इस शैक्षणिक वर्ष में केरल के शिक्षा विभाग ने रोजगार कार्यालय को जानकारी दिए बिना ही 8,000 अस्थायी शिक्षकों की नियुक्ति की है। हजारों योग्य व्यक्तियों ने रोजगार कार्यालयों में पंजीकरण कराया है लेकिन किसी भी स्कूल ने संविदा शिक्षकों को काम पर रखने के लिए रोजगार कार्यालय से संपर्क नहीं किया। (In Kerala, Employment Exchanges kept in dark as govt schools recruit 8,000 temporary teachers)
इसके बजाय शिक्षकों को काम पर रखने का कार्य अभिभावक-शिक्षक संघों ने किया और सरकार उनके वेतन का भुगतान कर रही थी। केरल की पिनराई विजयन सरकार पर आरोप है कि राजनीतिक दबाव और सिफारिशों के आधार पर ये नियुक्तियां की गईं।
हालाँकि शिक्षा विभाग ने कहा कि अस्थायी नियुक्तियों की सूची को अंतिम रूप नहीं दिया गया है। वहीं ऑन मनोरमा नामक समाचार एजेंसी के सूत्रों के अनुसार अब तक लगभग 8,000 शिक्षकों को अस्थायी आधार पर नियुक्त किया गया है।
उच्चतर माध्यमिक विद्यालय नए 178 बैचों को पढ़ाने के लिए गैर-स्थायी शिक्षकों पर निर्भर हैं। प्राथमिक शिक्षकों को प्रतिदिन 955 रुपये का भुगतान किया जाता है, जबकि हाई स्कूल के शिक्षकों को 1,100 रुपये मिलते हैं। उच्च माध्यमिक जूनियर शिक्षकों को 1,205 रुपये और वरिष्ठ शिक्षकों को 1,455 रुपये का दैनिक भुगतान मिलता है।
दरअसल, केरल सरकार ने 2004 में एक आदेश दिया था कि सभी राज्य-प्रायोजित अस्थायी नियुक्तियाँ केवल रोजगार कार्यालयों के माध्यम से की जाएंगी। रोजगार निदेशालय ने दावा किया कि वह हर साल सामान्य शिक्षा विभाग को आदेश की याद दिलाता है। शिक्षा विभाग में सबसे ज्यादा अस्थायी भर्तियां होती हैं।
रोजगार निदेशक ने एक पत्र में शिक्षा विभाग से मार्च में ही अपने उम्मीदवारों की सूची से अस्थायी रिक्तियों को भरने का अनुरोध किया था। विभाग ने मेल को नजरअंदाज कर दिया था।
इससे पहले केरल सरकार पर शिक्षक भर्ती घोटाले का बड़ा आरोप लग चुका है। जिसमें केरल सरकार पर आरोप लगाया गया कि सबसे कम नंबर मिलने पर भी CM की करीबी को ‘प्रोफेसर’ बना दिया था।
ज्ञात हो कि पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाला सामने आने पर कई गिरफ्तारियां हो चुकी हैं जिसमें ममता बनर्जी के कई करीबी शामिल हैं।
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