26 नवम्बर, 2008! पाकिस्तान से आए दस आतंकवादियों ने मुंबई में पांच प्रमुख स्थानों पर सुनियोजित हमले किए। इस हमले में 166 लोग मारे गए और 300 से अधिक लोग घायल हुए थे। यह देश की स्वायत्तता पर बड़ा हमला था।
ऐसा नहीं था कि भारत में इस तरह का यह पहला आतंकवादी हमला हो। इससे पहले लगभग हर तरह के आतंकवादी हमले हो चुके थे। अब तक मानो सरकार और आम नागरिक इन हमलों के आदी हो चुके थे। जाहिर तौर पर बहस अब केवल सुरक्षा व्यवस्था तक सीमित नहीं थी।
भारत की आर्थिक राजधानी पर हुए इस हमले ने आंतरिक सुरक्षा से कहीं अधिक राजनीतिक स्तर पर प्रतिक्रियाएं पैदा हुई।
सुरक्षा में क्या रही थी बड़ी चूक
आतंकवादियों ने हमले के लिए समुद्री रास्ते का इस्तेमाल किया था। इससे पूर्व साल 1993 मुंबई हमले के दौरान भी समुद्री रास्ते का इस्तेमाल किया गया था। महाराष्ट्र की समुद्री सीमा 720 किलोमीटर लंबी है। हमले की जांच के लिए बनाई गई राम प्रधान कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि मुंबई में समुद्री सुरक्षा सिर्फ नाममात्र के लिए थी।
आतंकी हमले से पहले खुफिया एजेंसियों ने 6 बार अलर्ट भेजा था कि आतंकी समुद्र के रास्ते मुंबई पर हमला कर सकते हैं लेकिन उन्हें गंभीरता से नहीं लिया गया। रिपोर्ट में यह बताया गया कि मुंबई पुलिस, कोस्ट गार्ड और नौसेना के बीच कोई तालमेल नहीं था।
वहीं, मुंबई हमले के दौरान देश के तत्कालीन गृह सचिव मधुकर गुप्ता और कुछ वरिष्ठ अधिकारी पाकिस्तान के खूबसूरत हिल स्टेशन मरी में रुके हुए थे। पाकिस्तान के आग्रह पर भारतीय गृह सचिव को एक दिन और वहाँ रोक लिया गया था।
भारतीय अफसरों द्वारा पाकिस्तान में तय वक्त से अधिक ठहरने के प्रस्ताव को भी स्वीकार कर लिया गया था। हमले में शामिल लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकियों को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई में कार्यरत अधिकारी भी हैंडल कर रहे थे।
बाकी कसर इस हमले के दौरान भारतीय मीडिया पूरी कर रहा था। हमले के तुरंत बाद सुरक्षा बलों का एक्शन शुरू हुआ। मीडियाकर्मी प्रत्येक दुर्घटना स्थल पर पहुंचने का प्रयास कर रहा था।
जहाँ एक तरफ ओबेरॉय होटल और यहूदी चबाड हाउस की छतों पर हेलीकॉप्टर उतारने के प्रयास किये जा रहे थे, वहीं मीडिया के लाइव प्रसारण से यह खबरें आतंकियों तक पहुँच रही थी। आतंकियों को सुरक्षाबलों के हर एक कदम की खबर थी। यहाँ तक कि लाइव प्रसारण देख कर पाकिस्तान से आतंकियों को निर्देश मिल रहे थे।
सुप्रीम कोर्ट ने 26/11 के आतंकवादी हमलों पर एक सुनवाई के दौरान लाइव कवरेज के लिए मीडिया की भूमिका पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि भारतीय टीवी चैनलों ने राष्ट्रीय हित को दर-किनार कर दिया।
‘पत्रकार’ बरखा दत्त ने भी एक इंटरव्यू में 26/11 हमले के दौरान स्वयं द्वारा की गई नकारात्मक रिपोर्ट को स्वीकार किया था।
वहीं, हमले के बाद फौरन शुरू हुए ऑपेरशन में सुरक्षा बलों को भारी क्षति हुई। आतंकियों से लड़ते हुए 11 जवानों को अपनी जान गँवानी पड़ी। इसमें एनएसजी, मुंबई एटीएस सहित मुंबई पुलिस के जवान शामिल थे। इसे रणनीतिक चूक कह सकते हैं कि एटीएस के सारे प्रमुख अफसर इस ऑपरेशन में शहीद हो गए।
हमले के बाद कितना बदलाव आया
2008 के इस हमले को भारत के इतिहास में सबसे बड़े हमले के रूप में देखा जाता रहा है। यह पाकिस्तान समर्थित हमला था। सभी तरह की चूक को देखते हुए इस निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है कि भारत उस दौर में ऐसे हमले के लिए तैयार नहीं था। हालाँकि, ऐसा भी नहीं हुआ कि इस हमले के बाद भारत की आंतरिक सुरक्षा में कोई बड़ा बदलाव देखने को मिला हो।
आंतकी घटनाएँ होती रहीं और इनमें बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों के जवान समेत आम नागरिक मारे जाते रहे। आंतरिक सुरक्षा को लेकर यूपीए सरकार के 10 साल के कार्यकाल बनाम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 8 साल के कार्यकाल पर बहस चलती रहती है।
एक नजर आंतरिक सुरक्षा के आंकड़ों पर
साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल के विश्लेषण के अनुसार वर्ष 2008 में आतंकी घटनाओं में कुल 1,122 लोगों ने जान गवाईं। वहीं वर्ष 2009 में यह आंकड़ा 1,158 पहुंच गया। आने वाले वर्षों में भी यह आंकड़ा सैकड़ों में ही रहा। हालाँकि वर्तमान में इन घटनाओं में काफी कमी देखने को मिली है।
बम धमाकों की बात करें तो 26/11 हमले के बाद भी देश में बड़े बम धमाके होते रहे।
वर्ष 2009 में गुवाहाटी, असम में वर्ष 2010 और पुणे, पश्चिम बंगाल में बड़े धमाके हुए।
वर्ष 2011 में वाराणसी, मुंबई और दिल्ली बम धमाकों से दहल गई थी। यही क्रम 2013 में भी जारी रहा, जब हैदराबाद, बैंगलोर और बोधगया में बम विस्फोट हुए।
वहीं साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल के विश्लेषण के अनुसार बड़ी आंतकी घटनाओं (3 से अधिक मृत्यु) का आंकड़ा वर्ष 2008 में 217 था, वही आज यानी 2022 में यह आंकड़ा मात्र 28 पहुंच रह गया है।
क्या कह रहे, सरकारी आंकड़े
भारतीय रक्षा मंत्रालय आंतरिक सुरक्षा के मुद्दों को चार श्रेणियों में विभाजित करता है।
- जम्मू कश्मीर क्षेत्र की घटनाएं।
- पूर्वोत्तर राज्यों में घटनाएं।
- विभिन्न क्षेत्रों में वामपंथी उग्रवाद।
- भीतरी इलाकों में आतंकी हमले (यानी देश के बाकी हिस्सों में)
गृह मंत्रालय द्वारा संसद में प्रस्तुत एक रिपोर्ट में दिए आंकड़ों के अनुसार 2014 से 2018 तक पिछले पांच वर्षों में, देश के भीतरी इलाकों में सिर्फ 6 आतंकवादी घटनाएं देखी गईं। 2014 में तीन, 2015, 2016, 2018 में एक-एक और 2017 में एक भी आतंकी हमला नहीं हुआ।
वर्ष 2021 में सरकार ने बताया कि वर्ष 2017 से यह आंकड़ा शून्य है। वहीं, वर्ष 2009 से 2013 तक 15 मुख्य आंतकी घटनाओं को दिखाते हैं। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, देश के उत्तर-पूर्वी हिस्से में हिंसक घटनाओं में तेज़ी से कमी आई है और 2015 के बाद से इन घटनाओं में आम नागरिक मौतों में तेज गिरावट आई है।
तटीय सुरक्षा प्रबंधन में सुधार
मुंबई आतंकी हमले ने तटीय सुरक्षा की कई कमजोरियों को सामने लाकर रख दिया था। इसलिए भारतीय नौसेना, तट रक्षक और समुद्री पुलिस ने महासागरों के लिए त्रिस्तरीय सुरक्षा कवच तैयार किया है। सूचना प्रबंधन और विश्लेषण केंद्र का गठन यह अनुमान लगाने के लिए किया गया था कि सुरक्षा कवर एकीकरण के तहत काम करता है।
भारतीय नौसेना और तटरक्षक बल एक वार्षिक अभ्यास आयोजित करते हैं। इसे सागर कवच के नाम से जाना जाता है। अभ्यास का उद्देश्य तटीय सुरक्षा तंत्र की जांच करना और मानक संचालन प्रक्रियाओं को सुदृढ़ बनाना है। इसमें तटीय पुलिस, तटीय जिला प्रशासन, समुद्री प्रवर्तन विंग (MEW), केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF), इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB), लाइटहाउस विभाग और मछुआरा समुदाय भी शामिल हैं।
इसी वर्ष 2022 में भारत सरकार ने देश के पहले राष्ट्रीय समुद्री सुरक्षा समन्वयक की नियुक्ति की।
।NMSC राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के साथ मिलकर काम करता है, जिसके अध्यक्ष अजीत डोभाल (NSA) हैं। NMSC को देश के 13 केंद्र शासित प्रदेशों और तटीय राज्यों में तटरक्षक बल, भारतीय नौसेना और विभिन्न अन्य सुरक्षा एजेंसियों के साथ समन्वय करने का काम सौंपा गया है, जो समुद्री और तटीय सुरक्षा प्रदान करने में शामिल हैं।
आंकड़े सरकार की नीतियों को परिलक्षित करते हैं। 26/11 हमले के बाद मनमोहन सरकार जहाँ बैठकों तक ही सीमित थी वहीं उनकी ही पार्टी के नेता दिग्विजय सिंह इस हमले को आरएसएस की साजिश बता रहे थे।
26/11 के बाद मनमोहन सरकार का स्टैंड
वर्ष 2008 में 26/11 हमले के बाद मनमोहन सरकार द्वारा कोई कार्रवाई न किए जाने पर कॉन्ग्रेस के पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी भी तत्कालीन मनमोहन सरकार की आलोचना कर चुके हैं।
वे अपनी किताब में लिखते हैं, “संयम ताकत का संकेत नहीं है और भारत को हमले के बाद गतिशील कार्रवाई करनी चाहिए थी।”
वहीं, 24 दिसम्बर, 2008 को पश्चिमी वायु कमान के वायु अधिकारी कमांडिंग-इन-चीफ पीके बारबोरा ने कहा कि भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान में 5,000 लक्ष्य निर्धारित किए हैं। हालाँकि, एक दिन बाद, एक शीर्ष स्तरीय सुरक्षा बैठक में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्पष्ट किया था कि “कोई भी युद्ध नहीं चाहता है।”
कुछ रिपोर्ट में दावा किया जाता है कि जब मुंबई हमले को झेल रहा था। 26/11 हमले से मुंबई समेत पूरा देश दहल रहा था, उस समय भी कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी पार्टी कर रहे थे।
उस समय उद्धव ठाकरे ने भी राहुल गाँधी पर निशाना साधते हुए कहा था, “राहुल गाँधी ने 26/11 मुंबई हमलों में वीरगति को प्राप्त हुए जवानों का अपमान किया है। उन्होंने देश के लिए अपनी जान न्योछावर करने वाले हेमंत करकरे, अशोक कामटे, तुकाराम आंबोले और विजय सालस्कर जैसे मराठा पुलिसकर्मियों की बहादुरी का अपमान किया है। उन्होंने एनएसजी के मेजर संदीप उन्नीकृष्णन को अपमानित किया है। जब मुंबई में हमला हुआ, तब राहुल कहाँ थे?”
वहीं, वर्तमान सरकार के साथ भारतीय जनता आंतरिक सुरक्षा को लेकर काफी आश्वस्त दिखती है। शायद इसलिए भी क्योंकि जनता वर्तमान सरकार के कार्यकाल में हुई आतंकी घटनाओं पर राष्ट्र और सेना की प्रतिक्रिया देख चुकी है।
वर्ष 2016 में उरी आतंकी हमला हुआ तब भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक की। फरवरी 2019 में पुलवामा आतंकी हमले के बाद सेना ने बालाकोट एयर स्ट्राइक को अंजाम दिया।
भारतीय वायुसेना ने 48 वर्षों में पहली बार पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र में प्रवेश किया और खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के बालाकोट में जैश के ठिकानों को तबाह कर दिया था।
किसी भी राष्ट्र पर आतंकी हमला न सिर्फ अर्थव्यवस्था या जान माल के नुकसान तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि आतंकी घटनाएं उस राष्ट्र की संस्कृति एवं देश के मनोबल पर भी हमला करती हैं।
किसी भी सरकार में हुई पहली आतंकी घटना दुश्मन की साजिश का हिस्सा या सरकार द्वारा स्वयं किसी मोर्चे पर मानवीय भूल मानी जा सकती है, लेकिन बार-बार ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति शासन-प्रशासन की कमियों को उजागर करती हैं। साथ ही ऐसी घटनाओं पर की गई कार्रवाई भी आतंकवाद के खिलाफ सरकार की नीति को स्पष्ट करती है।