अर्कांसस के रिपब्लिकन सीनेटर टॉम कॉटन और अलबामा के टॉमी ट्यूबरविले ने अमेरिका को चीन से बचाने के लिए एक बिल पेश किया है। पिछले हफ्ते सारा कार्टर ने फॉक्स न्यूज पर चर्चा में कहा कि चीन अमेरिका में बड़ी मात्रा में खेत खरीद रहा है। सारा ने कहा कि अगर सच कहूं, तो चीन ने बहुत ज्यादा अमेरिकी जमीन खरीद ली है, चीन ने संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग 200,000 एकड़ जमीन खरीदने में सफलता पा ली है।
कई रिपब्लिकन नेताओं ने जोरशोर से यह मुद्दा उठाया है कि चीनी संस्थाओं ने अमेरिकी धरती का बहुत बड़ा हिस्सा खरीद लिया है और आगे भी उनकी ज्यादा से ज्यादा अमेरिकी भूमि खरीदने की योजना है। उन्होंने यह भी कहा कि “केवल अगले एक दशक में लाखों एकड़ अमेरिकी कृषि भूमि का स्वामित्व बदलने वाला है।”
2010 में, चीन ने 13,720 एकड़ अमेरिकी भूमि में निवेश किया था, जबकि “2020 के अंत तक, यह संख्या बढ़कर 194,179 एकड़ हो गई,” चीन के पास कुल अमेरिकी कृषि भूमि 352,140 एकड़ हो गयी है।
अमेरिकी कृषि विभाग द्वारा 2020 में जारी एक रिपोर्ट के आधार पर कॉटन और ट्यूबरविले द्वारा अमेरिकी सीनेट में बिल पेश किया गया है। उक्त सरकारी रिपोर्ट में दर्शाया गया था कि “लगभग 3.76 करोड़ एकड़ अमेरिकी कृषि भूमि को खरीदने के लिए विदेशी लोग रुचि दिखा रहे हैं।” रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया गया था कि “अमेरिका के लगभग 14 राज्यों में भूमि के विदेशी स्वामित्व के स्तर पर कुछ प्रतिबंध हैं, फिर भी निजी अमेरिकी कृषि भूमि के स्वामित्व के स्तर पर कोई संघीय प्रतिबंध नहीं है।”
द ब्लेज़ की रिपोर्ट के अनुसार: इसी तरह का एक बिल (एचआर 7892) कांग्रेस में 27 मई, 2022 को डैन न्यूहाउस द्वारा पेश किया गया था, जिसका शीर्षक था ‘प्रोहिबिशन ऑफ एग्रीकल्चरल लैण्ड फ़ॉर पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना एक्ट’। इस बिल में भी चीनी नागरिकों के लिए अमेरिका में खेती की भूमि खरीदने पर रोक लगाने का मुद्दा उठाया गया था।
अमेरिका की सैन्य सुरक्षा में चीनी सेंधमारी
अमेरिका के एक वायु सेना बेस के पास भी चीन ने लगभग 300 एकड़ जमीन खरीदी है जहाँ “अमेरिका की कुछ सबसे संवेदनशील ड्रोन तकनीकों का प्रयोग किया जाता है”। क्योंकि यह जमीन अमेरिका की दक्षिणी सीमा के वायुसेना बेस के पास एक पूर्व चीनी सैन्य अधिकारी ने खरीदी है। ऐसी ही एक बड़ी जमीन खरीद चीन द्वारा अमेरिका के मोंटेना में आणविक हथियारों के भण्डार केन्द्र के पास की गयी है। इससे अमेरिका की सैन्य सुरक्षा के प्रति गम्भीर खतरे की दृष्टि से देखा जा रहा है। इसी के चलते गत सप्ताह अमेरिका के दो रिपब्लिकन सीनेटरों ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के सक्रिय सदस्यों को संयुक्त राज्य अमेरिका में किसी भी भूमि को खरीदने से रोकने के उद्देश्य से एक विधेयक पेश किया।
कॉटन ने कहा कि “अमेरिकी कृषि, औद्योगिक और व्यापारिक भूमि में चीन के भारी निवेश ने अमेरिकी खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है। इसके अलावा, ये निवेश उन स्थानों पर किए गए हैं जो अमेरिका के सैन्य ठिकानों और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के खिलाफ चीन को जासूसी के अवसर प्रदान करते हैं।” इतनी अधिक कृषि भूमि खरीद से अमेरिकी खाद्य सप्लाई चेन में कुछ वर्षों में चीनी महत्त्वपूर्ण भूमिका में आ सकते हैं।
नेशनल एसोसिएशन ऑफ रियल्टर्स के अनुसार, चीनी संस्थाओं ने केवल कृषि भूमि ही नहीं खरीदी, बल्कि 2022 में यू.एस. रियल एस्टेट में 6.1 बिलियन डॉलर की खरीद की है, और विदेशी खरीदारों के 6% हिस्से पर कब्जा जमाया है। चीनी कम्युनिस्टों द्वारा अमेरिकी भूमि पर कब्जे के संभावित सुरक्षा जोखिम को रेखांकित करते हुए रिपब्लिकन सांसदों ने चिन्ता जताई है कि अमेरिका अपने शीर्ष विरोधी को संयुक्त राज्य अमेरिका में जमीन खरीदने और अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को कमजोर करने के लिए दरवाजे खोलकर नहीं रख सकता है। उल्लेखनीय है कि डोनाल्ड ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी के सांसद ही इस मुद्दे पर मुखर होकर बोल रहे हैं, और ऐसा लगता है उन्हें कुछ डेमोक्रेट सांसदों का भी अंदरखाने समर्थन मिल रहा है। खास बात यह है कि यू.एस. रियल एस्टेट में 3.6 बिलियन डॉलर की खरीद और विदेशी खरीदारी के 5% हिस्से के साथ चीन के बाद दूसरे नम्बर पर भारत रहा है, पर अमेरिकी सांसदों द्वारा भारत का कोई ज़िक्र नहीं किया गया है।
द हेरिटेज फाउंडेशन ने कहा कि, चीन के अंदर भूमि उपयोग के सख्त कानून हैं, फिर भी यू.एस. के ढीले और लचर कानूनों के कारण चीन वर्षों से अमेरिकी कृषि, औद्योगिक और वाणिज्यिक भूमि तेजी से खरीद रहा है। फाउंडेशन ने अमेरिका में चीनी गतिविधियों के उद्देश्यों और भविष्य के सीसीपी खतरों को खत्म करने के लिए 4 सुझाव दिए:
- अमेरिकी कृषि भूमि के प्रतिकूल, विदेशी देशों के स्वामित्व पर प्रतिबंध लगाकर, चीनी भूमि उपयोग को प्रतिबंधित करें।
- सभी विदेशियों और विदेशी सरकारों को अमेरिका की जनमत संग्रह प्रक्रियाओं में भाग लेने से प्रतिबंधित किया जाए, और अमेरिकी राजनीति और भूमि उपयोग में चीनी प्रभाव को समाप्त किया जाए।
- चीन द्वारा बड़ी कम्पनियों या अन्य तंत्रों को खरीदने के माध्यम से भूमि अधिग्रहण को रोकने के लिए कानून बनाए जाएँ।
- अमेरिकी हितों को खतरे में डालने के लिए अमेरिकी भूमि का उपयोग करने वाली संस्थाओं की पहचान की जाए और उन्हें दण्डित किया जाए।
गौरतलब है कि बीजिंग और वाशिंगटन के बीच संबंध पहले से ही खराब चल रहे हैं। अमेरिकी स्पीकर नैन्सी पेलोसी की हालिया ताइवान यात्रा से खफ़ा सीसीपी संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रति सामान्य से ज्यादा उग्र शब्दों का प्रयोग कर रही है। कम्युनिस्ट चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने कहा था कि, “अगर पेलोसी ताइवान का दौरा करती हैं, तो चीन अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए दृढ़ और मजबूत कदम उठाएगा। जो लोग आग से खेलते हैं वे खुद ही इससे जल जाएंगे। हम किसी भी स्थिति के लिए तैयार हैं और पीएलए कभी भी आलस में नहीं बैठेगी।” इससे पहले जून में बीजिंग अमेरिका पर “शीत युद्ध की मानसिकता” से चलने का आरोप लगा चुका है और जुलाई 2022 की शुरुआत में, झाओ ने अमेरिका पर “विश्व शांति, स्थिरता और विकास के लिए सबसे बड़ा खतरा” होने का आरोप लगाया था।
चीन का विस्तारवादी ड्रैगन पूरी दुनिया में पसार रहा पैर
साल 2009 से 2016 के बीच दुनिया भर के देशों में चीन का कृषि निवेश पहले की तुलना में दस गुना से अधिक बढ़ा है। चीन के कृषि मंत्रालय ने दावा किया था कि 2016 के अंत तक चीन के पास 26 बिलियन डॉलर के पंजीकृत विदेशी निवेश के साथ विश्वभर में 1,300 से अधिक कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन उद्यम थे।
चीन की विदेश नीति के केन्द्र में विस्तारवाद है। इस नीति के कारण पिछली सदी से ही चीन अपने स्वामित्व वाली भूमि को बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय नियमों को ताक़ पर रखने से भी बाज नहीं आता है। अगर भारतीय उपमहाद्वीप को ही देखें तो 1959 में तिब्बत को हथियाकर उसकी स्वतन्त्रता छीन चुका है। भारत के पूर्वोत्तर सीमा राज्यों में भी चीन जमीन हथियाने के प्रयास करता रहा है, कश्मीर में भी अक्साई चिन पर चीन का अवैध कब्जा है।
पाकिस्तान में अरबों के निवेश के साथ पाकिस्तान की बहुत सी रणनीतिक भूमि भी चीनी कब्जे में जा चुकी है, जिसके खिलाफ खुद पाकिस्तान के ही कई समूह जैसे बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी, हिंसक विरोध भी करते रहे हैं। पाकिस्तान की रणनीतिक जमीन पर चीनी कब्जा भारत के लिए भी सुरक्षा संकट उत्पन्न करता है। भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका का मामला भी ज्यादा अलग नहीं है, चीनी कर्ज से श्रीलंका दबा हुआ है और उसके कई द्वीप चीनी अधिकार में चले गए हैं। श्रीलंका का हमबनटोटा बन्दरगाह 99 साल की लीज़ पर चीन के अधिकारों में जा चुका है।
अपनी विस्तारवादी नीति के तहत दक्षिण चीन सागर पर चीन अपने एकाधिकार का दावा करता है। दक्षिण चीन सागर एक प्रमुख वैश्विक व्यापारिक मार्ग है, जिसके तटों पर कई देश स्थित हैं, दक्षिण चीन सागर प्राकृतिक तेल, गैस, ऊर्जा, मत्स्य संपदा आदि प्राकृतिक सम्पदा का एक महत्वपूर्ण स्रोत है जिसके ऊपर कई तटवर्ती देश निर्भर हैं। इसपर चीन के जबरन दावे के कारण विएतनाम, फिलीपींस, ब्रूनेई, इंडोनेशिया, मलेशिया आदि कई देशों का जमीन विवाद चीन के साथ चल रहा है। चीन ने यहाँ के कई विवादित द्वीपों पर कब्जा किया हुआ है और समुद्र में कृत्रिम द्वीपों का निर्माण करके वहाँ नौसैनिक अड्डे स्थापित कर रखे हैं।