भारत की स्वतंत्रता और संप्रभुता की रक्षा के लिए हजारों नायकों ने अपना बलिदान दिया है। उन्हीं में से एक हैं तुकाराम ओंबले। 26/11 को याद कर आज भी लोग सहम उठते हैं। कभी न थमने वाला मुंबई शहर आज ही के दिन साल 2008 में थम गया था, जब छत्रपति शिवाजी टर्मिनस में अचानक शुरू हुई गोलियों की गड़गड़ाहट ताज होटल तक जा कर रुकी।
करीब 160 से भी अधिक लोगों ने अपनी जान गँवाई और 300 से अधिक लोग घायल हुए। सेना के कई जवानों ने अपनी शहादत दी। जिनकी शहादत की शौर्य गाथा सुन आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं, वे हैं तुकाराम ओंबले।
तुकाराम, जिन्होंने अपने साथी पुलिसकर्मियों की जान बचाने के लिए 23 गोलियाँ अपने सीने पर खाई। तुकाराम, जो निहत्थे होते हुए भी आतंकी अज़मल कसाब से भिड़ गए। तुकाराम, जिन्होंने अपने कर्त्तव्य का पालन करते हुए निज को राष्ट्रहित के लिए न्योछावर कर दिया।
23 गोलियों की शहादत
हम फिल्मों में तो यह देखते रहे हैं कि नायक गोलियाँ खाने के बाद भी अंत तक लड़ता है। हालाँकि, ऐसा कुछ अगर हमने हक़ीक़त में देखा, तो सिर्फ़ तुकाराम ओंबले को। जो मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले में शहीद हो गए। उनके सीने पर चली 23 गोलियों के साथ इस हमले का अंत हुआ था।
जब आखिरी के दो आतंकियों, अजमल कसाब और उसके साथी इस्माइल पर गोली दागी गई। इस्माइल मौके पर ही मारा गया और कसाब ज़ख़्मी था।
जब पुलिस का पूरा काफिला यह सोचते हुए आगे बढ़ा कि आखिरी के दोनों आतंकी मारे गए, तभी कसाब ने अपनी AK47 निकाल पुलिस के काफिले की ओर गोलीबारी कर दी। उसी दौरान तुकाराम ओंबले ने AK47 के सामने आकर अजमल को ज़िंदा दबोच लिया और अपने साथियों को बचाते हुए AK47 की 23 गोलियाँ अपने सीने पर ले ली।
इसके बाद बाकी के पुलिस अधिकारी आतंकी अजमल को ज़िंदा पकड़ लेते हैं। उस हमले में दी गई यह सबसे बड़ी शहादत थी। अगर तुकाराम ये गोलियाँ न खाते तो न जाने कितने ही पुलिस के जवान मारे जाते। तुकाराम ओंबले ने न केवल आतंकवादी को पकड़ा था, बल्कि कॉन्ग्रेस द्वारा चल रहे हिंदुओं के खिलाफ आतंकवादी प्रचार को भी नेस्तनाबूद कर दिखाया
कॉन्ग्रेस द्वारा ‘हिंदू आतंकवाद’ के झूठ का प्रचार
शहीद तुकाराम ओंबले ने आतंकवादी को ज़िंदा पकड़ने के लिए अपना बलिदान तो दिया ही, साथ ही, हिंदू आतंकवाद की धारणा को स्थापित नहीं होने दिया।
मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया यह मानते हैं कि यदि कसाब जीवित न पकड़ा जाता तो हिंदू आतंकवाद की जिस धारणा को स्थापित करने की योजना थी, वह स्थापित हो जाती, क्योंकि हमले के समय पकिस्तान से आए कसाब के पास समीर चौधरी के नाम से पहचान-पत्र था।
26/11 हमले के कुछ समय बाद ही कॉन्ग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने एक बयान में कहा था कि 26/11 हमले के दिन उन्होंने मुंबई एंटी-टेररिस्ट स्क्वाड के चीफ हेमंत करकरे से फ़ोन पर बात की थी और करकरे ने दिग्विजय को बताया कि उन्हें आरएसएस की ओर से धमकियाँ दी जा रही थीं।
इसे हिंदुओं के प्रति साजिश कहा जाए या कुछ और लेकिन इस हमले के दौरान यह देखा गया कि पाकिस्तान से आए आतंकवादियों का उद्देश्य हिंदू आतंकवाद की घोषित धारणा को स्थापित करना था।
26/11 हमले के कुछ समय बाद ही कॉन्ग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने एक बयान में कहा था कि 26/11 हमले के दिन उन्होंने मुंबई एंटी-टेररिस्ट स्क्वाड के चीफ हेमंत करकरे से फ़ोन पर बात की थी और करकरे ने दिग्विजय को बताया कि उन्हें आरएसएस की ओर से धमकियाँ दी जा रही थीं।
यही कारण था कि आतंकवादियों को हिंदी भाषा की ट्रेनिंग दी गई थी और आतंकवादियों को हिंदू नाम का पहचान पत्र दिया गया था। हमले के समय आतंकवादी कसाब ने अपनी कलाई पर वैसा धागा बांध रखा था, जो सामान्य तौर पर एक हिंदू रक्षा सूत्र की तरह बांधता है। विशेषज्ञों के अनुसार यह भारतवर्ष के वृहद् हिंदू समाज के विरुद्ध षड्यंत्र था।
हालाँकि, ऐसा हो ना सका और तुकाराम ने अपनी वीरता से सारी योजना ध्वस्त कर दी।
अपने गाँव के पहले पुलिसकर्मी थे तुकाराम ओंबले
मुंबई शहर से 284 किलोमीटर की दूरी पर केडंबे गाँव है, जहाँ के तुकाराम ओंबले थे। वे अपने माता-पिता के कार्यों में हाथ बंटाते थे। पुलिसकर्मी तो बाद में बने, उसके पहले वे फल बेचा करते थे।
तुकाराम की पहली नौक़री बिजली विभाग में लगी और वर्ष 1991 में वह भारतीय सेना की सिग्रल कॉर्प्स से रिटायर होने के बाद पुलिस में बतौर कांस्टेबल भर्ती हुए। वे मुंबई पुलिस में असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर का कार्यभार संभाल रहे थे।
तुकाराम के चचेरे भाई बताते हैं कि वे अपने गाँव से पहले व्यक्ति थे जो पुलिस में भर्ती हुए। आज तुकाराम के गाँव में उनकी मूर्ति नौजवानों को देश सेवा के प्रति प्रेरित करती है।
मकड़ी को मिला तुकाराम ओंबले का नाम
तुकाराम की बड़ी शहादत को कई बड़े सम्मान मिले। महाराष्ट्र की एक मकड़ी को उनका नाम दिया गया। यह उनके लिए सम्मान रूप में दिया गया। दरअसल, वर्ष 2021 में महाराष्ट्र में मकड़ी की नई प्रजाति पाई गई। जिसका नाम आईसियस तुकाराम पड़ा।
मकड़ी को तुकाराम का नाम इसलिए दिया गया क्योंकि वह उसी तेज़ी से अपना कार्य पूरा करती है जिस तेज़ी से तुकाराम ने आतंकवादी कसाब को पकड़ा था।
तुकाराम ओंबले को 26 जनवरी, 2009 में मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। यही नहीं, मुंबई के चौपाटी में तुकाराम ओंबले का स्मारक भी बनाया गया।