हाल ही में हुए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान रेलवे मंत्री अश्विनी वैष्णव ने 2004 से 2014 तक के UPA शासनकाल को Lost Decade, यानी एक ऐसा दशक जो प्रगति और तरक्की के मार्ग से भटक कर कहीं खो गया था, बताया। यह बातें सिर्फ उन्होंने ही नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 8 फरवरी, 2023 को राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर अपने जवाब के दौरान कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कही थी। प्रधानमंत्री ने कहा था कि; भारत 2014 से पहले के दशक को Lost Decade के रूप में याद रखेगा। एक ऐसा दशक जब हर अवसर संकट में बदल गया था।
प्रश्न यह है कि इस बात को क्या केवल एक राजनीतिक वक्तव्य की तरह देखा जाना चाहिए? और यदि इसे मात्र राजनीतिक वक्तव्य की तरह न देखा जाए तो फिर इस वक्तव्य के पीछे जो कारण थे उनकी पड़ताल अवश्य की जानी चाहिए। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि वर्तमान कांग्रेसी नेतृत्व इस वक्तव्य को सिरे से नकारता आया है।
इस Lost Decade वाली बात समझने के लिए हमें उन उदाहरणों को देखने की जरूरत है जिनका जिक्र अश्विनी वैष्णव ने किया। लेकिन उससे पहले हम पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार की भी चर्चा कर लेते है जो 1998 से 2004 तक चली।
उस दौरान, भारत में कई महत्वपूर्ण राजनीतिक और आर्थिक सुधार देखे गए। कई कानून बनाए गए, बुनियादी ढांचे का विकास किया गया। RBI में सुधार हुआ और SEBI Act आया। स्टॉक मार्केट में इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग की शुरुआत हुई। शेयर बाजार की वृद्धि ने हमारी अर्थव्यवस्था में क्रांति लाई थी। उस दौरान एक ऐसा माहौल बना और एक ऐसे सशक्त प्लेटफार्म की नींव रखी गई जिससे देश में कई प्रकार के सामाजिक-आर्थिक रिफॉर्म किए गए। पहली बार प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना लागू की गई जो गरीबी हटाओ के नारे से आगे जाकर गरीबों के बारे में सच में कुछ करने के बारे में थी। फूड फॉर वर्क प्रोग्राम चलाया गया। स्वर्णिम चतुर्भुज जैसा इंफ्रास्ट्रक्चर बना। सरकारी कंपनियों के निजीकरण का गंभीर प्रयास किया गया। कुल मिलाकर ऐसे बदलाव देखे गए जो देश ने पहले नहीं देखे थे।
लेकिन 2004 में जब कांग्रेस यानी UPA सरकार सत्ता में आई तो चीज़ें बहुत बदल गई। उन्होंने वाजपेयी सरकार की बनाई हुई नींव में सिर्फ बदलाव ही नहीं किया बल्कि पूर्व की सरकार द्वारा मेहनत से बनाया हुआ प्लेटफार्म नष्ट कर दिया। एनडीए की पहली सरकार द्वारा बनाए गए इंफ्रास्ट्रक्चर पर यूपीए की योजनाएं चलाई तो गई लेकिन यूपीए ने पहले से बने इंफ्रास्ट्रक्चर को अगले स्तर पर ले जाने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया। नतीजा यह हुआ कि यूपीए की पहली सरकार के दौरान जो आर्थिक प्रगति देखी गई और जो वाजपेयी सरकार द्वारा स्थापित नींव पर हुई, उसे अगले स्तर पर ले जाने की बात तो दूर, उसे जारी भी नहीं रखा जा सका।
इन सबके ऊपर आजाद भारत के इतिहास में आज तक के हुए सबसे बड़े घोटाले इसी Lost Decade के दौरान हुए। रक्षा सौदे हों या टेलिकॉम, कोयला घोटाला हो या कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला, यूपीए के शासनकाल में कोई क्षेत्र बचा नहीं। योजना बनाने, क्रियान्वयन के सरकार के अधिकार पर पहली बार न्यायपालिका का हस्तक्षेप इतने बड़े स्तर पर देखा गया। यूपीए के पहली सरकार के दौरान जो आर्थिक विकास हुआ उसे जारी रखते हुए अगले स्तर पर ले जाने के लिए जिस इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता थी, वह घोटालों के कारण पैदा हुए पॉलिसी पैरालिसिस की भेंट चढ़ गया।
डॉक्टर मनमोहन सिंह के नेतृत्व में चली पहली सरकार ने वर्ष 2009 में अमेरिका में आए आर्थिक संकट के बाद आर्थिक और वित्तीय संस्थाओं से सम्बन्धित जिस तरह के फैसले लिए, उनके दीर्घकालिक परिणामस्वरुप देश में NPA का संकट आया। इसके कारण सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई में वर्तमान सरकार को बड़ी मेहनत करनी पड़ी। इस दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से ऋण प्रक्रिया में सरकारी और राजनीतिक तंत्र के हस्तक्षेप से आज सब परिचित हैं। इन सबके ऊपर वर्ष 2007 से शुरू हुई मुद्रास्फीति की साइकिल को डॉक्टर सिंह के नेतृत्व वाली सरकार वर्ष 2014 तक नियंत्रित करने में असफल रही। यह ऐसा सच है जिसे कुछ महीने पूर्व ही पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने सार्वजनिक मंचों पर स्वीकार किया।
भारत 2004 में GDP को लेकर 10वें स्थान पर था और 2014 में भी 10वें स्थान पर रह गया। देश का आर्थिक विकास रुक सा गया था। 1999 से 2004 के बीच जब एनडीए सत्ता में थी, तब मुद्रास्फीति की औसत दर 4.1% थी, जो 2004 से 2009 के बीच यह बढ़कर 5.8% हो गई और 2009 से 2014 के बीच 10.4% रही।
चूँकि सरकारों के कामकाज का मूल्यांकन तुलनात्मक होता है इसलिए डॉक्टर मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकारों की तुलना उसके पूर्व की वाजपेयी सरकार या उसके बाद की मोदी सरकार से ही की जाएगी और अर्थव्यवस्था को पूर्णता में देखने पर डॉक्टर सिंह की सरकार एनडीए की दोनों सरकारों के मुकाबले कमज़ोर दिखाई देती है। यदि केवल अंतिम परिणाम के बिंदु पर भी तुलना की जाए तो वर्तमान की मोदी सरकार ने जब 2014 में अपना कामकाज शुरू किया था तब अर्थव्यवस्था के लिहाज से भारत विश्व की दसवीं बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश था और आज वह पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है। ऐसे में चाहे वर्तमान सरकार से कोई कहे या फिर कोई बाहर का व्यक्ति, वह 2004 से 2014 के बीच के दशक को Lost Decade ही कहेगा।
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