राज्य बनने के बाद उत्तराखंड का इतिहास संघर्षपूर्ण रहा है। मैदानी क्षेत्र के मुकाबले, पहाड़ी क्षेत्र का विकास वैसे भी चुनौतीपूर्ण होता है। उत्तराखंड की पिछले 22 वर्षों की यात्रा देखी जाए तो यह भारत के उन राज्यों में से एक है, जहाँ तेज़ी से कई बड़े बदलाव देखे गए हैं। राज्य ने अलग-अलग स्तर पर सामाजिक, सार्वजनिक, सरकारी और आर्थिक बदलाव देखे।
प्रश्न यह है कि क्या उन विषयों को लेकर कोई बदलाव आया है, जिनके आधार पर एक अलग राज्य बनने की माँग उठाई गई थी?
अलग राज्य बनाने की माँग को लेकर किए गए आंदोलन में जो विषय सबसे आगे रखा गया, वह था पहाड़ी क्षेत्रों का आर्थिक विकास, रोजगार के साधन, प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा और क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं की उपलब्धता। आर्थिक विकास उस समय तक शहरों तक सीमित था, रोजगार के स्थानीय साधन बहुत कम थे और मूलभूत सुविधाओं का अभाव पहाड़ी क्षेत्रों के नागरिकों के लिए सबसे बड़ी चुनौतियाँ प्रस्तुत कर रहा था।
इन माँगों की तुलना में आज के उत्तराखंड की तस्वीर देखी जाए तो राज्य में अब विकास और उसकी रफ़्तार कुछ हद संतोषप्रद दिखाई देती है, हालाँकि, उत्तराखंड में पलायन एक बड़ी समस्या बनकर उभरा है। लोग पहाड़ों को छोड़ शहरों की ओर जाने को मज़बूर हैं। वहीं, राज्य में बढ़ता पर्यटन स्थानीय नागरिकों को बेहतर रोजगार भी दे रहा है। IBEF की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में, राज्य में घरेलू पर्यटकों का आगमन 37.58 मिलियन था, जबकि विदेशी पर्यटकों का आगमन 0.15 मिलियन से भी अधिक था।
आज उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में धीरे ही सही विकास देखा जा सकता है। पक्की सड़कें, सरकारी स्कूल, बेहतर शिक्षा, अस्पताल, यातायात के साधन जैसे कई विकास कार्य पिछले कुछ सालों में राज्य में हुए हैं। कालान्तर में इन कार्यों की निगरानी की व्यवस्था में भी कुछ हद तक सुधार हुआ है।
अब सबसे पहले सवाल उठता है कि राज्य के किन क्षेत्रों में सरकार द्वारा विकास कार्य किया गया है?
उत्तराखंड राज्य हिमालय पर्वत श्रृंखला की सीमा में स्थित है। राज्य की सीमाएँ उत्तर में चीन, पूर्व में नेपाल और पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेश के साथ लगती है। ऐसे में इन इलाकों में विकास महत्वपूर्ण कार्य रहा, क्योंकि, ऐसे इलाके पहले पिछड़े हुए नज़र आते थे। आज सरकार और सेना द्वारा क्षेत्र-वासियों को सुरक्षा के साथ-साथ कई तरह की सुविधाएँ भी दी जा रही हैं।
सीमावर्ती क्षेत्र ही नहीं बल्कि राज्य के इंफ्रास्ट्रक्चर में भी बदलाव और विकास देखा गया है। आज पहाड़ी क्षेत्रों में जगह-जगह स्कूल, कॉलेज, अस्पताल जैसी सुविधाएँ मिल पा रही है। पहले पहाड़ी क्षेत्रों में अच्छे अस्पतालों की सुविधा नहीं हुआ करती थी जिस वजह से पहाड़ी नागरिकों को लम्बे रास्ते तय कर इलाज के लिए विभिन्न शहरों तक जाना पड़ता था। अब सरकार पहाड़ों में निर्माण कार्य कर अच्छे अस्पतालों की सुविधा प्रदान कर रही है। हालाँकि, इसमें सुधार की गुंजाइश अब भी बाकी है।
राज्य के विकास हेतु कई प्रोजेक्ट्स बनाए गए। कई जगह राष्ट्रीय राजमार्ग और हवाई अड्डे बनाए गए हैं। जिससे देश के अन्य हिस्सों से कनेक्टिविटी अब सरल हो गई है। यही कारण है कि हर वर्ष अधिक से अधिक तीर्थ यात्री उत्तराखंड पहुंच रहे हैं और इन वर्षों में उत्तराखंड के पर्यटन में बड़ा बदलाव देखा गया है।
राज्य में पहाड़ और जंगलों के कारण उत्तराखंड में अधिक मात्रा में प्राकृतिक संसाधन हैं। राज्य में उपलब्ध विशाल जल संसाधन भी जल विद्युत के लिए अनुकूल हैं। कई कृषि-भू-जलवायु क्षेत्र भी हैं, जो फूलों की खेती और बागवानी के लिए व्यावसायिक अवसर प्रदान करते हैं। राज्य दुर्लभ औषधीय, सुगंधित और हर्बल पौधों की लगभग 175 से अधिक प्रजातियों का घर है। जिसका लाभ राज्य तो ले ही रहा है साथ ही, पूरे देश को भी इसका फायदा मिल रहा है।
देश-विदेश से वैज्ञानिक औषधीय, हर्बल पौधों और जड़ी-बूटियों की खोज करने उत्तराखंड पहुंच रहे हैं। भारत में पतंजलि जैसे बड़े ब्रांड का काम भी उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में ही किया जा रहा है।
देवभूमि उत्तराखंड से हमेशा से ही हिंदू धर्म की आस्था जुड़ी रही है। यही वजह है कि सरकार द्वारा धार्मिक स्थलों और तीर्थ यात्रा में कई बदलाव देखे गए हैं। हरिद्वार में होने वाला कुंभ मेला जिसे भव्य तैयारियों के साथ पूर्ण किया जाता है। जो उत्तराखंड में सबसे बड़े बदलावों में से एक है।
वहीं केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम तक पहुंचने के रास्ते भी अब सरल हो गए हैं। गंगोत्री, यमुनोत्री यात्रा के दौरान कई तरह की सुविधाएँ प्रदान की जा रही हैं। पहले यहाँ तक पहुंचने के लिए लम्बे और कठिन रास्तों से गुज़रना पड़ता था। इस वजह से यात्रियों की मौत की खबर भी सामने आती रही। इस वजह से लम्बे और कठिन रास्तों में निर्माण कार्य करवाया गया, ताकि तीर्थ यात्रियों की यात्रा में कठिनाई कम की जा सके। इन तीर्थ स्थलों में हेलीकॉप्टर जैसी सुविधाएँ भी मिल गई है।
हाल के वर्षों में उत्तराखंड के विकास में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की व्यक्तिगत भूमिका भी महत्वपूर्ण रही है। पहाड़ में भूस्खलन, कच्चे रास्ते, राज्य में आने वाले पर्यटकों के लिए सुख-सुविधाएँ और पहाड़ का विकास एक बड़ा सवाल था, जिसके बारे में प्रधानमंत्री का व्यक्तिगत हस्तक्षेप परिलक्षित होता है। कई बार विकास कार्यों का जायज़ा लेने, वे स्वयं उत्तराखंड पहुंचे।
राज्य की अब तक की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक यात्रा, उन अन्य छोटे राज्यों से बेहतर रही है जो उत्तराखंड के साथ बने थे। राजनीतिक स्थिरता के कारण राज्य का विकास झारखंड की तुलना में बेहतर रहा है। चुनौतियाँ अभी भी हैं लेकिन, ऐसा लगभग हर राज्य के साथ होता है। मानव संसाधन के विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाओं को लेकर अभी भी कई महत्वपूर्ण कार्य किए जाने हैं, सुकून इस बात का है कि सुधार की यात्रा तो जारी है।