है?
दिल्ली की केजरीवाल सरकार में उप मुख्यमंत्री और केजरीवाल के खास सहयोगी मनीष सिसोदिया पर शराब घोटाले में बड़े आरोप लगे लेकिन मुख्यमंत्री केजरीवाल लगातार सिसोदिया के साथ खड़े रहे और हमेशा यही कहा कि; आरोप झूठे हैं। ऐसा ही सत्येंद्र जैन के मामले में देखा गया। तिहाड़ जेल में बंद सत्येंद्र जैन पर केवल गंभीर आरोप ही नहीं लगे बल्कि उनका नाम प्रवर्तन निदेशालय की चार्जशीट में है।
केजरीवाल ने अपने दोनों मंत्रियों का न केवल समर्थन किया बल्कि उनके लिए भारतरत्न तक की मांग कर डाली। प्रश्न यह है कि एक राजनीतिक दल के रूप में आम आदमी पार्टी की भ्रष्टाचार जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर नीति है या नहीं? प्रश्न इसलिए और महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि दल के नेताओं ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन खड़ा करके ही राजनीति में प्रवेश किया था। ऐसे में एक राजनीतिक दल के रूप में आम आदमी पार्टी की राजनीति, शासन और प्रशासन को लेकर दो राज्यों में अलग-अलग नैतिकता क्यों है?
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पंजाब में मंत्रियों के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगते ही उन्हें बर्खास्त कर दिया गया पर दिल्ली में मंत्री के ऊपर आरोप ही नहीं बल्कि चार्जशीट होने के बावजूद केजरीवाल उन्हें निर्दोष बताते हैं। इसके पीछे क्या कारण हो सकता है? क्या आम आदमी पार्टी यह संदेश देना चाहती है कि दिल्ली के नेता चूँकि केजरीवाल के मंत्री हैं इसलिए वे भ्रष्ट हो ही नहीं सकते? कि जो केजरीवाल के साथ है उसे मानवीय दोष के ऊपर माना जायेगा?
महत्वपूर्ण बात यह है कि अरविन्द केजरीवाल ने अपने पिछले कार्यकाल में दिल्ली सरकार के दो मंत्रियों को बर्खास्त किया था। शायद तब आम आदमी पार्टी के पास ‘संदेश’ देने के लिए दिल्ली से बाहर कोई संभावना नहीं था। अब छवि बनाने के लिए विकल्प के तौर पर पंजाब में सरकार बन गयी है इसलिए भ्रष्टाचार के मुद्दे पर हर बार पंजाब सरकार को आगे कर दिया जा रहा है।
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पंजाब सरकार बनाम केजरीवाल सरकार
भगवंत मान शुरू से ही विवादों में रहे, वे ‘झूमते हुए’ सार्वजनिक जगहों पर दिखे, इंडिया टुडे ने उन्हें ‘पैगवंत मान’ का भी तमगा दिया लेकिन उनकी पार्टी ने हमेशा उनका साथ दिया। शायद केजरीवाल जानते थे कि पंजाब में एंट्री के लिए मान ही अहम कड़ी थे। तो क्या अब उन्हें अक्षम दिखाने की कोशिश हो रही हैं?
पंजाब अपराधों को लेकर हमेशा ख़बरों में रहता है, पंजाब की कानून व्यवस्था को लेकर आम आदमी पार्टी विपक्ष के निशाने पर रहती है। दूसरी ओर वर्तमान में आम आदमी पार्टी देश में विस्तार की रणनीति बना रही है। राजनीतिक दलों के बीच बढ़ती प्रतिद्वंदिता के बीच पार्टी नहीं चाहेगी कि भगवंत मान की वजह से उसे समय-समय पर असहज न होना पड़े और इसका नुकसान झेलना पड़े।
आम आदमी पार्टी क्या यह साबित करने का प्रयास कर रही है कि चूँकि केजरीवाल को राष्ट्रीय राजनीति में अपनी जगह बनानी है इसलिए आरोप और तथ्य चाहे जितने मज़बूत रहे, केजरीवाल के ऊपर किसी भी हालात में दाग नहीं लगने दिया जायेगा। जो भी आरोप लगे या सरकार की नैतिकता या कार्यशैली पर जो भी प्रश्न उठें, वो पंजाब सरकार पर उठें।
क्या पार्टी पंजाब में किसी और नेता को भगवंत मान की जगह स्थापित करना चाहती है?
अरविंद केजरीवाल के करीबी राघव चड्ढा वर्तमान में पंजाब से ही राज्यसभा सांसद हैं और प्रदेश में पार्टी की जीत में उनका अहम योगदान माना जाता है। पार्टी की परदे के पीछे बनने वाली रणनीतियों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। शायद इसलिए ऐसा बार-बार कहा जाता है कि केजरीवाल उन्हें पंजाब स्थापित करना चाहते हैं।
“इस बार लोग नहीं खाएंगे धोखा, भगवंत मान और केजरीवाल को देंगे मौका” इस नारे के साथ पंजाब की सत्ता में आये भगवंत मान स्वयं धोखा जरूर महसूस कर रहे होंगे। क्या पद बचाने की जद्दोजहद में उन्हें बर्खास्त किये गए मंत्रियों की जी हजूरी करनी पड़ रही है?
पंजाब में बर्खास्त मंत्री सिंगला 43 दिन जेल में रह कर आये पर उसके बाद भी वे राजनीतिक तौर पर सक्रिय रहे। कुछ सूत्रों के अनुसार तो वे कैबिनेट की बैठकों में भी दिखाई दिए।
दरअसल, पंजाब में सरकार बनने के बाद मंत्रालयों में जिस तरह से अदला-बदली हो रही है उसके चलते कहीं न कहीं सरकार के अंदरूनी समीकरण बन और बिगड़ रहे होंगे। जिससे भगवंत मान का चिंतित होना जायज है। ऐसे में फौजा सिंह सरारी ने भले ही इस्तीफा दे दिया हो लेकिन यह भी हो सकता है कि इस तरह के इस्तीफे केवल एक राजनीतिक स्टंट बन कर रह जाएँ।