21 से 22 अक्टूबर 1947 की रात, ‘जिहाद’ के लिए कबालियों ने घाटी में खून की नदियाँ बहा दी थी. जो कलमा नहीं पढ़ सके उन्हें मार दिया गया, गैर-मुस्लिम महिलाओं का अपहरण किया गया और घाटी की शांति को हमेशा के लिए कुर्बान कर दिया गया.
“गर फिरदौस बर ज़मीं अस्त
हमी अस्तो, हमी अस्तो, हमी अस्तो”
यानी धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है, यहीं है, बस यहीं हैं.
धरती का स्वर्ग आजादी के बाद से ऐसा संघर्ष देखेगा किसने सोचा था. आजादी के समय कश्मीर पर महाराजा हरिसिंह का राज था. 26 अक्टूबर 1947 को जब कश्मीर ने भारत में विलय का फैसला लिया था, लेकिन यह एक रात की कहानी नहीं है. महाराजा हरिसिंह सुयोग्य प्रशासक होने के साथ अनिर्णय असमंजस से घिरे थे. भारत या पाकिस्तान में विलय के स्थान पर वह स्वतंत्र राज्य का स्वपन देख रहे थे. हालाँकि 21 से 22 अक्टूबर तक घाटी में ऐसा कोहराम मचा कि, राजा हरिसिंह को भारत से मदद की गुहार लगानी पड़ी.
ऑपरेशन गुलमर्ग
अगस्त 1947 में मेजर जनरल अकबर खान के कमांड में ऑपरेशन गुलमर्ग तैयार किया गया था। पश्तून कबाइलियों ने जनरल खान की प्लानिंग पर घुसपैठ की. इसे अंजाम देने वालों में सरदार शौकत हयात खान भी शामिल था, जो पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना का करीबी था।
आदतन जिहाद का पाठ पढ़ाकर कबाइलियों को भेजा गया. उन्हें बताया गया कि वो, मुक्तिदाता हैं और कश्मीर में अपने धार्मिक कर्तव्य ‘जिहाद’ के लिए जा रहे हैं, क्योंकि वहां मुसलमानों को सांप्रदायिक दंगों में मारा जा रहा है।
हजारों की तादात में आए कबालियों के हाथ में तलवारें, कुल्हाड़ियां, बंदूकें तो कुछ के हाथों में लाठियां थी. हमले में करीब 35 से 40 हजार लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी.
ट्रक पर लदे पठान लड़ाके पथरीले पहाड़ी रास्तों से गढ़ी हबीबुल्ला में दाखिल हुए थे. मुज़फ्फराबाद जाने के रास्ते में वे ढलान पर पांच मील आगे बढ़े होंगे कि उनकी पहली झड़प हुई. करीब 2,000 कबायली लड़ाकों ने तड़के मुज़फ्फराबाद पर धावा बोल दिया. और कश्मीरी रियासत के तैनात सैनिक बिना कोई बाधा खड़ी किए तितर-बितर हो गए. कश्मीरी रियासत के तकरीबन 500 सैनिक ही मौजूद थे और उनमें से कई मुसलमान सैनिकों ने हमले के वक्त पाला बदल दुश्मन की ओर से लड़ना शुरू कर दिया.
सरकारी हथियार लूटने के साथ बाजार को जला दिया गया. बाजार से लेकर घरों तक हुए हमले में किसी के पास बचने का कोई मौका नहीं था. कबायलियों ने उन सभी को गोली मार दी जो कलमा नहीं पढ़ सके. कई गैर-मुस्लिम महिलाओं को गुलाम बना लिया गया. बहुत से लोग पकड़े जाने से बचने के लिए नदी में कूद गए.
जिन्ना और पाकिस्तान की साजिश
पाकिस्तानी आतंकवाद पाकिस्तान की पैदाइश के साथ ही शुरू हो गया था। पाकिस्तानी सरकार कबालियों को हथियार देती थी और घुसपैठ की गुंजाइश भी बनाई जाती थी जम्मू- कश्मीर की भौगोलिक स्थिति उसे पाकिस्तान की अपेक्षा भारत से कटा बनाती है, ऐसे में महाराजा तथा उनकी फौज बेहद कमजोर हो गई. जिन्ना ने यह मान लिया था कि कश्मीर की सत्ता बिना किसी कठिनाई के उनके हाथ में आ जाएगी.
महाराजा की फौज कबालियों को रोकने में असमर्थ थी, क्योंकि फौज से भारी संख्या में मुसलमान सैनिक भाग गए थे और ‘जिहाद’ के लिए लड़ रहे थे। राज्य का काफी बड़ा भाग, जिसमें पहले गिलगित नाम से पुकारा जाने वाला सीमा स्थित भू- भाग भी था, शत्रु के हाथ में चला गया था। राजधानी और कश्मीर घाटी पर लाशों पर खड़ी हुई थी. ऐसे में महाराजा ने भारत उपनिवेश से जुड़ने का प्रस्ताव रखा और सैनिक मदद की मांग की। भारत सरकार ने राज्य के सम्मिलन को स्वीकार किया और इस तरह बाद में कश्मीर, भारत का अभिन्न अंग हो गया। लेकिन यह सब नियम- कायदे में बांधने का सही समय नहीं था,प्राथमिकता घाटी को बचाने की थी। यह काम बाद पर छोड़ दिया गया और तुरंत विमान और सैनिक मदद भिजवाई गई।
26 अक्टूबर को भारत से कश्मीर विलय पत्र पर राजा ने हस्ताक्षर किए. समझौते पर हस्ताक्षर होते ही भारतीय सेना ने पाकिस्तानी हमलावरों को खदेड़ना शुरू कर दिया. यही वो समय था जब भारत का एक अभिन्न अंग पाकिस्तान ने अपने कब्जे में ले लिया, जो कि आज पाक अधिकृत कश्मीर के रूप में जाना जाता है.
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